नवरात्रि में दुर्गा के इन स्वरूपों की होगी पूजा
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वाराणसी. शारदीय नवरात्रि गुरुवार से शुरू हो गया। अगले नौ दिन
तक देवी मां के अलग-अलग नौ स्वरूपों की पूजा की जाएगी। काशी में देवी
दुर्गा के नौ स्वरूपों का मंदिर है। नवरात्रि के दौरान यहां दूर-दराज से
श्रद्धालु जुटते हैं। मान्यता है कि नौ दिनों में देवी के इन स्वरूपों के
दर्शन करने से सारी परेशानियां दूर हो जाती है। देवी मां अपने भक्तों की हर
मन्नत को पूरा करती हैं।
बताते चलें कि आश्विन शुक्ल प्रतिपदा से शारदीय नवरात्रि की शुरुआत हो
रही है। इस बार दुर्गाष्टमी और नवमी तिथियां एक ही दिन पड़ने से विशेष
संयोग बन रहा है। यह संयोग देवी मां के भक्तों के लिए धन और ऐश्वर्य लेकर
आएगा। 25 सितंबर को घट स्थापना के साथ देश भर में नवरात्रि पर्व की धूम
शुरू हो जाएगी। वहीं, सप्तमी, अष्टमी, नवमी, दशमी को दुर्गा पूजा भी शुरू
हो जाएगी। इस दौरान माता की चौकी भी लगाई जाएगी।
1. शैलपुत्री देवी: नवदुर्गा का पहला रूप शैलपुत्री का है।
काशी के अलईपुरा इलाके में इनका मंदिर बना है। हिमालय के यहां जन्म लेने के
कारण देवी का नाम शैलपुत्री पड़ा। शैलपुत्री देवी का वाहन वृषभ है। उनके
दाएं हाथ में त्रिशूल और बाएं हाथ में कमल है। इन्हें पार्वती का स्वरूप भी
माना जाता है। ऐसी मान्यता है की देवी के इस रूप ने ही शिव की कठोर तपस्या
की थी। कहा जाता है कि इनके दर्शन मात्र से शादी में आ रही रूकावटें दूर
हो जाती हैं।
2. ब्रह्मचारिणी देवी: यह देवी मां का दूसरा स्वरूप है।
इनका मंदिर दुर्गाघाट में स्थित है। ब्रह्मा का अर्थ है तपस्या। इस स्वरूप
में देवी तप का आचरण करने वाली हैं। ऐसे में उन्हें ब्रह्मचारिणी कहा जाता
है। ब्रह्मचारिणी देवी का स्वरूप ज्योतिर्मय और बेहद भव्य है। इनके दाएं
हाथ में जप की माला और बाएं हाथ में कमंडल रहता है। जो भक्त देवी के इस रूप
की आराधना करता है, उसे साक्षात परब्रह्म की प्राप्ति होहै।
3. चंद्रघंटा देवी: नवरात्र के तीसरे दिन देवी मां के
चंद्रघंटा स्वरूप की पूजा की जाती है। काशी में इनका मंदिर चौक इलाके में
स्थित है। माता का यह स्वरूप शांतिदायक और कल्याणकारी है। इनके माथे पर
घंटे के आकार का अर्धचंद्र होता है। इसी कारण इन्हें चंद्रघंटा देवी कहा
जाता है। इनके शरीर का रंग सोने की तरह चमकीला होता है। इनके दस हाथ होते
हैं। इनका वाहन सिंह है। इनकी मुद्रा युद्ध के लिए तैयार रहने की होती है।
4. कुष्मांडा देवी: यह देवी मां का चौथा स्वरूप है। इनका
मंदिर दुर्गाकुंड में स्थित है। मान्यता है कि देवी मां ने अपनी हंसी से
ब्रह्मांड को उत्पन्न किया था। इस कारण उनका नाम कुष्मांडा देवी हो गया।
इन्हें सृष्टि की आदि स्वरूपा माना जाता है। इन्हें अष्टभुजा देवी भी कहा
