आस्था का केंद्र ऐतिहासिक नव दुर्गा मंदिर

जौनपुर : शिराज-ए-हिंद के नाम से विख्यात जौनपुर प्राचीन काल में यमदग्निपुरी के नाम से जाना जाता था, जो अपना एक अलग धार्मिक महत्व रखता है। यहां पर हिंदू धर्म से संबंधित अनेक ऐसे मंदिर हैं जो हजारों वर्ष पुराने हैं। इनमें से एक मंदिर नवदुर्गा शिव मंदिर के नाम से गोमती नदी के किनारे शाही किले के पश्चिम सद्भावना पुल के पास स्थित है। इस मंदिर में मां दुर्गा के नौ रूपों में सुंदर आकर्षक और भव्य मूर्ति स्थापित है। नवरात्र में यहां बड़ी संख्या में श्रद्धालु दर्शन-पूजन करने को आते हैं। अपनी प्राचीनता, सुंदरता और ऐतिहासिक महत्व के कारण यह मंदिर भक्तों के बीच आकर्षण का केंद्र है। इस मंदिर के लघु निकास द्वार के समीप भैरोनाथ और दाहिने प्राचीर पर सूर्य देवता विराजमान हैं। सूर्य देवता के ठीक सामने वट वृक्ष के नीचे शनि देव अपने वाहन पर आरूढ़ हैं। इनसे थोड़ी दूर ही मंदिर के प्रांगण में प्राचीन शिव मंदिर है, जिसमें श्री राधाकृष्ण, राम-जानकी, लक्ष्मण और हनुमान के मध्य में भगवान शंकर ज्योतिर्लिग के रूप में विराजमान हैं। प्रस्तर खंडों से निर्मित इस मंदिर का निर्माण कन्नौज नरेश विजय चंद गहडवाल ने वर्ष 1163 के आस-पास करवाया था, जो एक लंबे अंतराल के बाद क्षतिग्रस्त हो गया था। इस मंदिर के धार्मिक महत्व को देखते हुए दुर्गा पूजा महासमिति द्वारा इसका जीर्णोद्धार करवाया गया। मंदिर के जीर्णोद्धार का कार्य सन् 2009 से प्रारंभ हुआ, जिसकी पूर्णाहुति जनवरी 2012 में हुई। मंदिर की सुचारु व्यवस्था नव दुर्गा शिव मंदिर ट्रस्ट द्वारा की जाती है। गोमती नदी के तट पर स्थित नव दुर्गा शिव मंदिर वास्तुकला की नागर शैली का सर्वोत्तम एवं सुरुचिपूर्ण उदाहरण है, जो कुछ दृष्टियों से अपने मूल अवस्था में विद्यमान है। इस मंदिर का सौंदर्य मुख्यत: शिखर के स्वरूप एवं उत्श्रृंगों (अंग शिखरों) के विभाजन में दृष्टिगत होता है। गर्भ गृह के ऊपर अत्यंत ही स्वाभाविक ढंग से विभिन्न अंग शिखरों से युक्त मुख्य शिखर ऊपर उठकर आराध्य की सार्वभौमिक शक्ति का प्रतीक बन गया है। शिखर के आंतरिक भाग में लाल रंग की आकृतियां उकेरी गई हैं। मंदिर का प्रवेश द्वार अपनी लघुता के बाद भी अत्यंत सुंदर है। इस मंदिर का मुख्य तोरण द्वार पुल के रोड पर निर्मित है। पूरे पूर्वाचल के शक्तिपीठों में यह एक अलग ढंग का मंदिर है, जिसमें नव दुर्गा-शैल पुत्री, ब्रह्माचारिणी, चंद्रघंटा, स्कंदमाता, कुष्माण्डा, कात्यायनी, कालरात्रि, महागौरी, सिद्धदात्री के स्वरूप का दर्शन होता है। जनश्रुतियों के अनुसार अयोध्या के शासक मर्यादा पुरुषोत्तम रामचंद्र ने कैरावीर नामक अत्याचारी राक्षस का वध करके माता पार्वती और शिव की आराधना की थी। इससे प्रसन्न होकर भगवान शिव और माता पार्वती यहां प्रकट हुई थीं।

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