राम के अति प्रिय भक्त, श्री हनुमान, महादेव शिव का ही ‘ रूद्र’ स्वरुप हैं
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हनुमान जयन्ती
पृथ्वी की भाँति ही मानव शरीर भी स्थूल और सूक्ष्म की अनेक परतों में विद्यमान है, लेकिन कुछ परतों का अनुभव पाँच इंद्रियों द्वारा किया जा सकता है और कुछ का नहीं । जिन परतों का हम अनुभव कर सकते हैं वही हमारे लिये सत्य हैं और बाकी असत्य।
ध्यान की अवस्था में, प्राचीन ऋषियों को मनुष्य के संपूर्ण अस्तित्व का बोध हुआ था। उनके अनुसार, मानव शरीर पाँच परतों में मौजूद हैं, जिसकी एक परत, हमारा स्थूल शरीर है जिसे अन्नमय कोष भी कहते हैं। उसके परे हमारा शरीर सूक्ष्म परतों में भी विभाजित है। स्थूल शरीर के बाद हमारी प्राणिक परत (प्राणमयकोश ) होती है, जिसे एक दिव्यदृष्टा विभिन्न रंगों, चक्रों और नडियों के रूप में देख सकता है। इसके बाद मनोमय कोश है, जहाँ से मनस या बुद्धी कार्य करती है। मनोमय कोष के बाद विज्ञानमय कोश होता है जो पूर्वानुमान का स्तर है, जो कि
अन्तर्ज्ञान से युक्त मन का स्थान है और अंतिम परत आनंदमय कोश है जो हमें परमात्मा से जोड़ने वाली कड़ी है।
कुछ भी देखने, समझने और अनुभव करने की हमारी क्षमता इस बात पर निर्भर करती है कि हम अपने शरीर की किस परत अथवा कोष से कार्य कर रहे हैं। प्रत्येक परत एक छलनी की भाँति कार्य करती है जो कि उच्च कोशों की आवृत्तियों और पहलुओं को निचले कोषों में प्रवेश नही करने देती। इन परतों में, तर्क संगत मन अर्थात मनोमय कोश ही उच्च कोषों को अनुभव करने में, एक मनुष्य के लिए सबसे बड़ी बाधा है। तर्क, सहज ज्ञान और परमात्मा को समझने नहीं देता। दोनों ही विषय बुद्धि से परे हैं। यही कारण है कि तर्क और पाँच इंद्रियों के स्तर से एक साधारण मनुष्य सूक्ष्म दुनिया का अनुभव नही कर पाता जबकि वह शक्तियाँ उसके आस-पास ही मौजूद है।
सूक्ष्म शक्ति से ही स्थूल संचालित है। यही सूक्ष्म शक्ति, सबसे पहले, एक विचार के रूप में प्रकट होती है। विचार के बाद ध्वनि, फिर रंग और अंत में पंचतत्वों के रूप में, जिनसे प्रकृति के सभी पदार्थों जैसे कि पशु - पक्षी , पेड़ - पौधे, मनुष्य आदि का गठन होता है। घटना के घटित होने से पहले ही पूर्वाभास होना, असामान्य श्रवण शक्ति, दिव्यदृष्टि, और आध्यात्मिक चिकित्सा जैसे सूक्ष्म विज्ञान यहीं से उत्पन्न हुए हैं।
सनातन क्रिया, एक मनुष्य की इन्ही विभिन्न परतों को संतुलन में लाती है, जिसके फलस्वरूप उसकी सूक्ष्म इंद्रियों की जागृति होती है और वह परा शक्ति के अन्य पहलुओं का अनुभव कर पाता है।
हनुमान जयंती के इस पावन अवसर पर हम उनकी दिव्य शक्ति को थोड़ा और समझने का प्रयास करते हैं। भगवान राम के अति प्रिय भक्त, श्री हनुमान, महादेव शिव का ही ‘ रूद्र’ स्वरुप हैं। वह अतुलित बल के प्रतीक हैं, जिन्होंने अकेले ही जीवन दान देने वाले संजीवनी पहाड़ को उठा लिया था और अकेले ही रावण की लंका में आग लगा दी थी। शास्त्रों के अनुसार हनुमान की शक्ति कलियुग में भी पृथ्वी लोक पर मौजूद है। उनकी सूक्ष्म शक्ति का अनुभव ध्यान आश्रम के कुछ साधकों ने भी किया है
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