प्रदूषित हो चुकी सई नदी
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जौनपुर। अत्यधिक प्रदूषित हो चुकी सई नदी, गोमती और गंगा नदी में प्रदूषण बढ़ने का बड़ा कारण बन गई है। इससे पानी की तरह रुपये बहाकर गोमती व गंगा नदी को प्रदूषण मुक्त करने की योजना भी प्रभावित हो रही है। प्रदूषण के कारण सई नदी का काला हो चुका पानी पीने तो क्या नहाने लायक भी नहीं रह गया है। सई का जल सिर्फ किनारे बसे गांवों के पशुधन मालिक के अपने मवेशियों को स्नान कराने के ही काबिल रह है। प्रदूषण इस खतरनाक स्तर तक पहुंच गया है कि वे मवेशियों को पानी पिलाने से भी डरते हैं। हरदोई जिले का एक ताल इसका उद्गम स्थल है। करीब छह सौ किलोमीटर लंबी इस नदी का सफर जलालपुर विकास खंड के राजेपुर में आदि गंगा गोमती में संगम के साथ समाप्त होता है। सई के प्रदूषित जल को खुद में समाहित किए गोमती नदी कैथी (वाराणसी) में स्थित मारकंडेय महादेव धाम के पास करोड़ों लोगों की आस्था की केंद्र मोक्षदायिनी गंगा में जाकर मिल जाती है। सई का जल पहली बार इतना जहरीला हुआ हो ऐसा नहीं है। इसके पहले भी कई मर्तबा प्रदूषण चरम पर पहुंचने पर सैकड़ों ¨क्वटल मछलियां मर चुकी हैं। नदी के तटवर्ती ताला मझवारा, खलिफ्ता, इजरी, मनहन समेत कई गांवों के मवेशी प्यास बुझाने में जान गंवा बैठे हैं। बड़ी तादाद में तो अक्सर मछलियां नदी में मृत उतराई देखी जाती हैं। हरदोई से जौनपुर के बीच पड़ने वाले जिलों में स्थित छोटी-बड़ी तमाम फैक्ट्रियों से गिरने का वाला कूड़ा -कचरा व रसायनयुक्त पानी ही सई नदी के जल के प्रदूषित होने का सबसे बड़ा कारण है। इसी वजह से हर सप्ताह या पखवारे के भीतर इसके पानी का रंग बदलता रहता है। इसमें स्नान करने वाले तरह-तरह के चर्म रोगों से ग्रस्त हो जाते हैं। इसके प्रदूषण के कारण तटवर्ती गांवों के हैंड पंपों व कुओं के भी पानी का रंग व स्वाद बदल जाता है। वक्त आ गया है कि यदि सरकार गंगा को स्वच्छ करना चाहती है तो गोमती व सई को भी साफ करने का अभियान चलाए ताकि जीवनदायिनी इन नदियों का भी अस्तित्व बरकरार रह सके ।