जिहादी-शहादत मारक दस्ता
मारक दस्ते का अस्तित्व नेशनल डोमेस्टिक फ्रंट पी. एफ.आई की पूर्ववर्ती संस्था जिसे जिहादी शहादत के नाम से जाना जाता था जिसका मतलब पवित्र लड़ाई का शहीद होता है। इन दस्तों में सदस्यों का चयन सावधानी पूर्वक किया जाता है और उन्हें हथियार और बिस्फोटक का प्रशिक्षण दिया जाता है। इन दस्तों का गठन 1990 के दौरान एन. डी. एफ को संरक्षित करने के लिए बनाया गया जिसे आर.एस.एस का तथाकथित दुश्मन माना जाता है। उसी रणनीति के तहत हथियारों का प्रशिक्षण दिया गया। दस्ते के सदस्यों का चयन उनके संगठन के प्रति अत्याधिक वफादारी और उनके शारीरिक योग्यता के आधार पर ही किया जाता था। समूह में अन्य सदस्यों का चयन उनके आपराधिक इतिहास पर किया जाता था। जिहादी शहादत की अवधारणा पी. एफ.आई की आत्मा एवं उनके चिट्ठी में दिखती थी। कार्य पर इसकी तीव्रता अधिक थी। एन.एस.जी कमांडों शेखर राठौड, रामलिंगम एवं रूद्रेश कुमार की हत्या सभी पी. एफ.आई के मारक दस्ता द्वारा किया गया था पी. एफ.आई का मारक दस्ता का गठन कार्य के जरूरत के अनुसार किया जाता था और कार्य समाप्त होते ही इस दस्ते का विघटन कर दिया जाता था। इन दस्ते को पी.एफ.आई के शब्दावली में ऑपरेशनल दस्ते के नाम से भी जाना जाता है। एक अधिकारी जो कि शेखर राठौड़ के हत्या के मामले की जॉच कर रहे थे उन्होंने बताया की मुख्य टीम जो कि दस्ते के कोर का निर्माण हत्या करने के लिए बनाएगा उनमें मुख्यतः अच्छी तरह से प्रशिक्षित चार से पाँच पी. एफ.आई कैडर को सम्मिलित किया जाता है। टास्क हत्या को पूरा करने के लिए कोर दस्ते के सपोर्ट दस्ते द्वारा मदद पहुँचाया जाता है जिसमें मुख्य रूप से स्थानीय कैडर का प्रयोग किया जाता है जिन्हें
स्थानीय जानकारी है। हत्या को तलवार एवं बाइक द्वारा अंजाम दिया जाता और बाइक को कार से तबज्जो दी जाती है क्योंकि इन्हें पतली गल्ली और संकरी सड़कों पर ले जाने में आसानी होती है और हत्या को अंजाम देने के बाद इसे आसानी से निपटाया जा सकता है।
इतिहास गवाह है कि गुरिल्ला सेना के मुकाबले पारंपरिक सेना से लड़ाई करना आसान है। जबकि, भारत चीन और पाकिस्तान के सीमाओं की रक्षा करने में व्यस्त हैं पी. एफ. आई कैडर की हथियार प्रशिक्षण और उनके मारक दस्ते का निर्माण भारत के आंतरिक सुरक्षा में गहरा हस्तक्षेप कर सकता है जिसका असर भारत के समूचे ताकत पर पड़ेगा। जैसा कि पी.एफ.आई के आतंकी एवं हिंसा के मामले ने इसका असली चहरा दिखाया है, संगठित हथियार प्रशिक्षण एवं गुरिल्ला वार को नकारा नहीं जा सकता है। आखिरकार भारत कभी भी ऐसे समूह का सहन नहीं कर सकता जो कि अपने भौगोलिक सीमाओं में माओवादी से भी खतरनाक हो।