फूलें कास सकल महि छाई । जनु बरखा कृत प्रगट बुढ़ाई।। पढ़िए रामचरितमानस में किस घास के लिखी गई यह पक्तियां
लगभग वर्षा ऋतु बीत जाने के बाद धीरे -धीरे सर्दियों की आहट मिलना शुरू हो गई है।देर रात एवं भोर में मौसम हल्का ठंडा होने लगा है, सुबह-सुबह अब ग्रामीण इलाकों में स्पष्ट धुंध देखी जा सकती है।जो सर्दियों के आगमन की आहट है। ग्रामीण इलाकों में में काश का फूलना सर्दियों की आहट मानी जाती है। रामचरितमानस में गोस्वामी तुलसीदास ने भी इसी प्रकार का वर्णन किया है।
बरषा बिगत सरद ऋतु आई। लछमन देखहु परम सुहाई।।
फूलें कास सकल महि छाई। तनु बरखा कृत प्रगट बुढ़ाई।।
श्रीराम जी लक्ष्मण से कहते हैं कि हे लक्ष्मण! देखो, वर्षा ऋतु बीत गयी और परम सुन्दर शरद् ऋतु आ गई है। फूले हुए कास से सारी पृथ्वी छा गई है।मानो वर्षा ऋतु ने ( कास रूपी सफेद बालों के रूप में) अपना बुढ़ापा प्रकट किया है।
अगर हम ग्रामीण इलाकों की बात करें तो विकास खंड मछलीशहर बसुही नदी किनारे बसे गांवों जैसे बामी भटेवरा कठार ऊंचडीह अमोध, महापुर,भुसौला, राजापुर,सेमरहो, रामगढ़,बरावां अमारा आदि के एक लम्बे क्षेत्र में आज भी काश घेरे हुए है, जिसमें फूल निकल रहें है। ऋतु परिवर्तन का द्योतक होने के साथ -साथ काश का आर्थिक महत्व भी है।इन क्षेत्रों में काश की जड़ों की खुदाई नवंबर महीने से शुरू हो जायेगी। विगत पांच छः वर्षों से कन्नौज के इत्र व्यवसायियों के ठेकेदार लखीमपुर खीरी के मजदूरों की लम्बी भीड़ अपने साथ लेकर आते हैं जो बसुही नदी किनारे बसे गांव बामी के ताल में टेन्ट के सैकड़ों घर बनाकर रहते हैं।ये मजदूर होली के नजदीक आने तक प्रवास करते हैं और पूरे परिवार के साथ इन्हीं काश की जड़ों की खुदाई करके इन्हें ठेकेदारों को बेचते हैं।इन काश के बारे में मजदूर बताते हैं कि इन काश की सूखी जड़ों का प्रयोग इत्र बनाने और कूलर की घास के लिए किया जाता है।