इमामबाड़ा" किसे कहते हैं ? बता रहे हैं एस एम मासूम

 "इमामबाड़ा" किसे कहते हैं ?  यहां हर धर्म के लोग क्यू आ सकते है?



मुहर्रम का नाम आते ही इमामबाड़ों का ज़िक्र होने लगता है की मजलिस हो रही है जुलुस ऐ अज़ादारी निकल रहा है  लेकिन बहुत से लोग यह नहीं समझ पाते की यह इमामबाड़े क्या है और क्यों बने ?

मुसलमानो के इबादत करने की जगह मस्जिद है जहां नमाज़ें क़ायम हुआ करती है और वहां वही जाता है जिसको नमाज़ पढ़नी हो | कर्बला में नवासा ऐ रसूल हज़रत इमाम हुसैन के ज़ालिम बादशाह जो खुद को खलीफा मानता था -यज़ीद द्वारा शहीद किये जाने के बाद से यह ज़रूरत महसूस की जाने लगी की कहीं इन ज़ालिमों की वजह से इस्लाम  जो हकीकत में इंसानियत का पैग़ाम देता है ज़ालिमों का धर्म बन के रह जाय | लेकिन पैगम्बर ऐ इस्लाम के नवासे इमाम हुसैन के सब्र और शहादत ने यह दुनिया को बता दिया की इस्लाम वही जो इंसानियत का मानवता का पैग़ाम दे | कर्बला में इमाम हुसैन की शहादत के बाद सिर्फ मुसलमान ही नहीं हर धर्म के लोग इमाम के दुःख को सुन के आंसू बहाते और उन्हें याद करते और यह सिलसिला आज तक चला आ रहा है | इसलिए इस बात की आवश्यकता महसूस की जाने लगी जहाँ हर धर्म के लोग एक साथ बैठ के कर्बला के शहीदों की याद में शोक सभाएं कर सकें 

इमाम हुसैन के चाहने वालों ने एक जगह बनायी जिसे इमामबाड़ा , इमामबारगाह,अज़ाख़ाना ,हुसैनिया , इत्यादि नामो से जाना गया  जिसका इस्तेमाल शोक सभाएं इमाम हुसैन की याद में आयोजित करने के लिए किया जाता है | इस इमामबाड़े में हर हुसैन के चाहने वाले का स्वागत किया जाता है चाहे वो किसी भी धर्म का हो अमीर या ग़रीब हो | 


अधिकतर यह इमामबाड़ा दक्षिण की तरफ रुख करके  बनाया जाता है और इसकी छतों पे गोल गुम्बद हुआ करती है लेकिन अब यह बिना गुम्बदों के भी बनता है | इस इमामबाड़े के अंदर दिवार से लगा लगभग तीन फ़ीट ऊंचा दर बना होता है जिसे "शहनशीन " कहा जाता है जो छोटे कमरे के अकार का होता है और संख्या में कई हो सकते हैं जिनमे ज़रीह ,ताज़िया ,अलम ,ज़ुल्जिनाह सजाया जाता है | यह तीन फ़ीट ऊंची "शहनशीन "में इसलिए रखा जाता है जिससे इमाम हुसैन के चाहने वाले आके इसे या इसके दर को चूम सकें | 


इस इमामबाड़े में एक या दो बड़े हाल हुआ करते हैं जो "शहनशीन " से जुड़े होते  है और उस हॉल में एक लकड़ी का बना 5 से 10 सीढ़ियों वाला मिम्बर रखा होता है जिसपे शोक सभा आयोजित होने पे मुख्य वक्ता  जिसे ज़ाकिर कहते हैं बैठता है और नीचे फर्श पे चादर या कालीन बिछी होती है जिसपे उसको सुनने वाले मिलजुल के बैठते हैं और इमाम हुसैन पे हुए ज़ुल्म को सुनके आँसू बहाते हैं | 


लखनऊ के छोटा इमामबाड़ा ,बड़ा इमामबाड़ा ,जौनपुर का सदर इमामबाड़ा ,कल्लू का इमामबाड़ा इत्यादि इसके उदाहरण हैं

इन  इमामबाड़ों से इंसानियत का पैग़ाम दिया  जाता है और यहाँ हर धर्म के लोगों का स्वागत होता है | इन्ही इमामबाड़ों से मजलिस या शोकसभा के बाद अज़ादारी का जुलूस भी निकलता है जिसमे लोग अलम ,ताज़िया ,तुर्बत इत्यादि हाथों में लिए , आँखों में आंसू लिए मातम करते सड़कों से होते हुए किसी दूसरे इमामबाड़े तक जाते हैं |

एस एम मासूम

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