मौत की सांस गिन रही युवती को डा0 लाल बहादुर सिद्धार्थ ने दिया जीवनदान

 

जौनपुर। मौत की आखिरी सांस का इंतजार कर रही युवती को जिले के प्रख्यात सर्जन डा0 लाल बहादुर सिद्धार्थ ने जीवनदान दे दिया। जिसकी जिन्दगी अब-तब हुई थी उसे स्वस्थ पाकर परिजन फूले नहीं समा रहे हैं। बताया जाता है कि अम्बेडकर नगर (टांडा) जनपद के किछौछा निवासी चन्द्रभान की पुत्री प्रियंका उम्र 21 वर्ष पिछले चार माह से पेट दर्द से परेशान थी। सर्व प्रथम उसे स्थानीय चिकित्सक को दिखाया गया परन्तु आराम नहीं मिला। बाद में जिले के नामी-गिरामी चिकित्सकों के अलावा वहां के सरकारी मेडिकल कालेज में भी दिखाया गया किन्तु कोई हल नहीं निकला। दर्द असहनीय होती गयी। इसके बाद उसे पीजीआई लखनऊ ले जाया गया। वहां चिकित्सकों ने तमाम जांच के बाद पाया कि इसके लीवर में हाईडेटेड सिस्ट है। जिसका बचाव सिर्फ ऑपरेशन है लेकिन ऑपरेशन करने पर वह फट जाएगा जिससे उसकी मौत हो सकती है। साथ में बच्चेदानी भी निकालनी पड़ेगी। ऐसे में इसका बच पाना अब मुश्किल है। पीजीआई के कई डाक्टरों की टीम कोई निष्कर्ष नहीं निकाल पायी और उसे घर भेज दिया गया। इस बीच युवती को सांस लेने में परेशानी होने लगी। वह लम्बी-लम्बी सांसे लेने लगी। दाना-पानी छूट गया। वह मरणासंन हो गयी। अब उसकी सांसे थमने का इंतजार हो रहा था। नात-रिस्तेदार देखने के लिए पहुंंच रहे थे। किसी ने सिद्धार्थ हॉस्पिटल के वरिष्ठ सर्जन डा0 लाल बहादुर सिद्धार्थ को दिखाने की बात कही। परिजन द्वारा उसे डा0 सिद्धार्थ को दिखाया गया। उसकी बिगड़ी दिशा एवं घर वालों के अनुनय-विनय पर उन्होंने सारी रिपोर्ट देख अपने यहां भर्ती कर लिया। बीते बुधवार को अपनी टीम के साथ ऑपरेशन कर दिया। ऑपरेशन में दो घंटे से अधिक समय लगा। ऑपरेशन के समय उसके पेट से लगभग सैकड़ों हाईडेटेड सिस्ट निकला। उसकी बच्चेदानी भी नहीं निकालनी पड़ी। ऑपरेशन के दूसरे दिन से ही उसकी सेहत में सुधार होने लगा।

 अंतिम सांस लेने वाले मरीज की नई जिन्दगी पाकर परिजन की खुशी उस समय देखते ही बन रही है। उसने मीडिया को बताया कि अगर हम लोग डा0 सिद्धार्थ के पास न आए होते तो प्रियंका की जिन्दगी न बच पाती। ऐसे में वह हमारे लिए डाक्टर नहीं बल्कि भगवान है। मुझसे पैसे की भी कोई मांग नहीं की गयी। पहले मेरे मरीज की जान बचायी गयी बाद में मुझसे जो हो सका बश वहीं दिया गया। अस्पताल के स्टाफ नर्सों द्वारा समय-समय पर सारी दवाएं अभी भी दी जा रही है। डाक्टर साहब भी दिन में दो से तीन बार स्वयं आकर कुशल क्षेम पूछते हैं। काश अगर यही जानकारी पहले हो गयी होती तो हम लोगों को कही भाग दौड़ नहीं करनी पड़ती। कहने के लिए भले ही लोग बीएचयू और पीजीआई लखनऊ की बड़ाई करते हैं लेकिन वह सिर्फ कहने के लिए है। मरीजों को चाहिए कि वह उक्त अस्पतालों में जाने से पहले सिद्धार्थ हॉस्पिटल आए। इसके बाद उन्हें कही जाने की जरूरत ही नहीं पड़ेगी।

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  1. Dr.sahab ji ka ishwar roop ka jitna srahna ki jay Km hai ,
    Sir aap ki umar dirghayu ho.🙏

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  2. Well done Bade bhaiya jii ❤️🙏🏼🙏🏼🙏🏼

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  3. बहुत लोगो को जिंदगी देने वाले आज पुनः एक नई जिंदगी दिए
    आदरणीय डॉ साहब व उनकी पूरी टीम सदा सलामत रहे ऐसे ही लोगो को नया जीवन दान देते रहे🙏🙏🙏🙏🙏🙏

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  4. आपको हृदय की गहराईयो से बहुत बहुत साधुवाद

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  5. डॉक्टर साहब की तरह जिले मे कोई डॉक्टर नहीं है

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