यूपी के क्षेत्रीय क्षत्रपों के सामने आप-ओवैसी की नयी चुनौती

अजय कुमार

उत्तर प्रदेश निकाय चुनाव में भारतीय जनता पार्टी का खूब डंका बजा। भाजपा के सामने कांग्रेस सहित सपा-बसपा के प्रत्याशी ‘पानी भरते’ नजर आए जो इन दलों के लिए शुभ संकेत नहीं है। भले ही गैर बीजेपी दल सरकार पर धांधली का आरोप लगा रहे हों लेकिन अंदरखाने की खबर यही है कि निकाय चुनाव में जिस तरह से बीजेपी ने जीत का परचम फहराया है, उससे यह दल सहमे हुए हैं तो वहीं इन दलों के लिए आम आदमी पार्टी (आप) और असदुद्दीन ओवैसी की एआईएमआईएम पार्टी नई चुनौती बनकर सामने खड़ी हो गई है। काफी समय से यूपी के तमाम चुनावों में किस्मत अजमा रही ‘आप’ अबकी बार कुछ सीटों पर जीत से गद्गद है। आम आदमी पार्टी के प्रत्याशियों ने बिजनौर, अलीगढ़, मुरादाबाद, अमरोहा, अयोध्या और कौशांबी में जीत दर्ज की है। खासकर सपा नेता आजम खॉ के गढ़ रामपुर में नगर पालिका अध्यक्ष पद पर आप की सना खानम को जीत हासिल होना काफी कुछ कहता है। आप प्रत्याशी सना ने सपा प्रत्याशी फात्मा जबीं को हराया। सना को 10958 वोटों से जीत दर्ज की है।

