इस बार के चुनाव में ‘बागियों’ से जूझेंगे सपा व बसपा के प्रत्याशी


सपा और बसपा खेमे में बढ़ी बेचैनी, बागियों का बुलंद है हौंसला
जौनपुर। एक हिन्दी फिल्म की गीत है- ‘बहुत कठिन है डगर पनघट की’। यह गीत जौनपुर संसदीय सीट से चुनाव लड़ने वाले प्रमुख राजनीतिक दलों के प्रत्याशियों पर सटीक बैठ रहा है, क्योंकि उनको अपनी ही पार्टी के बागियों से जूझना पड़ेगा। बागी प्रत्याशियों की बात की जाय तो बसपा के बागी सांसद धनंजय सिंह, पूर्व सांसद उमाकांत यादव, सपा के बागी डा. केपी यादव, पहले बसपा एवं अब भाजपा के बागी दीपचन्द राम हैं। बागियों में सबसे सशक्त तो लोग बसपा के बागी एवं वर्तमान सांसद धनंजय सिंह को मान रहे हैं जो नौकरानी हत्याकाण्ड में तिहाड़ जेल में बंद थे लेकिन न्यायालय द्वारा मिली जमानत पर आगामी 14 मई तक अब बाहर ही रहेंगे जिसके चलते उनके समर्थकों का हौंसला बुलंद हो गया है। कुल मिलाकर ये दोनों बागी बसपा प्रत्याशी एवं पूर्व कैबिनेट मंत्री सुभाष पाण्डेय को ही नुकसान पहुंचायंगे जिसको लेकर बसपा खेमे में बेचैनी भी देखी जा रही है। वहीं दूसरी ओर कभी बसपा की राजनीति करने के लिये सरकारी नौकरी त्यागने वाले दीपचन्द राम बीते विधानसभा चुनाव में बसपा से बगावत करके जफराबाद विस से चुनाव लड़े और राजनीतिक गलियारों की मानें तो इन्हीं की वजह से बसपा प्रत्याशी एवं पूर्व कैबिनेट मंत्री जगदीश नारायण राय को हार का सामना करना पड़ा। गत दिवस भाजपा में शामिल होने वाले दीपचन्द राम मछलीशहर सुरक्षित से टिकट पाने की जुगत में थे कि हरी झण्डी न मिलने पर वे अब जौनपुर संसदीय सीट से निर्दल उम्मीदवार के रूप में दावा ठोंक दिये हैं। बसपा सांसद रहे धनंजय सिंह, बसपा के पूर्व सांसद उमाकांत यादव एवं दलितों के नेता दीपचन्द राम द्वारा चुनाव लड़ने से बसपा को काफी नुकसान पहुंचेगा, इसमें कोई दो राय नहीं है। इसी तरह गोसेवा आयोग के पूर्व चेयरमैन डा. केपी यादव को पूर्व में ही सपा प्रत्याशी घोषित कर दिया गया था लेकिन चुनाव के कुछ दिन पहले उनको हटाकर कैबिनेट मंत्री पारसनाथ यादव को प्रत्याशी बना दिया गया जिससे क्षुब्ध होकर डा. यादव ने आम आदमी पार्टी का दामन थाम लिया। ऐसे में जहां ‘आप’ पार्टी के बढ़ते जनाधार के चलते डा. यादव का हौंसला बुलंद है, वहीं सपा सहित तमाम राजनीतिक दलों के कार्यकर्ताओं द्वारा उनके साथ आ जाना ‘सोने पर सुहागा’ का काम कर रहा है। चर्चाओं की मानें तो सपा के बागी डा. केपी यादव से सपा प्रत्याशी पारसनाथ यादव को खतरा महसूस हो रहा है, क्योंकि सपा के सैकड़ों पदाधिकारी व कार्यकर्ता अब ‘आप’ पार्टी की टोपी पहन लिये हैं।

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