"गोमती को सीमेंट में दफनाया जा रहा, यह विकास नहीं विनाश है" – जलपुरुष राजेंद्र सिंह

जौनपुर।"गोमती कराह रही है और शहर खामोश है।" – जल संरक्षक और मैग्सेसे पुरस्कार से सम्मानित राजेंद्र सिंह के ये शब्द जौनपुरवासियों के दिलों को झकझोरने के लिए काफी हैं। शहर में चल रहे तथाकथित रीवर फ्रंट विकास कार्य को लेकर उन्होंने कड़ी आपत्ति जताते हुए चेतावनी दी कि "यह परियोजना इस ऐतिहासिक शहर के लिए एक अभिशाप बन सकती है।"

गोमती के घाटों का निरीक्षण करने के बाद उन्होंने पत्रकार भवन में सौहार्द बंधुता मंच द्वारा आयोजित प्रेस वार्ता में कहा, “गोमती को बचाने की बजाय उसे पत्थर और सीमेंट के नीचे दफनाया जा रहा है। यह सिर्फ एक इंजीनियरिंग भूल नहीं, बल्कि प्रकृति के खिलाफ एक सजग साजिश है।”

उन्होंने बताया कि रीवर फ्रंट को नदी के 'ब्लू ज़ोन', यानी उसके प्राकृतिक बहाव वाले क्षेत्र में बनाया जा रहा है। इसका अर्थ है कि नदी के आधे शरीर को कुचल दिया गया है। उन्होंने खास तौर पर शाही पुल का ज़िक्र करते हुए कहा कि इसके नीचे बने 15 में से 7 ताखों को बंद कर दिया गया है – “जिस स्थापत्य ने छह सौ सालों तक बाढ़ को रोके रखा, उसे अब म्यूट कर दिया गया है।”

राजेंद्र सिंह ने कटाक्ष करते हुए कहा – “यह वैसा ही है जैसे किसी मां को दिल की बीमारी हो और हम उसे ब्यूटी पार्लर ले जाएं। सवाल यह है – क्या सुंदरता जीवन से अधिक ज़रूरी है?”

उन्होंने आशंका जताई कि यदि यह परियोजना इसी तरह आगे बढ़ती रही, तो इसका प्रभाव सिर्फ गोमती तक सीमित नहीं रहेगा, बल्कि पूरे शहर को भुगतना पड़ेगा।

जनप्रतिनिधियों और सामाजिक कार्यकर्ताओं से उन्होंने अपील की कि वे खुलकर इस विषय पर बोलें और जन-जागरण अभियान छेड़ें। उनके अनुसार, "नदियां नहीं बचेंगी, तो ज़िंदगी भी नहीं बचेगी।"

इस दौरान उनके साथ पर्यावरण प्रेमी ईश्वर चंद्र, रमेश शर्मा और फरीद आलम भी उपस्थित रहे।


यह बयान केवल चेतावनी नहीं है, यह उस नदी की कराह है जो इस शहर की जीवनरेखा रही है। सवाल उठाना अब ज़रूरी हो गया है – क्या हमें विकास के नाम पर अपने भविष्य को गिरवी रख देना चाहिए?

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