सीडीपीओ की मेहनत रंग लाई, 400 ग्राम बढ़ा बच्ची का वजन

 जौनपुर। बकरी और अपने भोजन की व्यवस्था में दिक्कत देख दादी मां बच्ची को पोषण पुनर्वास केन्द्र (एनआरसी) में भर्ती कराने के लिए तैयार नहीं थीं। बाल विकास परियोजना अधिकारी (सीडीपीओ) मनोज कुमार वर्मा ने पहले मां और फिर पिता से बात की। उनकी मेहनत रंग लाई। एक सप्ताह में ही अति गंभीर कुपोषित (सैम) बच्ची का वजन 400 ग्राम बढ़ गया। वह स्वस्थ होकर घर चली गई। बच्ची को स्वस्थ देखकर अब उसकी मां फूले नहीं समा रही है। 


मामला सिरकोनी ब्लाक के हौज गांव का है। वहां के पवन राजभर और ज्ञानती के घर नौ फरवरी बेटी पैदा हुई। 19 फरवरी को उसका वजन 2.300 किलोग्राम था। इससे वह सुस्त रहती और दूध भी नहीं पीती थी। वहां की आंगनबाड़ी कार्यकर्ता इन्दूबाला उसके घर गईं। उन्होंने बच्ची की मां से उसके स्वास्थ्य के संबंध में बात की और बच्ची को पोषण पुनर्वास केन्द्र (एनआरसी) में भर्ती कराने को कहा। सब कुछ जानकर मां तो भर्ती कराने के लिए तैयार हो गई लेकिन बच्ची की दादी नहीं तैयार हुईं। उसने कहा कि तुम चली जाओगी तो बकरी को कौन खिलाएगा और कौन मुझे खाना बनाकर खिलाएगा। परिवार को समझा पाने में नहीं कामयाब होने पर इन्दूबाला ने स्थिति को गंभीरता से सिरकोनी के सीडीपीओ मनोज कुमार वर्मा को अवगत कराया। इस पर सीडीपीओ भी मौके पर पहुंचे। उन्होंने बच्ची की दादी से पूछा कि बच्ची को एनआरसी में भर्ती कराने से आपको क्या दिक्कत है? भर्ती कराने से उसका वजन बढ़ जाएगा। वह स्वस्थ हो जाएगी। जितने दिन भर्ती रहेगी प्रतिदिन 50 रुपये के हिसाब से मिलेगा भी। बच्ची की दादी तब भी तैयार नहीं हुईं।

  दादी के नहीं तैयार होने पर सीडीपीओ मनोज कुमार वर्मा ने बच्ची के पिता पवन राजभर से बात की। वह चेन्नई में नौकरी करते हैं। उन्हें समझाया कि बच्ची बहुत कमजोर है और कभी भी कुछ हो सकता है। भर्ती करा दीजिये, वहां पर नहीं अच्छा लगता है तो तुरंत गाड़ी से वापस करा दूंगा। 15 मिनट समझाने पर पिता तैयार हो गए। बच्ची एक सप्ताह भर्ती रही। इस दौरान उसका वजन 400 ग्राम बढ़ गया। 25 मई को वह डिस्चार्ज हो गई। इस समय उसका वजन 2.700 किलोग्राम हो गया। अब देखने में भी अच्छी लग रही है।

सीडीओ ने किया था निरीक्षण: बच्ची के भर्ती रहने के दौरान मुख्य विकास अधिकारी (सीडीओ) अनुपम शुक्ला एनआरसी का निरीक्षण करने पहुंचे थे। उन्होंने बच्ची की मां ज्ञानती से पूछा था कोई दिक्कत तो नहीं है? दिक्कत हो तो बताना। इस दौरान डीपीओ डा आरबी सिंह तथा सीडीपीओ मनोज कुमार वर्मा भी मौजूद थे। 

  23 जून 2020 को खुलने के बाद से लेकर आज तक एनआरसी ऐसे ही 303 बच्चों को कुपोषण से मुक्त कराकर उनके मां-बाप के जीवन में खुशहाली दे चुका है।एनआरसी प्रभारी डॉ राम नगीना कहते हैं कि यहां पर कुपोषित बच्चों के इलाज के लिए चार श्रेणियां बनी हुई हैं जिन्हें हम स्टैंडर्ड डेविएशन (एसडी) कहते हैं जो कि बच्चे की उम्र और बाजुओं की गोलाई नापकर तय किया जाता है। 01 एसडी और 02 एसडी श्रेणी के बच्चों का इलाज स्थानीय प्राथमिक/सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र पर ही हो जाता है। 03एसडी श्रेणी के बच्चे एनआरसी आते हैं जबकि चौथी श्रेणी में न्यूरो और कार्डियक पीड़ित बच्चे आते हैं। उनका इलाज मेडिकल कालेज में होता है।

  उन्होंने बताया कि एनआरसी आने बच्चे की पहले दिन भूख की जांच की जाती है। बच्चे और उसकी मां को समय-समय पर खाना दिया जाता है। बच्चे की कुुुपोषण की स्थथिति के अनुसार डाइट चार्ट तैयार कर उसे पोषक भोजन दिया जाता है। साथ आने वाली मां/अभिभावक को 50 रुपए प्रतिदिन के हिसाब से अलग से खाने के लिए मिलता है। बच्चे की जांच और दवा सब मुफ्त रहती है। जो दवा अस्पताल में रहती हैै, दे दी जाती है। नहीं रहती है तो खरीद कर दी जाती है। अस्पताल आने-जाने मेंं भी मरीज का कुछ खर्च नहीं होता है। राष्ट्रीय बाल स्वास्थ्य कार्यक्रम (आरबीएसके) के लोग, आशा, आंगनबाड़ी कार्यकर्ता, एएनएम उसे लेेेकर आते हैं और ले जाते हैं। पीड़ित परिवार का पैसा खर्च नहीं होता है।

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