इसके साथ ही ओवैसी की पार्टी के एक प्रत्याशी ने भी यहां से जीत हासिल की है। इस चुनाव में सबसे अधिक फजीहत विपक्ष की हुई है। निकाय चुनावों में सपा, बसपा और कांग्रेस के खाते में 17 नगर निगम क्षेत्रों में से एक पर भी जीत नहीं मिलना काफी चौकाने वाला रहा। हाल यह है कि बड़े-बड़े दावे करने वाले सपा-बसपा के मुकाबले आम आदमी पार्टी ने ज्यादा ठीक—ठाक प्रदर्शन किया है। हालांकि मेयर सीट आप के खाते में नहीं आई है लेकिन इस बार कई वार्डों में आप के प्रत्याशी जीतने में कामयाब रहे हैं। यही रुख रहा तो अगली बार आप यूपी में बड़ा कमाल दिखा सकती है जो विपक्ष के साथ भाजपा के लिए खतरे की घंटी साबित हो सकता है।
यूपी में 9 चेयरमैन, 3 नगर पालिका अध्यक्ष, 6 नगर पंचायत अध्यक्ष और 100 से अधिक वार्ड सदस्य आम आदमी पार्टी के सिंबल पर चुनाव लड़कर जीतने में कामयाब रहे। यूपी के निकाय चुनाव में जिस तरह से आप ने इस बार बड़े पदों पर प्रदर्शन किया है। उससे केजरीवाल की नजर में इस बार यूपी प्रभारी और राज्यसभा सांसद संजय सिंह का कद भी बढ़ेगा। यूपी में जीती हुई सीटों पर दिल्ली मॉडल लागू करेगी। आप की दिल्ली और पंजाब के बाद अब यूपी पर खास तौर से नजर रहेगी।
राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि आने वाले समय में आप इन जगहों पर दिल्ली मॉडल लागू करेगी जिसका ऐलान वह पहले ही कर चुकी है। यदि इन जगहों पर आप 5 साल तक जनता की उम्मीदों पर खरा उतरने में कामयाब रही तो निश्चित पर अगले निकाय चुनाव में आप विपक्ष के लिए बड़ा खतरा बनकर उभरेगी। इसके साथ लोकसभा चुनाव में भी आप का यह प्रदर्शन उसके उत्साहवर्द्धन का काम करेगा।
आम आदमी पार्टी के बाद असदुद्दीन ओवैसी की पार्टी की बात की जाए तो उत्तर प्रदेश में ओवैसी की पार्टी सपा के लिए नई मुसीबत बनते नजर आ रहे हैं। सपा जिस ‘एम-वाई’ (मुस्लिम-यादव) समीकरण को अपना मजबूत आधार समझती थी, उसमें नगरीय निकाय चुनाव में ओवैसी की पार्टी ने बड़ी सेंधमारी हुई है। इस चुनाव में मुस्लिम मतदाता सपा से छिटकते नजर आये। मुस्लिम वोटरों ने बसपा, कांग्रेस एवं खासकर एआईएमआईएम को वोट देकर यह संदेश देने की कोशिश की है कि अब मुस्लिम मतदाता एक खूंटे में बंधकर नहीं रहने वाले हैं। उन्हें जहां भी बेहतर विकल्प नजर आएगा, उसके साथ चले जाएंगे।
ऐसे में वर्ष 2024 के लोकसभा चुनाव में उतरने से पहले सपा को भाजपा के साथ अब आम आदमी पार्टी और ओवैसी की पार्टी से मुकाबला करने के लिए अपने परंपरागत वोट बैंक को सहेजने के लिए नए सिरे से रणनीति बनानी होगी। सपा के लिए निकाय चुनाव में मिली हार इस लिए भी चिंता का विषय है, क्योंकि निकाय चुनाव को अगले वर्ष होने वाले लोकसभा चुनाव से पहले का सेमीफाइनल माना जा रहा था। शहरों की सरकार चुनने वाला यह चुनाव सपा को स्पष्ट संदेश देकर गया है। जिस ओवैसी को सपा उत्तर प्रदेश में बहुत हल्के से लेती थी, उसने अब जड़ें जमानी शुरू कर दी है। सपा ओवैसी की पार्टी को इसलिए भी हल्के में लेती थी, क्योंकि प्रदेश में अधिकतर मुस्लिम वोट उसे ही मिलता रहा था।
बीते वर्ष यूपी विधानसभा चुनाव में तो एकतरफा मुस्लिम वोट समाजवादी पार्टी को ही मिला था। हालांकि ओवैसी की पार्टी इन सबकी परवाह किए बगैर मुस्लिम मतदाताओं के बीच अपनी पैठ बनाने में जुटी रही। एआईएमआईएम के कारण ही सपा मेरठ नगर निगम के चुनाव में मेयर पद पर तीसरे स्थान पर रही। नगर पालिका व नगर पंचायत की भी कई सीटों पर उसे हार का सामना करना पड़ा। ओवैसी की पार्टी ने संभल, हाथरस की सिकंदराराऊ व कानपुर की घाटमपुर नगर पालिका परिषद में अध्यक्ष पद के साथ बरेली की ठिरिया व मुरादाबाद की कुंदरकी नगर पंचायत अध्यक्ष की कुर्सी पर भी एआईएमआईएम ने जीत का स्वाद चखा है। मेरठ नगर निगम में 11 पार्षद सहित गाजियाबाद, बरेली व फिरोजाबाद नगर निगमों में ओवैसी की पार्टी के कुल 19 पार्षद जीते हैं। 33 नगर पालिका सदस्य व 23 नगर पंचायत सदस्य भी उसके जीते हैं। यह परिणाम इस बात का संकेत हैं कि ओवैसी की पार्टी ने मुस्लिम मतदाताओं में अपनी जगह बनानी शुरू कर दी है। मुस्लिम मतदाताओं में बिखराव ही सपा के लिए खतरे की घंटी है। सपा के साथ बसपा के लिए भी यूपी में ओवैसी की पार्टी का पैर जमाना शुभ संकेत नहीं है, क्योंकि पिछले कुछ समय से बसपा सुप्रीमो मायावती मुसलमानों को अपने पक्ष में लाने की जुगत में लगी हुईं थीं लेकिन सपा से छिटक कर मुस्लिम वोटरों ने बसपा से जुड़ने की बजाए ओवैसी की पार्टी के साथ जाना ज्यादा पसंद किया। इसके अलावा चर्चा इस बात की भी हो रही है। मुस्लिम वोटबैंक की सियासत में थोड़ी-बहुत ही सही बीजेपी की भी इंट्री हो गई है। अबकी से बीजेपी ने करीब चार सौ मुस्लिम प्रत्याशी चुनाव मैदान में उतारे थे जिसमें से कई जीतने में भी सफल रहे। ऐसा पहली बार हुआ है जब बीजेपी ने सैकड़ों की संख्या में मुस्लिम प्रत्याशियों को टिकट दिया था जो उसके लिए सियासी फायदे का सौदा साबित हुआ।
लेखक वरिष्ठ पत्रकार और माया पत्रिका के ब्यूरो प्रमुख रह चुके हैं

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