शेर चुनाव निशान लेकर राजनीति में कदम रखने वाले गिरीश श्रीवास्तव ने ऐसी दहाड़ लगायी कि बन गये आजमगढ़ के विकास पुरूष

फाइल फोटो स्व 0 गिरीश चंद्र श्रीवास्तव 
लखनऊ। शेर चुनाव निशान लेकर नगर निकाय चुनाव में उतरे गिरीश चंद्र श्रीवास्तव ने विकास की ऐसी दहाड़ लगायी कि वे आजमगढ़ जिले के विकास पुरूष बन गये। गिरीश चंद्र श्रीवास्तव के द्वारा कराये गये विकास कार्य, शिक्षा संस्कृति के विकास और साहित्य को प्रश्रय देने के कारण उनके दिवंगत हुए बार वर्ष हो गये इसके बाद भी आजमगढ़ की जनता आज तक उन्हे भूल नही पायी है। जनता ने अपने लोकप्रिय नेता के निधन के बाद भी उनके परिवार पर लगातार अपना आर्शीवाद बनाये हुए जिसका परिणाम है उनके पत्नी श्रीमति शीला श्रीवास्तव आज भी नगर पालिका परिषद की अध्यक्ष है। 

आपको बताते चले कि आजमगढ़ के राजनीति के केन्द्र बिन्दु रहे नगर पालिका अध्यक्ष स्वर्गीय गिरीश चंद्र श्रीवास्तव राज्यकर्मचारी संयुक्त परिषद जौनपुर के जिलाध्यक्ष व एआरटीओ विभाग से सेवानिवृत्ति कर्मचारी राकेश कुमार श्रीवास्तव के बड़े भाई थे। 

गिरीश चंद्र श्रीवास्तव कहने को तो वह जीवन भर नगर की राजनीति किये मगर शहर के बाहर ही नहीं जिले के बाहर भी कार्यो की वजह से उनकी अलग ही लोकप्रियता थी। व्यवहार कुशलता ऐसा कि वह जिससे एक बार मिल लिये वह उनका होकर ही रह गया। बार-बार वह उनसे मिलने की हसरत पाले रहा। अपने इसी व्यक्तित्व के कारण वह निर्दलीय प्रत्याशी के रूप में भी नगर पालिका अध्यक्ष बनने में कामयाब रहे। अपने व्यक्तित्व की वजह से ही वह अपनी बारहवीं पुण्यतिथि पर श्रद्धा पूवर्क याद किये जायेंगे।रविवार को बहुत ही सादगी से उनके आवास पर पुण्यतिथि मनायी जायेगी। 

साधारण परिवार में 25 अगस्त 1954 में पैदा हुए गिरीश चन्द्र श्रीवास्तव का अभावों के साथ चोली दामन का साथ रहा। यही कारण था कि वह गरीबों का दर्द समझते थे, क्योंकि यह दंश उन्होंने खुद भी झेला था। कोई गरीब व्यक्ति अगर अपनी लड़की की शादी का निमंत्रण उन्हें भेज दिया तो शादी के दिन उसके दरवाजे पर पालिका का टैंकर पानी लिये पहुंच जाते थे, साथ ही सफाईकर्मी झाडू लगाकर चूना छिड़काव कर देते थे। वह खुद शाम को बारात आने से पहले बारात की अगवानी के लिये पहुंच जाते थे। शिक्षा-दीक्षा बहुत ज्यादा न होने के बावजूद समाज के लिये कुछ करने का जज्बा उनके अन्दर कूट-कूट कर भरा हुआ था। यही जज्बा उनको देश के लिये कद्दावर राजनेता चन्द्रजीत यादव के निकट ले गया। चन्द्रजीत जी की पारखी नजरें उन्हें पहचान गयी और उन्होंने गिरीश जी को अपना राजनैतिक शिष्य बना लिया। 

अपनी समर्पण भावना के कारण गिरीश जी ने चन्द्रजीत जी के परिवार से ऐसी जगह बनायी कि वह परिवार के सदस्य के तरह बेरोक-टोक किचन तक पहुंच जाते। राजनैतिक जीवन शुरू करने के बाद वर्ष 1984 उनकी शादी हुई। विवाह के बाद भी उनके सामाजिक जीवन में साथ देने के लिये पत्नी के रूप में एक बेहतर सहयोगी मिला। वर्ष 1989 मे वह शेर के निशान से पहली बार सभासद चुने गये। एक बार वह नगर पालिका में प्रवेश किये तो फिर कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा। वर्ष 1995-96 में वह घड़ी निशान से दुबारा सभासद चुने गये। दो बार सभासद रहते हुये उन्होंने अपने जुझारू तेवर के बूते पूरे नगर की जनता के दिल में अपनी जगह बना ली। 

यही वजह रही कि वर्ष 2000 की नगर निकाय चुनाव में तत्कालीन पालिकाध्यक्ष माला द्विवेदी को हराकर पालिकाध्यक्ष पद पर रिकार्ड मतों से जीत हासिल किये। उनके जनाधार का ग्राफ लगातार बढ़ता ही चला गया। यही वजह रही कि वर्ष 2006 में पालिकाध्यक्ष के चुनाव में कांग्रेस ने उनको उम्मीदवारी नहीं दी। ऐसे में वह निर्दल प्रत्याशी के रूप में चूल्हा निशान से चुनाव लड़े और ऐतिहासिक जीत हासिल की। निर्दल चुनाव जीतने के बाद वह बसपा में शामिल हो गये। 

अध्यक्ष के अपने कार्यकाल के दौरान उन्होंने विकास की इतनी लम्बी लकीर खींच दी कि हर कोई उनके आगे बौना नजर आने लगा और नगरवासियों ने खुद उनको विकास पुरूष का नाम दे दिया। हर जगह विकास कार्यो के उनके नाम के पत्थर लगे नजर आये। तत्कालीन शिक्षक पंचायत पंचानन राय उनके विकास कार्यो को देखकर काफी प्रभावित हुए। यही कारण रहा कि वह उनको विकास में हर संभवन सहयोग देने और उनको बेटे की तरह मानने लगे। उनके विकास कार्यो को ही देखकर नगर के बाहर के लोग चाहते थे कि गिरीश उनका भी प्रतिनिधित्व करें। 

आजमगढ़ सदर विधानसभा क्षेत्र के गांवों के लोग उनसे मिलकर यह आग्रह करने लगे कि वह विधानसभा चुनाव में उतरे और उनका प्रतिनिधित्व करें। यह अलग बात है कि लोगों की यह इच्छा पूरी नहीं हुई और निष्ठुर ईश्वर ने इस विकास पुरूष को 12 जून 2010 को जनता से छीनकर अपने पास बुला लिया। उनके निधन के बाद पालिकाध्यक्ष का उपचुनाव हुआ तो उनके कार्यो की वजह से ही उनकी पत्नी शीला श्रीवास्तव को अध्यक्ष पद पर ऐतिहासिक जीत मिली। हालांकि इसके बाद हुए चुनाव में इंदिरा देवी जायसवाल से चुनाव हार गई। लेकिन पांच साल बाद वर्ष 2018 को पुनः एक बार उनकी पत्नी पालिकाध्यक्ष का चुनाव जीत कर नगर का प्रतिनिधित्व कर रही हैं। स्व. गिरीश जी जनता से बिछडे़ बारह साल हो गये मगर वह लोगों के दिलों में आज भी जिन्दा है और शायद कभी भुलाये भी नहीं जा सकेंगे।

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