‘‘संगिनी‘‘

 प्रभुनाथ शुक्ला 
तुम मेरी संपूर्णता हो
तुम्हारा होना
यानी जीवन और आत्मा
के अंतर जैसा है
तुम मेरी अनुभूति और
अनुकृति हो
तुम्हारा स्पर्श
मुझे
सहजता और संतृप्तता से भर देता है
तुम्हाना बिछुड़ना
सांसों का ठहरना जैसा है
तुम्हारा क्षणिक विछोभ
मुझे शून्यता देता है
तुम्हारा होना
मेरा
अनुराग, विराग और वैराग्य है
तुम मेरी
अभिप्रेरणा और कर्मशीलता हो
तुम्हरा होना
मेरे लिए...
गतिशीलता और दिग्विजयता है
तुम मेरे जीवन का
अपवर्ग और उत्सर्ग हो
तुम्हें खोना
यानी खुद का खोना...यानी...

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कविताकोश 8013024073456414617

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