1951 में लड़कियां ऐसे देती थीं फिल्मों के लिए Screen Test

पहले की मायानगरी और अब का बॉलीवुड। जी हां, वो जगह जहां हर कोई अपनी किस्मत आजमाने पहुंचता है, लेकिन सफल उनमें से कुछ ही हो पाते हैं। भारत की ज्यादातर लड़कियां एक्ट्रेस बनने का सपना लेकर मुंबई आती हैं। ऐसा अब भी होता है और आज से 60 साल पहले भी होता था। 50 और 60 के दशक में भी कई लड़कियां फिल्मों में अपनी किस्मत आजमाने के लिए यहां स्क्रीन टेस्ट देने आती थीं लेकिन यह रास्ता इतना आसान नहीं था, जितना लोग समझते थे। हम आपको दिखा रहे हैं 1951 की कुछ ऐसी ही अनदेखी तस्वीरों को, जो बॉलीवुड ऑडिशन की सच्चाई बयां करती हैं। ये तस्वीरें Life Magazine के फोटो जर्नलिस्ट 'जेम्स बुरके' ने तब खींची थीं, जब डायरेक्टर अब्दुल राशिद करदार अपनी फ़िल्म के लिए एक भारतीय व एक विदेशी लड़की का ऑडिशन ले रहे थे। अब्दुल राशिद करदार बतौर डायरेक्टर शाहजहां (1946), दिल्लगी (1949), दुलारी (1949) और दिल दिया दर्द लिया (1966) जैसी फ़िल्मों का निर्देशन कर चुके हैं। अब्दुल राशिद करदार : एक नजर - अब्दुल रशीद करदार का जन्म 2 अक्टूबर, 1904 को लाहौर में हुआ था। उन्हें एआर करदार के नाम से भी जाना जाता है। - उनका उपनाम उपनाम मियांजी था। करदार को लाहौर के फ़िल्म उद्योग का जनक भी माना जाता है। बंटवारे के समय वो भारत आ गए और मुंबई में आकर बॉलीवुड से जुड़ गए। - करदार ने अपने प्रोडक्शन में 40 से 60 के दशक के बीच कई यादगार फ़िल्में बनाईं। करदार ने अपने करियर के शुरुआत विदेशी फिल्मों के लिए कैलिग्राफी द्वारा पोस्टर बनाने से की थी। - साल 1928 में करदार ने फिल्म डॉटर्स ऑफ टुडे और 1929 में हीर रांझा में बतौर एक्टर काम किया। करदार ने बतौर डायरेक्टर अपनी पहली फिल्म 1929 में हुस्न का डाकू बनाई थी। - करदार ने भारतीय फिल्म इंडस्ट्री से कई कलाकारों को इंट्रोड्यूस करवाया। इनमें नौशाद, मजरूह सुल्तानपुरी और सुरैया जैसी हस्तियां शामिल हैं। - इंडस्ट्री के मशहूर गायक मोहम्मद रफी को करदार ने ही अपनी फिल्म दुलारी के गीत 'सुहानी रात ढल चुकी' गाने का मौका दिया था।

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