बेटी का श्राप

माँ ये तुमने क्या किया!
जन्म लेने के पहले ही मुझे मार दिया
मैं तो आई थी
तुम्हारी गोद में सुरक्षा पाने के लिए
अपने नन्हे क़दमों में
पैजनिया पहनकर
तुम्हारे आँगन में फुदकने के लिए
घर के काम में तुम्हारा हाथ बँटाने के लिए
भाई की सूनी कलाई को सजाने के लिए
तुम्हे कन्यादान का सुख देने आई थी माँ
और इसलिए आई थी कि अगर कभी
तुम्हारे बेटे तुम्हे छोड़ दें
तो मैं तुम्हे सहारा दे सकूँ माँ
मगर तुमने तो मुझे ही मार दिया

जानती हो माँ
तुम नवरात्र में
जिस देवी माँ का व्रत करती हो
पूरे नौ दिन
उसी माँ जगदम्बा ने तुमसे प्रसन्न होकर
भेजा था मुझे
तुमने मुझे मारकर
माँ को कुपित कर दिया

इतना बड़ा पाप कैसे कर दिया माँ
न देती खिलौने
न देती अच्छे कपड़े
कुछ न करती मेरे लिए
मैं तो अपनी किस्मत साथ लेकर आई थी माँ
माँ जगदम्बा ने
आशीष दिया था मुझे
कि मैं जिस घर जाऊँगी
उस घर से सारे दुःख दूर हो जायेंगे
मैं तो तुम्हारे लिए आई थी माँ
किन्तु तुमने मुझे ही मार दिया

माँ तुमने मुझे इसलिए तो नही मारा
कि तुम्हे दहेज़ न देना पड़े
तुमने मुझे पैदा तो किया होता माँ
मुझे पढ़ाया-लिखाया तो होता
मैं खुद अपने पैरों पर खड़ी हो जाती
तुमने अंगुली पकड़कर चलाया तो होता
मेरे पैदा होने के पहले ही
तुमने मेरा भविष्य कैसे देख लिया माँ
एक अजन्मी बेटी को
दुनिया में आने से पहले ही मार दिया

जानती हो माँ
अगर तुमने प्रयास किया होता
मुझे बचाने का
तो दुनिया की कोई ताकत
मुझे जन्म लेने से नही रोक सकती थी
जिस बेटी की किलकारियां गूंजनी थी
उसके भ्रूण को कुत्ते खा गए माँ
तुमने कोशिश की है
विधि के विधान को बदलने की
अक्षम्य पाप किया है तुमने

जाओ माँ
श्राप देती हूँ तुम्हें
इस जन्म में
तुम हमेशा तड़पोगी मेरे लिए
एक बेटी के लिए
मगर अब तुम्हारे कोख से
कोई बेटी जन्म नही लेगी
और अगले हर जन्म में
तुम्हारी भी हत्या होगी माँ
ठीक वैसे ही जैसे कि
तुमने मुझे मारा
ये एक अजन्मी बेटी की
तड़पती आत्मा का श्राप है माँ
अब तुम्हे
माँ जगदम्बा भी नही बचाएंगी
अलविदा माँ
अब मैं कभी नही आऊँगी

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