कभी वरदान रही आज बदरंग हुई गोमती का दर्द न समझे कोय

 

गोमती हुई मैली का कौन करे सफाई

अब्दुल हक़ अंसारी

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केराकत।कभी केराकत नगर के वाशिंदों के लिए गोमती नदी वरदान हुआ करती थी किन्तु आज बदरंग हो चली कराहती हुई गोमती नदी की दर्द भरी कहानी को कोई सुनने समझने वाला दूर दूर तक नजर नहीं आ रहा है।

नगर के बुजुर्ग लोगों  का कहना है कि आज से तीन - चार दशक पूर्व गोमती नदी का जल नगर के वाशिंदों के लिए  जीवनधारा की एक अंग हुआ करती थी। और इसका जल इतना निर्मल होता था कि लोग स्नान के बाद आमजन भी पीने में जरा सा हिचकते नहीं थे। जहां मुसलमान भाई इसी नदी के जल से अपना वजू बनाकर नदी तट स्थित इबादतगाह यानि मस्जिद में इबादत नमाज अदा करते रहे।और हिन्दू भाई भी इसी नदी के जल लेकर मंदिर आदि में जाकर पूजा अर्चना करते रहे हैं। यही नहीं  सुबह बिस्तर छोड़ने के बाद भारी तादाद में लोग नदी तट पर पहुंच कर स्नान ध्यान के साथ दिन चर्या के कामों में मशगूल होते रहे‌। किन्तु अब क्या कहा जाए कि इसी नदी का जल जो कल लोग पीने से गुरेज नहीं करते थे आज पीने को कौन कहे छूने से भी लोग कतराते नजर आ रहे हैं। लबे दरिया के बाशिंदे भी आज के नदी के बदसूरते हाल के लिए  कम जिम्मेदार  नहीं हैं।

देखा जाए तो नगर केआधा दर्जन घाटों के पास बह रहे गंदे नाले आज भी बेख़ौफ़ होकर अपनी  गंदी करतूतों को अंजाम देते हुए नजर आ रहे हैं। हालांकि नदी के साथ बदसलूकी से पेश आने वाले भी नदी की बदहाली का खामियाजा खुद भुगतने पर विवश हैं।नदी में विसर्जित हो रहे गंदे नाले, घाटों पर विचरते सूअरों व अन्य मवेशी गंदगी को बढ़ावा दे रहे हैं।नगर के कई बुजुर्ग  ऐसे लोग हैं, जिनके मन मस्तिष्क में गोमती नदी की बदसूरते हाल को लेकर चर्चा होने पर दर्द तो साफ झलकता है। किन्तु इसके आगे धरा पर कुछ करने कराने में असमर्थ नजर आ रहे हैं।रही बात शासन प्रशासन व जनप्रतिनिधियों की तो जो कुछ कर कराने की हैसियत तो रखते हैं किन्तु नदी की दर्द दूर करने कराने को कौन कहे वे सूरते हाल देखना भी गंवारा महसूस नहीं कर रहे हैं। नयी पीढ़ी में कुछ ऐसे चेहरे तो हैं जो नदी के सूरते हाल से मर्माहत तो हैं और कुछ कर गुजरने का हौसला व जज्बा तो रखते हैं। किन्तु उचित मंच न मिल पाने से कुछ कह पाने अथवा कर पाने में असहाय हैं।

देखा जाए तो नदी की गहराई भी दिनों दिन कम होती जा रही है ।इसके पीछे मुख्य कारण यह है कि नदी के गर्भ क्षेत्र में जगह- जगह बालू व मिट्टी का भारी मात्रा में पटना भी टीले का रूप में परिवर्तित होने में मददगार साबित हो रहा है‌। अगर देखा जाय तो नदी में कई जगहों पर  बालुओं व मिट्टियों के पटान के चलते नदी में टीले की तरह देखे जब सकते हैं। तमाम जगहों पर नदी बालू के रेत में तब्दील होती नजर आने लगी है। सम्प्रति यही कारण है कि वर्षाकाल में नदी के जलधारा से तटीय इलाकों का कटान भी खूब तेजी से होता है।

अनगिनत सामाजिक संगठन ऐसे हैं जो धर्म का वास्ता देकर नदी के बदहाली का राग अलापते रहते हैं। पता नहीं ऐसे संगठन के लोग इस जीवनदायिनी समझी जाने वाली गोमती नदी की बदहाली की सूरत संवारने की पहल करने की जहमत उठाना नहीं चाह रहे हैं। अगर नदी की बदसूरती की हालत दिनों दिन इसी तरह और आगे भी खराब होती रही तो वह दिन दूर नहीं जब इस नदी का स्वरूप समाप्त होने में देर नहीं लगेगी,

यदि सरकार ने ने गोमती नदी के गहरी करण के प्रति उदार नीति अपनाकर सच्चे मन से से एक प्लांट अथवा एक योजना बनाकर प्रत्येक वर्ष या पंचवर्षीय योजना बनाकर गोमती नदी की सफाई अभियान चला देती तो निश्चित ही नदीके सदियों वर्ष पुराना अस्तित्व को बचाया जा सकता है। अन्यथा गोमती के अस्तित्व व पहचान को मिटने में देर नहीं  लगेगी।,जो सिर्फ इतिहास के पन्नों,वेद पुराणों में लिखी हुई नदी की दास्तान सिर्फ कागजों तक सिमट कर रह जायेगी,तथा आने वाली हमारी नस्लें व पीढ़ियों के जुबान पर सिर्फ किस्से कहानी बनकर रह जायेगी।

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