आधुनिक परीक्षण से रोक सकेंगें महामारीः डा. डीटी मौर्य

 जौनपुर। वीर बहादुर सिंह पूर्वांचल विश्वविद्यालय के रिसर्च एंड डेवलपमेंट और डिपार्टमेंट ऑफ बायोटेक्नोलॉजी के संयुक्त तत्वावधान में गुरुवार को पशुजन्य रोग और जनस्वास्थ्य का महत्व विषय पर सेमिनार का आयोजन किया गया। इस अवसर पर बतौर मुख्य अतिथि इंडियन कांऊसिंल आफ मेडिकल रिसर्च (आईसीएमआर) के चेयर फॉर वायरोलॉजी एंड जूनोसेस आईसीएमआर नई दिल्ली के डॉक्टर डीटी मौर्य ने कहा कि जब वो जानवरों पर क्रीमीयन कांगों हेमोरेजिक फीवर (सीसीएचएफ) का टेस्ट कर रहे थे तो जो लक्षण जानवरों में मिले उसके बाद यह लक्षण मानवों में भी पाया गया जो उनके लिए भी आश्चर्यजनक था। 

उन्होंने कहा कि कोविड-19 के बाद विश्व में कई और वायरस का खतरा बढ़ रहा है। इससे हमे सचेत रहने की जरूरत है, जितनी जल्दी हम चिकित्सकीय परीक्षण करके उसे पहचान लेंगे उतनी जल्दी उसका निदान संभव हो सकेगा। वह महामारी का रूप नहीं ले पाएगा। सीसीएचएफ के प्रकोप में मृत्यु दर 30 से 60 प्रतिशत है। 

 इस वायरस का लोगो या जानवरों के लिए कोई भी टीका उपलब्ध नही हैबायो सेफ्टी लेवल 3 और 4 लैब दुनिया में चुनिंदा जगहों पर ही है, जिसमें नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ वायरोलाजी एक है। सेंटर फॉर डिजिज कन्ट्रोल एण्ड प्रिवेंशन ने बायो सेफ्टी लैब को 4 श्रेणियों में बांटा गया है, जिसमें सीसीएचएस रिस्क ग्रुप-4 में आता है। हमारे पास मौजूदा माइक्रोबियल कंटेनमेंट काम्प्लेक्स में पहले से ही एक बी एस एल 3 + प्रयोगशाला है, लेकिन बीएसएल- 4 के साथ हमारे पास अटलांटा में रोग नियंत्रण और रोकथाम केंद्रों के बराबर दुनिया की सबसे अच्छी प्रयोगशाला होगी। डी टी मौर्य (आई सी एम आर, चेयर फॉर वायरोलाजी एण्ड जूनोसिस) ने हमें बताया और उन्होंने पहले से ही ऐसे लोगों को प्रशिक्षित किया है जिनकी इस प्रयोगशाला तक पहुंच होगी। अध्यक्षता कर रही कुलपति प्रो. निर्मला एस. मौर्य ने कहा कि ये सेमिनार वर्तमान परिपेक्ष्य में बहुत ही प्रासंगिक है। उन्होंने बहुत सारे पशुजन रोगों का उदाहरण देते हुए कहा की हमे सतर्क और सावधान रहने की आवश्यकता है। उन्होंने एक कविता के माध्यम से कोविड के समय को भी सकारात्मक रूप से लेने के लिए कहा कि कभी कभी जीवन में खामोशी भी चाहिए। सी सी एच एफ जिसे क्रिमियन कांगो रक्तस्रवी बुखार कहा जाता हैं यह वायरस गंभीर वायरल रक्तस्रवि बुखार के प्रकोप का कारण बनता है। 

यह वायरस मुख्य रूप से पशुओं में पाए जाने वाले किलनी से लोगो में फैलता है। यह वायरस हायलोमा टिक से पैदा होता है। मनुष्य के संपर्क से भी यह वायरस फैलता है। सेमिनार का विषय प्रवर्तन डा. प्रदीप कुमार ने किया। मुख्य अतिथि ने वायरोलाजी टेक्नीकल मैन्युल पुस्तक की दो प्रतियां विश्वविद्यालय को भेंट की। इसमें वायोसेफ्टी मेडिकल प्रयोगशाला में किए जाने वाले टेस्टों का विवरण है। साथ ही साथ उन्होंने प्रो. वंदना राय को ई-बुक्स और मैन्युअल्स की एक पेन ड्राइव भी दी। इसमें बायोसेफ्टी से संबंधी पठन-पाठन की दुर्लभ सामग्री है। इससे विश्वविद्यालयों के विद्यार्थियों को लाभ मिलेगा। आईक्यूएसी के समन्वयक प्रो. मानस पाण्डेय ने स्वागत संचालन शोध छात्रा अमृता चौधरी ने और धन्यवाद ज्ञापन प्रो. देवराज सिंह ने किया। कार्यक्रम की संयोजक प्रोफेसर वंदना राय आयोजन सचिव डॉ प्रदीप कुमार थे। इस अवसर पर प्रो. राम नरायन, प्रो. राजेश शर्मा, प्रो. अशोक श्रीवास्तव, प्रो. अविनाश पाथर्डीकर, डा. एसपी तिवारी, ऋषि श्रीवास्तव, डा. मनोज मिश्र, डा. प्रमोद यादव, डा. सचिन अग्रवाल, डा. आलोक गुप्ता, डडा. गिरधर मिश्र, डा. अमरेंद्र सिंह, डा. सुनील कुमार, डा. श्याम कन्हैया,डा प्रमोद कुमार, डा. काजल डे, डा. नीरज अवस्थी, डा. पुनीत धवन, प्राची, ओजस्विनी, शुभम, गुरु प्रसाद, शिवम, अनिकेत, रवि और अभिषेक ने मुख्य अतिथि से सवाल किए।

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