डड़वा की निषाद बस्ती में अंधेरे का ‘राज’, ग्रामीण कर रहे उजाले का इंतज़ार
डड़वा गांव की निषाद बस्ती में विकास की लाइट तो आई नहीं, खंभे जरूर सजे हुए हैं जैसे बिजली के ‘शो-पीस’!
सोचिए ज़रा, 7 साल पहले बड़े तामझाम से बिजली विभाग ने खंभे तो गाड़ दिए, जैसे किसी मेले की तैयारी हो—but तार और ट्रांसफार्मर लगाना शायद सपनों में ही रह गया! नतीजा? आज भी करीब 200 परिवार अंधेरे में ज़िंदगी गुज़ारने को मजबूर हैं।न बिजली, न उम्मीद—सूरज ढलते ही गांव में ऐसा सन्नाटा छा जाता है मानो 21वीं सदी की नहीं, किसी कालजयी किस्से की बात हो। खेतों का काम ठप, बच्चों की पढ़ाई अधर में, और मोबाइल चार्जिंग के लिए पड़ोस के गांवों की दौड़।
सरकार कहती है ‘विकास गांव-गांव पहुंचेगा’, लेकिन डड़वा की निषाद बस्ती में तो विकास खंभों तक ही अटका हुआ है।
स्थानीय ग्रामीण राजाराम निषाद और उनके साथियों ने बदलापुर विधायक से लेकर समाधान दिवस तक गुहार लगाई, पर मिला क्या? सिर्फ आश्वासन और फिर वही ‘बत्ती गुल’ हालात।
अब सवाल ये है:
क्या ये बिजली के खंभे यूं ही शोभा बढ़ाते रहेंगे?
क्या अंधेरे में डूबे इन परिवारों की कोई सुनवाई होगी?
राजाराम निषाद, राजेश निषाद, सभाजीत निषाद, रामकरन से लेकर संजू देवी और शांति देवी तक—सबने मिलकर प्रशासन का दरवाज़ा खटखटाया है। अब बारी है जिम्मेदारों की—जिन्हें सोते से जगाने के लिए शायद बिजली की एक ‘चिंगारी’ काफी होगी!
डड़वा की बस्ती कह रही है –
"अब और नहीं, हमें चाहिए रौशनी… तार के साथ, ट्रांसफार्मर के साथ!"
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