आ रही चली मंथर गति से, मेघालि क्षितिज से धुवाॅधार

स्व 0 वाचस्पति श्रीपाल सिंह क्षेमजी
स्व 0 वाचस्पति श्रीपाल सिंह क्षेमजी की रचना 
 उतरा पावस, आयी बहार !
 चल पड़ा मिलन-सा मधुर पवन ,
 सब सिहर उठे गिरि, वन उपवन
 चिर-दग्ध तरल निः श्वास छोड़
थहरे पुलकित होकर कन-कन
आ रही चली मंथर गति से, मेघालि क्षितिज से धुवाॅधार   
चल पड़े वल्लरी से हिंडोल
तरूओं के शुष्कावरण खोल
वह मुग्ध-मुदित है झाॅक रहा
विस्मित-सा नव जीवन अमोल !
धरणी से श्यामल अंचल पर बरसा बादल का सजल प्यार !
पहिने उर्मिल धानी सारी
जम्भित है अलख प्रकृति सारी !
सुमनों की चिर-सोई क्यारी !
धुॅधली अतीत स्मृति-सी छाई ,नभ-उर में मेधों की फुहार !
गिरि-पाश्र्व-विलग क्रन्दन करती ,
उच्छ्वासों से अम्बर भरती ,
छुकर मानस के श्रान्त कूल
उर-दाह आज शीतल करती !
बह चली तरंगिणि की धारा ,अज्ञात-लक्ष्य अपलक निहार!
 जग उठा शिखी की व्यथा-ध्वान्त ,
कॅप उठा ध्वनित होकर वनान्त ,
बह चले वेदना-विकल स्त्रोत ,
जीवन का यह अभिनव दुखान्त !
मन-प्राण हदय में छायी है चालक की यह विरही पुकार !

Related

कविताकोश 8886783620711359360

एक टिप्पणी भेजें

emo-but-icon

AD

जौनपुर का पहला ऑनलाइन न्यूज़ पोर्टल

आज की खबरे

साप्ताहिक

सुझाव

संचालक,राजेश श्रीवास्तव ,रिपोर्टर एनडी टीवी जौनपुर,9415255371

जौनपुर के ऐतिहासिक स्थल

item