दोनों पक्षों के आरोप-प्रत्यारोप से गरमाया माहौल, कुलपति से लेकर राजभवन तक पहुंचा मामला
जौनपुर। वीर बहादुर सिंह पूर्वांचल विश्वविद्यालय के अंतर्गत मनोविज्ञान विषय के अध्ययन परिषद संयोजक पद को लेकर दो प्रतिष्ठित महाविद्यालयों—तिलकधारी पीजी कॉलेज, जौनपुर और पीजी कॉलेज, गाजीपुर—के बीच टकराव तेज हो गया है। विश्वविद्यालय प्रशासन द्वारा टीडी कॉलेज के डॉ. राजेन्द्र प्रसाद गुप्ता को इस पद पर नियुक्त किए जाने के बाद यह विवाद सतह पर आ गया।
गाजीपुर के डॉ. मनोज कुमार सिंह की आपत्ति
पीजी कॉलेज, गाजीपुर के सहायक आचार्य डॉ. मनोज कुमार सिंह ने इस नियुक्ति को पूरी तरह अवैध और नियमविरुद्ध करार देते हुए इसका तीखा विरोध किया है। उन्होंने आरोप लगाया है कि तिलकधारी कॉलेज में मनोविज्ञान विषय का पीजी कोर्स स्ववित्तपोषित है, जबकि विश्वविद्यालय के नियमानुसार संयोजक पद पर केवल अनुदानित विभागों के शिक्षक ही नियुक्त हो सकते हैं।
डॉ. सिंह ने कुलपति से लेकर महामहिम राज्यपाल तक शिकायत की है और उत्तर प्रदेश राज्य विश्वविद्यालय अधिनियम, 1973 की धारा 68 के अंतर्गत वाद संख्या 35/2024 दायर करते हुए नियुक्ति रद्द करने की मांग की है। उनके अनुसार, पीजी कॉलेज, गाजीपुर का मनोविज्ञान विभाग विश्वविद्यालय का एकमात्र अनुदानित परास्नातक विभाग है और सिर्फ वहीं के शिक्षक इस पद के लिए नियमसंगत योग्यता रखते हैं।
डॉ. सिंह ने यह भी आरोप लगाया कि विश्वविद्यालय के कुछ जिम्मेदार अधिकारी इस नियुक्ति में पक्षपात कर रहे हैं और नियमों को दरकिनार कर मनमानी कर रहे हैं।
टीडी कॉलेज के डॉ. राजेन्द्र गुप्ता का पलटवार
उधर, टीडी कॉलेज के असिस्टेंट प्रोफेसर डॉ. राजेन्द्र प्रसाद गुप्ता ने भी तीखा पलटवार करते हुए डॉ. मनोज कुमार सिंह पर सुनियोजित साजिश और संस्थान की छवि धूमिल करने का आरोप लगाया है। उन्होंने कहा कि डॉ. सिंह ने कॉलेज से जुड़े कुछ अप्रमाणित दस्तावेजों को संदिग्ध तरीके से प्राप्त कर, उन्हें संशोधित रूप में विभिन्न मंचों पर प्रस्तुत कर विश्वविद्यालय को गुमराह किया है।
डॉ. गुप्ता ने इस विषय में दो महिला प्राध्यापिकाओं सहित स्वयं विश्वविद्यालय में संयुक्त शिकायत भी दर्ज कराई है। उनका आरोप है कि डॉ. सिंह ने नियमों की अनदेखी करते हुए पीएचडी कोर्स वर्क किसी अन्य महाविद्यालय से बिना विधिवत अवकाश लिए पूरा किया, जो विश्वविद्यालय के अध्यादेश का सीधा उल्लंघन है।
डॉ. गुप्ता ने यह भी दावा किया कि डॉ. सिंह ने पीएचडी उपाधि प्राप्त करने से पूर्व ही अपने नाम के साथ "डॉ." लिखना शुरू कर दिया था, जो अकादमिक अनियमितता है। साथ ही वे स्वयं को “विभागाध्यक्ष” घोषित करते रहे हैं, जबकि महाविद्यालयीन ढांचे में ऐसा कोई पद ही स्वीकृत नहीं है।
उन्होंने अपनी वरिष्ठता का हवाला देते हुए कहा कि वे 7 सितंबर 2017 से महाविद्यालय में कार्यरत हैं, जबकि डॉ. सिंह उनसे कनिष्ठ हैं। इसी वरिष्ठता के आधार पर विश्वविद्यालय ने उन्हें संयोजक पद हेतु चयनित किया। गुप्ता का यह भी कहना है कि टीडी कॉलेज के मनोविज्ञान विभाग को 1992 में अस्थायी और 1998 में स्थायी मान्यता माननीय कुलाधिपति द्वारा दी जा चुकी है।
डॉ. गुप्ता ने विश्वविद्यालय प्रशासन से आग्रह किया है कि इस पूरे प्रकरण की निष्पक्ष, पारदर्शी और समयबद्ध जांच कराई जाए और यदि डॉ. सिंह पर लगे आरोप सही साबित होते हैं तो उनकी पीएचडी उपाधि को तत्काल प्रभाव से निरस्त किया जाए।
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