संघ प्रमुख ने पंडित समाज का अपमान किया: महंथ अवधेश

 

जौनपुर। किसी भी वैदिक धर्म ग्रंथ पर इस बात का कोई लिखित साक्ष्य नहीं है कि जाति का बंटवारा पंडितों ने किया है, इसलिए यह आरोप राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ प्रमुख मोहन भागवत द्वारा देकर पंडित समाज का अपमान किया गया है। उक्त बातें महन्थ डा. अवधेश चन्द्र भारद्वाज ने प्रेस को जारी बयान के माध्यम से कही। उन्होंने आगे कहा कि श्रीमदभारावत गीता के अध्याय नम्बर 4 श्लोक संख्या 13 में योगी राज कृष्ण भगवान कृष्ण जी अर्जुन को उपदेश देते हुए कहते हैं कि हे अर्जुन ब्राम्हण, क्षत्रिय, वैश्य और शूद्र कर्म और गुण के आधार पर मैंने ही रचना का विभाजन किया है। गीता का अध्याय नम्बर-4 का श्लोक संख्या 13 निम्नलिखित है-चातुर्वर्ण्य मया सृष्टं गुणकर्मविभागशः तस्य कर्तारमपि मां विद्वयकर्तारमव्ययम्।। ब्राम्हण, क्षत्रिय, वैश्य और शूद्र इन चार वर्णों का समूह, गुण और कर्मो के विभागपूर्वक मेरे द्वारा रचा गया है। यजुर्वेद के 31वें अध्याय में जहाँ ईश्वर सृष्टि की संरचना और राजा के गुणों का विवेचन किया गया है, वहीं श्लोक संख्या 10 में साफ वर्णित है कि जो विराट पुरुष है, वही उसी का मुख ब्राम्हण है, बाहू क्षत्रिय, जंधा वैश्य एवं चरण शूद्र है। यानी वेद भी जाति का बंटवारा वर्णों के आधार पर शरीर में ही गुण कर्म के आधार पर किया है जो श्लोक निम्नलिखित है- ब्राम्हणोस्य मुखमासीद् बाहू राजन्यः कृतः ऊरू तदस्य यद्वैश्यः पदद्भ्या शूद्रोअजायत।। इस विराट् पुरुष का मुख ब्राम्हण, बाहू क्षत्रिय, जथा वैश्य और चरण शूद्र रूप हुआ। महंथ ने कहा कि पंडित समाज के पूर्वजों का अपमान है। इस विचारधारा के तहत पंडित समाज प्रति समाज में एक घृणा का भाव पैदा होगा जिससे जातीय सर्प बढ़ने की संभावना पैदा होगी और हमारे राष्ट्र में विकास से भटक कर जातीय सर्पष में उलझेंगे जो समाज के लिए एक जहर का कार्य है। धर्म, जाति व मजहब का प्रयोग करना भारतीय राजनीति के इतिहास में अमानवीय एवं असंवेदनशील विचार है। इस विचार के लिए इन्हें माफी अवस्य मांगनी चाहिए।

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