‘‘हिंदी है देश के माथे कि बिंदी‘‘

प्रभुनाथ शुक्ला 
 हिंदी है देश के माथे कि बिंदी
मिल कर सब बोंले हिंदी-हिंदी
विंध्य-हिमाचल व यमुना-गंगा
द्राविड़-उत्कल और मिल बंग
सिर मौर हिमालय पर से चढ़
बतलाओ भारत ंिहंदी का गढ़
तुलसी-मीरा की जागिर हिंदी
भारत के माथे की श्रृंगार हिंदी
इकबाल का इंकलाबी नारा है
रसखान ने इसे खूब दुलारा है
गालिब ने तो इसको जिया है
मुंशी ने तो हिंदी को सिया है
राम-कृष्ण का वचन है हिंदी
रामायन का प्रवचन है हिंदी
सागर की आगाज है हिंदी
हिंदुस्तान की आवाज हिंदी
हिंद की दुलारी है ये हिंदी
सब की अपनी आन है हिंदी
आओ मिल कर हम बोले हिंदी
जय हिंदी संग जय हिंदुस्तान

कविता
लेखकः स्वतंत्र पत्रकर हैं

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