जाता है। इनके सात हाथों में कमंडल, धनुष-बाण, कमल, फूल, अमृतपूर्ण कलश,
चक्र और गदा है। आठवें हाथ में सभी सिद्धियों और निधियों को देने वाली
जपमाला है। देवी का वाहन सिंह है।
5. स्कंदमाता देवी: आदि शक्ति का पांचवा स्वरूप स्कंदमाता
है। जैतपुरा इलाके में इनका मंदिर स्थित है। स्कंद कुमार यानि कार्तिकेय
की मां होने के कारण इन्हें स्कंदमाता कहा जाता है। देवी मां मोर की सवारी
करती हैं। इनकी गोद में बाल स्कंद कुमार बैठे रहते हैं। देवी मां कमल के
आसन पर विराजमान रहती हैं। इसी कारण से इन्हें पद्मासना देवी भी कहा जाता
है। संतान सुख के लिए इनका दर्शन करना शुभ माना जाता है। मान्यता है कि
पूजा से मां प्रसन्न होती हैं और भक्त की गोद भर देती हैं।
6.कात्यायनी देवी: देवी मां का छठा स्वरूप कात्यायनी देवी
है। काशी में इनका मंदिर सिंधिया घाट मोहल्ले में है। माना जाता है कि
देवी मां ने महर्षि कात्यायन की बेटी के रूप में अवतार लिया था। इसलिए उनका
नाम कात्यायनी पड़ा ऋषि कात्यायन ने लगातार सप्तमी, अष्टमी और नवमी तक
इनकी पूजा की थी। दशमी के दिन देवी ने महिषासुर का वध किया था। इनका स्वरूप
भव्य और दिव्य है। इनकी अराधना से सारी मनोकामनाएं पूरी होती हैं। कहा
जाता है कि रुक्मिणी ने भी कात्यायनी देवी की आराधना कर कृष्ण को पति के
रूप में पाया था।
7. कालरात्रि देवी: देवी मां का सातवां स्वरूप कालरात्रि
है। इनका मंदिर कलिका गली में है। इनके शरीर का रंग घने अंधेरे की तरह एकदम
काला है। सिर के बाल बिखरे हुए हैं। गले में बिजली की तरह चमकने वाली माला
है। देवी की तीन आंखें हैं। ये ब्रह्मांड की तरह गोल हैं। इनका वाहन गर्दभ
है। देवी मां अपने दाएं हाथ की वर मुद्रा से सभी भक्तों को आशीर्वाद देती
हैं। मां का यह स्वरूप देखने में काफी भयानक है, लेकिन इनका दर्शन करना
हमेशा शुभ फल देता है। इसी कारण इनका नाम शुभकारिणी भी है।
8. महागौरी देवी: महागौरी देवी दुर्गा का आठवां स्वरूप
है। विश्वनाथ गली में इनका मंदिर है। यहां महागौरी को अन्नपूर्णा देवी के
रूप में भी पूजा जाता है। महागौरी देवी वृषभ की पीठ पर विराजमान रहती हैं।
उनके माथे पर चांद का मुकुट सजा रहता है। मां अपने चार हाथों में शंख,
चक्र, धनुष और बाण लिए हुए हैं। उनके कानों में रत्न जड़ित कुंडल झिलमिलाते
हैं। महागौरी देवी अपने भक्तों को सौंदर्य प्रदान करती हैं।
9. सिद्धिदात्री देवी: यह आदि शक्ति माता का नौवा रूप है।
सिद्धिदात्री मंदिर बुलानाला में स्थित है। मां भगवती का यह स्वरूप
भक्तों को सभी प्रकार की सिद्धियां देता है। वह श्रद्धालुओं की सभी कामनाओं
को पूरा करती हैं। माना जाता है कि देवी के नौ रूपों की पूजा तब तक पूरी
नहीं मानी जाती, जब तक की सिद्धिदात्री की पूजा नहीं कर ली जाती है।