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सोमवार, 14 जुलाई 2025

1841 में बंदियों द्वारा निर्मित पुलिया निकली ऐतिहासिक धरोहर, वर्षों से संभाले है आवागमन का भार

 ब्रिटिश काल के कैदियों की मेहनत से बनी यह अद्भुत संरचना आज अतिक्रमण और अनदेखी की शिकार

जौनपुर। क्या आपने कभी सोचा है कि जिस पुलिया से आप हर दिन गुजरते हैं, वह 184 साल पुरानी हो सकती है? और वह भी जेल में बंद कैदियों के हाथों बनी हो! जी हां, यह कोई कथा नहीं, बल्कि जौनपुर की ऐतिहासिक सच्चाई है। जिलाधिकारी आवास और जनपद न्यायालय के बीच स्थित यह पुलिया सितंबर 1841 में जिला जेल के बंदियों द्वारा निर्मित की गई थी — और यह आज भी अपने मजबूत कंधों पर आवागमन का भार वहन कर रही है!

इतिहास की मिट्टी में दबी हुई है अद्भुत विरासत!

जब  पत्रकार  यशवन्त कुमार गुप्त का ध्यान इस पुलिया की डेढ़ फीट मोटी रेलिंग पर गया तो उन्हें वहां कुछ अद्भुत दिखाई दिया — एक शिलालेख! जैसे ही उन्होंने उस पर निगाह डाली, तो उसमें उकेरे शब्द किसी खजाने की तरह सामने आए:
"BUILT BY PRISONERS
IN SEPTEMBER 1841
S. L. BECHER ESO
J. MAG"

इस शिलालेख का हिंदी अनुवाद इस प्रकार होगा:

"कैदियों द्वारा निर्मित
सितंबर 1841 में
एस. एल. बेचर, ईएसक्यू.
जे. मैग."

यहाँ प्रत्येक पंक्ति का अर्थ विस्तार से:

  1. BUILT BY PRISONERSकैदियों द्वारा निर्मित
  2. IN SEPTEMBER 1841सितंबर 1841 में
  3. S. L. BECHER ESOएस. एल. बेचर, ईएसक्यू. (Esquire = सज्जन / अधिशासी अधिकारी, ब्रिटिश सम्मान सूचक शब्द)
  4. J. MAGजे. मैगिस्ट्रेट (संक्षेप में "मैग", संभवतः जिला मजिस्ट्रेट या न्यायिक अधिकारी का संक्षिप्त रूप)

यह शिलालेख ब्रिटिश शासनकाल की जेल प्रशासन द्वारा कराए गए निर्माण को दर्शाता है, जिसमें उस समय के अधिकारियों के नाम भी दर्ज हैं।

क्या यह कोई साधारण पुलिया हो सकती है, जिसकी नींव उन बंदियों ने रखी थी जिन्हें इतिहास ने कभी नाम तक नहीं दिया? और आज वही पुलिया, जिसकी छाती पर 184 वर्षों का बोझ है, संरक्षण और सम्मान को तरस रही है!

अचरज की बात यह कि...

  • यह पुलिया आज भी सुगमता से सैकड़ों वाहन और हजारों लोगों का भार रोज झेल रही है।
  • इसकी स्थायित्व क्षमता और स्थापत्य कौशल पर आज भी इंजीनियर चकित हो सकते हैं।
  • फिर भी, यह अद्वितीय धरोहर किसी सरकारी सूची में धरोहर नहीं, बल्कि अतिक्रमण की गिरफ्त में है।

पत्रकार  यशवन्त गुप्त ने इस श्रमसिद्ध ऐतिहासिक पुलिया को तत्काल राष्ट्रीय धरोहर घोषित करने की मांग की है। उन्होंने जिलाधिकारी को पत्र सौंपते हुए मांग की:

 शिलालेख की सुरक्षा हो
 अतिक्रमण हटाया जाए
 पुरातात्विक विभाग से संरक्षित घोषित कर सौंदर्यीकरण कराया जाए
 एक सूचना पट्ट लगाकर इसके ऐतिहासिक गौरव को उजागर किया जाए

इतिहास का जीवित चमत्कार या सरकारी उपेक्षा की मिसाल?

यह पुलिया आज सिर्फ एक रास्ता नहीं, बल्कि इतिहास का जीवित चमत्कार है, जो कैदियों की पीड़ा, परिश्रम और पहचान को 184 साल बाद भी ढो रहा है। परंतु आश्चर्यजनक रूप से इस पुलिया को आज तक किसी भी स्तर पर वह मान-सम्मान नहीं मिला, जिसकी वह हकदार है।

अब सवाल यह है—क्या प्रशासन जागेगा? क्या यह पुलिया सिर्फ इतिहास के धूलभरे कोने में गुमनाम रह जाएगी या फिर इसे उसका उचित स्थान मिलेगा?


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