यूपी में पैसा बोलता है: भ्रष्टाचार की जड़ ऊपर से बरगद सरीखे नीचे तक फैली!

-भाजपा की योगी सरकार में नौकरशाहों को खुली छूट से सिस्टम का पुराना ढर्रा और हुआ मजबूत, अफसर भी अपने आका को 'वार्षिक प्रगति रिपोर्ट' के लिए देते हैं पैसा, यदि नहीं दिया तो पीछे वाले पा जाते हैं प्रमोशनl

-स्वास्थ्य महकमे की हालत सबसे दयनीय, इस रिपोर्ट में जौनपुर- बाराबंकी की बानगी यूपी के सभी जनपदों की स्थिति का आईना है, जिसमें दिख रही भ्रष्टाचार की बेल कैसे नीचे तक फैली है, और इसका शिकार किस तरह हो रही है पब्लिक।

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कैलाश सिंह-

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जौनपुर/बाराबंकी/लखनऊ l अस्सी के दशक के आसपास वॉलीवुड की एक फिल्म का गीत - 'पैसा बोलता है' आज भी यह गाना नौकरशाही के रग- रग में भ्रष्टाचार रूपी रक्त की तरह बह रहा हैl 2010 के दशक में दो पूर्ववर्ती राजनीतिक दलों की प्रदेश में सरकारों के नेताओं ने पैसा वसूली के लिए नौकरशाहों को 'पटवारी' जैसा बना दिया थाl अराजकता और जातिवाद चरम पर थाl नौकरशाही में वही आदत एडिक्सन बन गईl तब मैं बरेली के अमर उजाला में कार्यरत थाl बानगी ये है कि पीलीभीत के सीएमओ के पास एक बाहुबली बसपा नेता का फोन आता है कि पार्टी की सभा के लिए टेंट और खानपान की व्यवस्था आपको करनी है, इतना सुनते ही उनके हाथ -पांव फूल गए, क्या करते वह बेचारे जो एक तो ब्राम्हण, दूसरे ईमानदार भी थे, मैंने हस्तक्षेप कर उनको राहत दिलाईl योगी सरकार में तो   माननीय और पार्टी नेता खुद शिकायत करते हैं कि अफसर हमारी नहीं सुनते हैंl

वर्ष 2017 में योगी आदित्यनाथ की भाजपा सरकार आई तब मैं गोरखपुर में कार्यरत थाl इनके सीएम बनने पर आमजन में ईमानदारी की उम्मीद जागी, जिसपर वह दूसरे कार्यकाल में भी खरे साबित हुए हैं, कानून व्यवस्था का राज स्थापित हुआ, अपराधी जेल में हैं या मारे गए, प्रदेश विकसित होने की तरफ बढ़ रहा है, लेकिन उन्होंने जो भरोसा नौकरशाही पर किया है, उसे इन अफसरों ने कायम नहीं रहने दिया, आज मन्त्रियों तक का नियंत्रण उनपर नहीं हैl ब्लॉक और थाने- चौकियों से लेकर पीएचसी के स्वास्थ्य कर्मियों तक बिना पैसा लिए पब्लिक का काम नहीं होता हैl सीएम ईमानदार और सख्त हैं, इसमें कोई संदेह नहीं है,लेकिन जनता तो पिस रही है? यह सवाल हर किसी के जेहन में कौंध रहा हैl

अब बाराबंकी और जौनपुर की बानगी देखिए- बाराबंकी के स्वास्थ्य महकमे के एक अफसर को 'ईमानदारी' की सनक हैl इसी कारण वह 17 साल से आज भी 'लेवल थ्री से फोर ग्रेड' में नहीं पहुँच पा रहे हैंl इसके चलते वह सीएमओ नहीं बन पाए और उनके तमाम मातहत आगे निकल गएl विभाग में हर साल (ए सी आर) एनुवल कण्डक्ट रिपोर्ट जो गोपनीय होती है, यानी वार्षिक प्रगति रिपोर्टl इसमें हर चिकित्सक की प्रविष्टि पर उत्तम, उत्कृष्ट लिखने को सम्बन्धित स्वास्थ्य अधिकारी को 20 और 25 हजार देने पड़ते हैं, जो नहीं देता उसका प्रमोशन प्रभावित होता हैl वसूली की यह रकम स्वास्थ्य महा निदेशक तक जाती है! सीएमओ बनने का रेट अब 40 लाख हो गया है, इसकी चर्चा चिकित्सकों में आम हैl पूर्ववर्ती सरकारों में यह रकम राजनेताओं तक जाती थी, लेकिन अब सीएम योगी की सख्ती के चलते ऐसा नहीं हो पा रहा है, तो यह रकम जा कहाँ रही है? इस सवाल का जवाब भी आमजन को चर्चाओं में मिल जाता हैंl 

