कोशिश की काव्य गोष्ठी में “अम्मा” का लोकार्पण और हिंदी दिवस पर काव्य-आलोक
लोकार्पण के अवसर पर पूर्व प्राचार्य डॉ. माधुरी सिंह ने कृति के भाषा-शिल्प और कथ्य पर विस्तार से प्रकाश डालते हुए उसकी लोकग्राह्यता को रेखांकित किया। साहित्यकार सभाजीत द्विवेदी प्रखर ने कवि की संवेदना, अम्मा की ममता, शीतलता और जीवन के प्रति लगाव पर अपनी दृष्टि प्रस्तुत की। प्रो. आर.एन. सिंह ने कहा कि कवि ने अपनी रचना में अम्मा के प्रति व्यक्तिगत भाव को विश्वजनीन बना दिया है।
वरिष्ठ साहित्यकार जनार्दन अष्ठाना पथिक ने कवि गिरीश को “मानव मन का पारखी” बताते हुए अम्मा को मातृत्व पर लिखी एक अनूठी कृति कहा। वहीं रामजीत मिश्र ने रचना के उदात्त पक्ष को रेखांकित किया।
कार्यक्रम के दूसरे चरण में हिंदी दिवस का उत्सव छाया रहा। कवि समीर ने वाणी वंदना से गोष्ठी का शुभारंभ किया। प्रो. आर.एन. सिंह ने अपनी कविता में कहा— “हिंदी हर भाषा की पोषक/ है सबकी हितकारी हिंदी।”
प्रखर जी ने हिंदी की उपादेयता पर स्वर उठाया— “भाषा के नाम पर जब भी बवाल मचा/ हिंदी सारे झंझटों से खुद को बचा गयी।”
पथिक जी की रचना— “सूर कबीर कवि तुलसी पद्माकर की रसखान है हिंदी” श्रोताओं के बीच विशेष रूप से सराही गई।
रामजीत मिश्र का शेर—
“अपने सा क्यों नहीं समझता है औरों को/ जीवन छोटा कैसे कड़वे बोल लिये फिरता है”
ने संवेदना को झंकृत कर दिया।
शायर अहमद निसार का शेर—
“कभी कभी तो कुछ ऐसा जुनून होता है/ दिमाग हारे तो दिल को सुकून होता है”
जीवन की द्वंद्वात्मकता की ओर संकेत करता हुआ श्रोताओं को गहन विचार में डुबो गया।
गोष्ठी में अनिल उपाध्याय, राजेश पाण्डेय, रमेश चंद्र ‘सेठ आशिक जौनपुरी’, डॉ. संजय सिंह ‘सागर’, अंसार जौनपुरी, फूल चंद भारती, अमृत प्रकाश, रुपेश अकेला, संजय सेठ ‘अध्यक्ष जेब्रा’, अनिल विश्वकर्मा और अरविंद सिंह ‘बेहोश’ ने अपनी रचनाओं से वातावरण को रसपूर्ण बना दिया।
विशेष उपस्थिति के रूप में सूर्य भान उपाध्याय मौजूद रहे।
कार्यक्रम का संचालन अशोक मिश्र ने किया और आए हुए सभी कवियों व अतिथियों के प्रति आभार ज्ञापन डॉ. विमला सिंह ने किया।
साहित्य और संवेदना से परिपूर्ण यह गोष्ठी मातृत्व के स्वर और हिंदी की महिमा से दीर्घकाल तक स्मरणीय बनी रहेगी।