भरत भू संतान जागो, देव भू संतान जागो |

भरत भू संतान जागो, देव भू संतान जागो |
जगत के हित गरल पीने आज डमरू तन जागो ||

विकट संकट कि घड़ी है देश में आतंक भारी
नित्य नूतन घात होते मातृभू खंडित हमारी
रोद्र स्वर में कर गरजना आज अपना मौन त्यागो ||१||
देव भू संतान जागो .................................

देश का नेतृत्व डगमग स्वार्थ में अँधा बना है
पनपता अपराध सत्ता के शिखर छाया घना है
भ्रष्ट सत्ता नष्ट होगी अडिग निशचय कर्म लगो ||२||
देव भू संतान जागो ............................

हर दिशा तुष्टिकरण का नग्न नर्तन हो रहा है
पशचमी झोकों से भारत रूप अपना खो रहा है
स्वत्व का भंडार देखो गैर से अब कुछ न माँगो ||३||
देव भू संतान जागो ..............................

एक माँ के पुट हम सब स्नेह कि गंगा बहाएँV
एक धरती एड पुरखे संगठित शक्ति जगाएँ
परम सुख का द्वार खोलो छोड़ निज अभिमान रागों ||४||
देव भू संतान जागो ............................

भरत भू संतान जागो, देव भू संतान जागो |
जगत के हित गरल पीने आज डमरू तन जागो ||

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