इसके अलावा यहां जीपीएस का पैसा निकालने को कुल राशि का 10 फीसदी कमीशन बाबू के जरिये सीएमओ को देना पड़ता हैl यानी हर पटल पर पैसा बोलता हैl ड्रग और फूड पर तो भारी हफ़्ता देने वाले प्रतिबन्धित व नकली दवा और मिलावटी खाद्य पदार्थों की बिक्री धड़ल्ले से करते हैंl इसकी मानीटरिंग जिलों के बड़े नौकरशाह के पास होती हैl क्लिनिक खोलने वाले को लाइसेंस का रेट 50 हजार और नर्सिंग होम के लिए एक लाख, पैथालॉजी को भी एक लाख, अल्ट्रासाउंड के लिए पांच लाख, इसी तरह ब्लडबैंक व अन्य कार्यों के लिए रेट तय हैं, रिनिवल के लिए भी हर साल 10- बीस हजार देने पड़ते हैं, हफ़्ता वसूली इससे अलग रहती हैl अब ऐसे में निजी अस्पताल संचालक पब्लिक को ही तो लूटेंगे! सरकारी उपकरण खरीद में 'जेम- gem' पोर्टल के माध्यम से अपने ठेकेदारों को अन्य से कम रेट भरवाकर टेंडर 25 फीसदी कमीशन पर दिया जाता हैl 

दरअसल ऐसे ही 'तरीके' प्रदेश के सभी जिलों में कमोबेश अपनाये जाते हैंl जौनपुर में तीन दर्जन से अधिक आयुष चिकित्सकों ने कोरोना में संविदा की नौकरी छोड़ दी, उसी रिक्त पदों पर भर्ती हुई, इसमें जुगाड़ के बाद भी लाखों में पैसे चलने की चर्चा- ए- आम हैl चर्चाओं को हवा के साथ ठोस आधार देने वाले वही हैं जो रकम के साथ जुगाड़ भी नहीं लगा पाए, पिछले हफ़्ते उन चुने गए लोगों की लिस्ट भी जारी कर दी गईl

 जौनपुर के निजी व सरकारी अस्पतालों का लेखाजोखा अगली रिपोर्ट में विस्तार से दिया जाएगा, लेकिन दो बड़े उदाहरण में एक है मुंगराबदशाहपुर प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र, जहां तकनीशियन ने बिना सैंपल लिए रक्त जांच की रिपोर्ट दे दीl यह घटना पिछले महीने के अंतिम हफ़्ते की है, इसकी खबर मीडिया में आने के बाद विभाग सक्रिय हुआl इसमें आरोपी कर्मी को वेतन कटौती करके अन्य केंद्र पर तबादला कर दिया गयाl दूसरी घटना शहर के सिटी स्टेशन रोड की हैl यहां बगैर डिग्री के एक दशक से एक चिकित्सक 'एम डी मेडिसिन' की डिग्री खरीदकर प्रैक्टिस कर रहा हैl इसकी पोल कोरोना काल में दूसरे डॉक्टर ने खोली l उसको जिले के सीएमओ ने कैसे प्रैक्टिस की अनुमति दी है? दूसरे राज्य से यूपी में कैसे वह पंजीकृत होता है? उसके दस्तावेज़ भी स्वास्थ्य महकमे में घूम रहे हैं लेकिन चर्चा ये है कि वह कथित चिकित्सक मोटी रकम देकर मरीजों की जान से कैरम सरीखे खेल रहा है।

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