185 साल से परम्परा का निर्वाह करता चला आ रहा सीता श्रृंगार मेला

 

शाहगंज, जौनपुर। स्थानीय नगर की ऐतिहासिक रामलीला, दशहरा और भरत-मिलाप की कड़ी में अगला पड़ाव है सीता श्रृंगार हाट का। चूड़ी मेला के नाम से मशहूर इस अद्भुत मेले का इतिहास भी काफी पुराना है। शुक्रवार को मेले का पहला दिन है और यह धनतेरस के एक दिन पहले तक चलेगा। मेले की लोकप्रियता का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि इस मेले में शिरकत करने के लिये नगर की बेटियां अपने ससुराल से मायके आती हैं। जानकारी के अनुसार शाहगंज में तकरीबन 185 वर्षों से निर्बाध लगने वाले इस ऐतिहासिक मेले को लेकर मान्यता है कि लंका पर विजय कर रावण वध के बाद मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान श्रीराम, मां जानकी अयोध्या पहुंचे तो माँ सीता ने गेरुआ चोला छोड़कर अयोध्या के श्रृंगार हाट से श्रृंगार सामग्री की खरीददारी की थी। उसी तर्ज पर शाहगंज के अलीगंज मोहल्ले में चूड़ी का मेला लगाया जाने लगा। इसके चलते मोहल्ले का नाम ही चूड़ी मोहल्ला पड़ गया। मेले में जौनपुर के अलावा वाराणसी, आजमगढ़, सुल्तानपुर तक के नामी-गिरामी दुकानदार पहुंचकर अपनी दुकान लगाते हैं। मेले में श्रृंगार सामग्री से लेकर चूड़ियां, कंगन, जूते, चप्पल, बच्चों के खिलौने, झूले के अलावा चाट पकौड़े की दुकानें सजती हैं। खासकर गुड़ से बनने वाली चोटहा जलेबी की कई दुकानें लगती हैं। एक खास बात ये भी है कि सप्ताहभर चलने वाले मेले में पुरुषों का प्रवेश सिर्फ दुकानदार के तौर पर ही होता है। इस ऐतिहासिक मेले में पहुंचने के लिये दूर दराज ब्याही नगर की बेटियों को भी बेसब्री से इंतजार रहता है जो दशहरा और भरत-मिलाप सम्पन्न होते ही मेला देखने, जमकर खरीदारी करने और सहेलियों से मिलने के लिये मायके आने की तैयारी में जुट जाती है। मेले में हिन्दू-मुस्लिम सभी महिलाओं की बराबर की भागीदारी गंगा-जमुनी संस्कृति की अपने आप में एक अनोखी मिसाल कायम करती है।

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