वोट के ठेकेदारों को मुंह की खानी पड़ी

जौनपुर। इस बार के विधानसभा चुनाव के दौरान सबसे अधिक दुर्गति वोटों के ठेकेदारों की हुई है। विकासवाद की सोच के साथ मतदाताओं ने उनके चक्रव्यूह को ऐसा तोड़ा कि ऐसे ठेकेदारों को मुंह की खानी पड़ी। उन्होंने मोर्चा तो खूब संभाला लेकिन मतदाताओं ने उन्हें फेल करके रख दिया।
प्रदेश के साथ-साथ जनपद में भाजपा की जीत ऐसे ही नहीं हो गई है। इसके पीछे पुरानी गलत परंपराओं से मतदाताओं का मोहभंग होना सामने निकल कर आया है। विकास की सोंच को लेकर मतदाताओं ने न जाति देखी और न ही धर्म को ही तवज्जो दी है। इसी के चलते दलित मतदाताओं को अपना वोटबैंक मानने वाली बसपा के उम्मीदवारों को दलित वोट ही नहीं मिल सका और सिर्फ एक एक सीट पर सफलता मिली। वहीं पिछड़ों को लेकर दम भरने वाली सपा के भी हाथ भी महज तीन सीटे आयीे। या यूं कहें कि मतदाताओं ने पूरी तरह से केंद्र व प्रदेश में एक ही दल की सरकार बनाकर विकास की सोच के साथ इन सब वादों को दरकिनार कर दिया। इसी का नतीजा है कि पांच विधानसभा सीटों पर भाजपा के उम्मीदवार भारी अंतर से जीते हैं। दूसरे नंबर पर रहने वाले उम्मीदवारों को उतना वोट मिला है जितने अंतर से उन्हें हार का सामना करना पड़ा है। इससे यह स्पष्ट है कि हर वर्ग व हर धर्म के मतदाताओं ने एक अलग ही सोंच के साथ अपने ठेकेदारों को नकारते हुए मतदान किया है।

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