सावरकर के चिंतन में था सम्पूर्ण राष्ट्र का विकास: प्रो अविनाश

जौनपुर।वीर बहादुर सिंह पूर्वांचल विश्वविद्यालय, जौनपुर द्वारा "आजादी के अमृत महोत्सव" कार्यक्रम  के अन्तर्गत ‘विनायक दामोदर सावरकर जयंती' के उपलक्ष्य में शनिवार की शाम क्रांतिकारी आंदोलन के विकास में वीर सावरकर का योगदान विषयक वेबिनार हुआ।यह आयोजन कुलपति प्रो. निर्मला एस. मौर्य के संरक्षकत्व में महिला अध्ययन केन्द्र द्वारा आयोजित किया गया।


वेबिनार के मुख्य वक्ता प्रबंध अध्ययन संकाय के अध्यक्ष प्रो अविनाश पाथर्डीकर ने विस्तार से विनायक दामोदर सावरकर के कृतित्व एवं व्यक्तित्व पर प्रकाश डाला। उन्होंने कहा कि विनायक दामोदर सावरकर काले पानी की सजा के दौरान कोयले से जेल की दीवारों पर हजारों कविताएं लिखी और उन्हें याद किया। जिस जेल में कुछ ही महीने की सजा में कैदी आत्महत्या कर लेते हैं वहां वीर सावरकर ने 11 महीने बिताया और सृजन किया।

उन्होंने कहा कि वीर सावरकर ने संपूर्ण राष्ट्र के विकास का चिंतन किया था। नेताजी सुभाष चंद्र बोस को आजादी की लड़ाई के लिए प्रेरित करने में उनका बड़ा योगदान रहा।

उन्होंने कहा कि वीर सावरकर एक कल्पना कीजिए... तीस वर्ष का पति जेल की सलाखों के भीतर खड़ा है और बाहर उसकी वह युवा पत्नी खड़ी है, जिसका बच्चा हाल ही में मृत हुआ है...

इस बात की पूरी संभावना है कि अब शायद इस जन्म में इन पति-पत्नी की भेंट न हो. ऐसे कठिन समय पर इन दोनों ने क्या बातचीत की होगी. कल्पना मात्र से आप सिहर उठे ना?? जी हाँ!!! मैं बात कर रहा हूँ भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के सबसे चमकते सितारे विनायक दामोदर सावरकर की. यह परिस्थिति उनके जीवन में आई थी, जब अंग्रेजों ने उन्हें कालापानी  (Andaman Cellular Jail) की कठोरतम सजा के लिए अंडमान जेल भेजने का निर्णय लिया और उनकी पत्नी उनसे मिलने जेल में आईं.

मजबूत ह्रदय वाले वीर सावरकर (Vinayak Damodar Savarkar) ने अपनी पत्नी से एक ही बात कही... – “तिनके-तीलियाँ बीनना और बटोरना तथा उससे एक घर बनाकर उसमें बाल-बच्चों का पालन-पोषण करना... यदि इसी को परिवार और कर्तव्य कहते हैं तो ऐसा संसार तो कौए और चिड़िया भी बसाते हैं. अपने घर-परिवार-बच्चों के लिए तो सभी काम करते हैं. मैंने अपने देश को अपना परिवार माना है, इसका गर्व कीजिए. इस दुनिया में कुछ भी बोए बिना कुछ उगता नहीं है. धरती से ज्वार की फसल उगानी हो तो उसके कुछ दानों को जमीन में गड़ना ही होता है. वह बीच जमीन में, खेत में जाकर मिलते हैं तभी अगली ज्वार की फसल आती है. यदि हिन्दुस्तान में अच्छे घर निर्माण करना है तो हमें अपना घर कुर्बान करना चाहिए. कोई न कोई मकान ध्वस्त होकर मिट्टी में न मिलेगा, तब तक नए मकान का नवनिर्माण कैसे होगा...”. कल्पना करो कि हमने अपने ही हाथों अपने घर के चूल्हे फोड़ दिए हैं, अपने घर में आग लगा दी है. परन्तु आज का यही धुआँ कल भारत के प्रत्येक घर से स्वर्ण का धुआँ बनकर निकलेगा. यमुनाबाई, बुरा न मानें, मैंने तुम्हें एक ही जन्म में इतना कष्ट दिया है कि “यही पति मुझे जन्म-जन्मांतर तक मिले” ऐसा कैसे कह सकती हो...” यदि अगला जन्म मिला, तो हमारी भेंट होगी... अन्यथा यहीं से विदा लेता हूँ.... (उन दिनों यही माना जाता था, कि जिसे कालापानी की भयंकर सजा मिली वह वहाँ से जीवित वापस नहीं आएगा).


