विवाह की उम्र 18 से 21 वर्ष होना महिलाओं के लिए वरदान साबित होगा: शाइस्ता अंजुम

जौनपुर। सरकार द्वारा महिलाओं के विवाह की उम्र 18 वर्ष से बढ़ाकर 21 वर्ष किये जाने के मामले में भले ही राजनीतिक पार्टियों में मतभेद हो लेकिन पढ़ी लिखी महिलाएं इसका स्वागत कर रही है। 

जिले की निवासी व बलिया जनपद में तैनात डायट की टीचर  शाइस्ता अंजुम कहती है कि धार्मिक और राजनीतिक विचारों से हटकर शैक्षिक दृष्टि से स्वतंत्रता मिलने के बाद बालिकाओं के विवाह की आयु 18 वर्ष से 21 वर्ष होना नवीन दिशा की पहल है और मुझे विश्वास है कि आने वाले कल में इसका परिणाम भी प्रसंसनीय होगा। 

क्यो कि वर्तमान समय में हम इतिहास के पन्नों को पलटकर देखते है तो हमें पता चलता है कि स्त्रियों की दयनीय स्थिति में सुधार शिक्षा के माध्यम से अत्यधिक हुआ है। प्रचीन काल में महिलाओं को सम्मान प्राप्त था किन्तु वैदिककाल में स्थिति विपरित हो गयी थी, मध्यकाल में पर्दा प्रथा, लैगिंक असमानता इत्यादि कुरीतियां समाज में मडराने लगी थी और 19 वीं शताब्दी में बाल विवाह, जौहर प्रथा इत्यादि पर महापुरूषों ने रोक लगा दी किन्तु तब तक हजारो महिलाएं अपनी आहुती दे चुकी थी। 

आज के वर्तमान समय की बात करें तो शिक्षा के माध्यम से महिलाओं की स्थिति में कुछ हद तक सुधार आया है, आज हर क्षेत्र में पुरूषों से कंधे से कंधा मिलाकर चल रही है। किन्तु जिस प्रकार सिक्के के दो पहलू है उसी प्रकार नारी जीवन के भी दो पक्ष है सकारात्मक व नकारात्मक , आज जहां महिलाएं आसमान की ऊंचाईयों को छू रही वही दूसरी ओर उनकी स्थिति आज भी दयनीय है। जैसे कन्या भ्रूण हत्या, घरेलू हिंसा, दहेज प्रथा,यौन शोषण इत्यादि की शिकार हो रही है। 80 प्रतिशत महिलाएं आज भी इसका शिकार है। बालिकाओं की शिक्षा को बढ़ावा देने के लिए सरकार की जितनी योजनाएं चला रही है एक प्रशंसनीय कार्य है। 

इस प्रकार शैक्षिक दृष्टि से हम कह सकते है कि बालिकाओं के विवाह की आयु 18 से 21 वर्ष होना भारत सरकार की एक अहम कदम होगा। जो बालिकाएं 18 वर्ष की उम्र तक विवाह की बंधन में बंध जाती है और वह अपने आगे की पढ़ाई नही कर पाती है। उन्हे 3 वर्ष का अवसर मिल जायेगा क्योकि शिक्षित महिलाएं ही परिवार , समाज और देश सभी का उत्थान में अपनी अहम भूमिका निभाती है। अंत में भी मैं यही कहना चाहुंगी कि बालिकाओं के विवाह की आयु 18 से 21 वर्ष होना समाज और भारत देश दोनो के लिए एक नवीन दिशा की प्राप्ती है।  


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  1. जब 18 साल की महिलाएं अपने विधायक और सांसद का चुनाव कर सकती हैं तो अपने लिए योग्य जीवनसाथी का चुनाव क्यों नहीं कर सकती हैं। आज भी भारतीय परिवेश परंपरागत रूप में जाना जाता है जहां पर बच्चों के जीवन साथी का निर्धारण उनके माता-पिता द्वारा किया जाता है ।सामाजिक और आर्थिक परिदृश्य में सभी की समान स्थिति नहीं है इस दृष्टिकोण से माता-पिता अपनी लड़की का विवाह 18 साल के बाद करना ही चाहता है क्योंकि उसे अपनी जिम्मेदारियों का निर्वहन शीघ्रता से करना होता है। भारतीय संविधान के अनुच्छेद 14, 15, 16 और 21 में महिलाओं के विकास संबंधी विभिन्न प्रावधान दिए गए हैं । ऐसी स्थिति में लड़कियों के विवाह की आयु 21 वर्ष करना संविधान के विपरीत भी प्रतीत हो रहा है। इसलिए विवाह की आयु का निर्धारण लड़कियों के माता-पिता व लड़कियों पर छोड़ना ही भारतीय परिवेश के हिसाब से बेहतर हो सकता है।

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