मेरे जीवन की निधियों के आधार तम्हीं हो सुधर गेह : श्रीपाल सिंह क्षेम

स्व0 वाचस्पति श्रीपाल सिंह क्षेम
 स्व0 वाचस्पति श्रीपाल सिंह क्षेम
इस जीवन के कण-कण में हैं साकार सलोना मुधुर स्नेह !
मेरे जीवन की निधियों के आधार तुम्ही हो सुधर गेहू !
मेरे शैशव की स्वर्ण-किरण ,
मेरा वह भोला किलक-हास !
मेरे अधरों के सरल लाल,
मेरा वह नव जीवनोल्लास !
बचपन की तू ही मधुरी याद तुझमें ही लालित सुधर देह !
मेरे जीवन की निधियों के आधार तुम्ही हो सुधर गेह !1!
माता की वह मृदु वत्सलता,
उसके उर का निष्कपट प्यारः
उसके वे भीगे नयन- कोर ,
उसका वह मधु-सिंचित दुलार !
जननी की चुम्बन-लहरी से रंजित है तेरा स्निग्ध खेह !
मेरे जीवन की निधियों के आधार तम्हीं हो सुधर गेह !2 !
तुझमे ही तो सन कर आया
मुझमें मृदु यौवन का उभार !
जीवन -क्यारी में मधु छलका,
उफने जीवन के मंदिर द्वार ! !
तुममें ही तो कर रहा लास मेरा परिणय होकर संदेह !
मेरे जीवन की निधियों के आधार तुम्ही हो सुधर गेह !3!
तेरे वक्षः स्थल पर बरसी
मेरे उर-आसव की फुहार !
मेरे यौवन का मधुर स्वर्ग ,
मेरी आंखो की पुष्प धार !!
अब भी कोने में खेल रही बरसा उर में पीयूष -मेह !
मेरे जीवन की निधियों के आधार तम्ही हो सुधर गेह !!4 !!

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