बरसात में देरी और गर्मी से बत्तख पालन कठिन
विकास खंड मछलीशहर की ग्राम पंचायत बामी में इस वर्ष गांव का इकलौता बत्तख फार्म खुला है। बत्तख पालन कई मामलों में मुर्गी पालन से भिन्न है बत्तखों की रोग प्रतिरोधक क्षमता मुर्गियों की तुलना में अधिक होती है। बत्तखों को रात में बन्द घरों में रखा जाता है और दिन में अहाते या फिर बाहर खुले में टहलाया जाता है। बत्तख के अण्डे मुर्गियों की तुलना में अधिक मजबूत और अधिक वजन दार होते हैं और मुर्गियों की तुलना में अधिक अण्डे भी देती हैं। इन्हें तैरने के लिये पानी की भी जरूरत होती है। चूंकि बसुही नदी में साल में करीब 9 से 10 महीने तक पानी रहता है वह भी नदी की तट रेखा के नीचे इससे बत्तखों को आसानी से जल क्रिया के लिए नदी में विचरण कराया जा सकता है। फार्म के मालिक मनोज सरोज ने इन्हीं परिस्थितियों को ध्यान में रखते हुए बत्तख पालन का निर्णय लिया।
उन्होंने बत्तख के 1500 बच्चों के साथ फार्मिंग शुरू की किन्तु प्रबंधन की अनुभवहीनता और भीषण गर्मी के कारण काफी संख्या में बच्चे मर गये अब फार्म में इनकी संख्या घटकर 1000 से भी कम हो गयी है। बत्तख पालन मांस एवं अण्डे दोनों के लिए किया जाता है किन्तु इसकी फार्मिंग मुख्य रूप से अण्डे के लिए ज्यादा लोकप्रिय है। फार्म में बत्तखों की देखभाल करने वाले बामी गांव के सभाजीत सरोज कहते हैं कि गर्मी अधिक पड़ने से काफी संख्या में बत्तखों की मृत्यु हो गई है। अब ज्यादातर बत्तख अण्डे देने की उम्र के हो गये हैं किन्तु बरसात की देरी के चलते वे अपने को प्रजनन के अनुकूल नहीं पा रहें जिससे अण्डा देने की प्रक्रिया बिलम्बित हो रही है।