अब सोचिये, इस भीषण परिस्थिति में मात्र 25-26 वर्ष की उस युवा स्त्री ने अपने पति यानी वीर सावरकर से क्या कहा होगा?? यमुनाबाई (अर्थात भाऊराव चिपलूनकर की पुत्री) धीरे से नीचे बैठीं, और जाली में से अपने हाथ अंदर करके उन्होंने सावरकर के पैरों को स्पर्श किया. उन चरणों की धूल अपने मस्तक पर लगाई. सावरकर भी चौंक गए, अंदर से हिल गए... उन्होंने पूछा.... ये क्या करती हो?? अमर क्रांतिकारी की पत्नी ने कहा... “मैं यह चरण अपनी आँखों में बसा लेना चाहती हूँ, ताकि अगले जन्म में कहीं मुझसे चूक न हो जाए. अपने परिवार का पोषण और चिंता करने वाले मैंने बहुत देखे हैं, लेकिन समूचे भारतवर्ष को अपना परिवार मानने वाला व्यक्ति मेरा पति है... इसमें बुरा मानने वाली बात ही क्या है. यदि आप सत्यवान हैं, तो मैं सावित्री हूँ. मेरी तपस्या में इतना बल है, कि मैं यमराज से आपको वापस छीन लाऊँगी. आप चिंता न करें... अपने स्वास्थ्य का ध्यान रखें... हम इसी स्थान पर आपकी प्रतीक्षा कर रहे हैं...”.


क्या जबरदस्त ताकत है... उस युवावस्था में पति को कालापानी की सजा पर ले जाते समय, कितना हिम्मत भरा वार्तालाप है... सचमुच, क्रान्ति की भावना कुछ स्वर्ग से तय होती है, कुछ संस्कारों से. यह हर किसी को नहीं मिलती.


आज उनकी जयंती पर उन्हें श्रद्धापूर्वक कोटिशः नमन आज़ादी का अमृत महोत्सव के नोडल अधिकारी प्रो. अजय प्रताप सिंह ने स्वागत एवं

कार्यक्रम की आयोजन सचिव डॉ० जान्हवी श्रीवास्तव ने संचालन किया आभार डॉ दिग्विजय राठौर ने ज्ञापित किया ।इस अवसर पर डॉ राकेश यादव ,डॉ गिरधर मिश्र,डॉ राजेश,डॉ अन्नू,डॉ मनोज ,डॉ दिग्विजय सिंह,डॉ सुनील,डॉ नितेश,डॉ शशिकांत,डॉ रेखा ,डॉ पूजा ,डॉजया ,डॉ शिखा श्रीवास्तव,डॉ पूनम,डॉ मुक्ता राजे,उपस्थित रहे तथा तकनीकी सहायता शोधछात्र अवनीश विश्वकर्मा ने दिया

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  1. सावरकर का चिंतन अंग्रेजों से प्रतिमाह *साठ रुपये* पेंशन के लिए था। एक तरफ जहां महात्मा गांधी के नेतृत्व में देश अपने अपने तरीके से आजादी के लिए संघर्ष कर रहा था वहीं दूसरी तरफ *सावरकर* जैसें लोग फिरंगियों की कृपा पाने के लिए क्रांतिकारियों के खिलाफ कार्य कर रहे थे। इतिहास और देश सावरकर को कभी माफ नहीं करेगा।

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