आस्था को कलंकित करते ढोंगी बाबा

  प्रभुनाथ शुक्ल
देश में आसाराम और नारायण साईं के बाद संत रामपाल ने भी हमारी कानून व्यवस्था से खेेलते रहे। लेकिन पुलिस की सतर्कता से बाबा किसी तरह पुलिस की पकड़ में आ गया। बगैर खून खराबे की यह गिफतारी सुरक्षा बलों की सबसे बड़ी उपलब्धि है। लेकिन जीन महिलाओं और बच्चों की मौत हुई है। वह अभी सवालों के घेरे में है कि उनकी मौत कैसे हुई। धार्मिक आस्था की आड़ में क्या वे नंगा नाच कर सकते हैं। हमारी सरकारें और कानून भी क्या इस तरह के प्रकरणों में लचीला रवैया अपनाता है ? संत आसाराम राम और उनके बेटे नारायण सांई के बाद रामपाल ने जिस तरह कानून को रौंदा उससे यही साबित होता है कि देश का कानून भी दोहरी नीति अपनाता है। आसाराम और नारायण सांई भी कानून की आंखों में धूल झोंक कर पुलिस की निगाह से बचते रहे। बाद में मीडिया के भारी दबाव के चलते बाप-बेटे की गिरफतारी हो सकी। यहां तक की गिरफतारी से बचने के लिए पुलिस को पैसे की भी पेशकस दी गई। हरियाणा के हिसार स्थित बरवाला के सतलोक आश्रम से संत रामपाल की गिरफतारी के बाद आस्था और संवैधानिक अधिकारों के बीच बड़ा टकराव सुरक्षा बलों की मुस्तैदी से टल गया। संत समर्थकों और उनकी आक्रामक नीति से खूनी महासंग्राम की आंशका जताई जा रही थी, लेकिन पुलिस की रणनीतिक कौशल से यह बच गया। यह घटना एक बड़ा सवाल खड़ा करती है कि क्या हमारे संत देश की कानूनी व्यवस्था पर भारी हैं। कानून क्या उनकी चरण पादुका है। आसाराम के बाद अब रामपाल ने आस्था की आड़ में बखेड़ा खड़ा किया। धार्मिक आस्था की आड़ अनुवाई इस तरह के संतो पर मरने मिटने तक को तैयार रहते हैं। भक्त संत को चमत्कारी मानने लगते हैं। उसके गुनाहों पर गौर नहीं करते। वह कानून से बाबाओं को बचाने के लिए सब कुछ कुर्बान कर देना चाहते हैं। लेकिन यहीं भीड़ जब खुले आम गुंडे बदमाश और पुलिस एक बेगुनाह व्यक्ति को प्रताडि़त करती है। निर्दोष की हत्या कर दी जाती है। लोग सड़क पर जिंदगी बसर करने को बेवस हो जाते हैं। उस दौरान आस्था का यह सैलाब कहीं नहीं दिखता है। एक लड़की छिछोरों से परेशान होती है लेकिन लोग आंख नीचे कर चले आते हैं। टेनों मंे खुले आम डकैती होती है लोग खुद बाबा बन जाते हैं। उस दौरान विरोध की शक्ति गायब हो जाती है। उनमें प्रतिरोध और गलत के खिलाफ लड़ने की क्षमता गायब हो जाती है। लेकिन जब बाब का सवाल आता है तो रामपाल और आसाराम जैसे हत्यारे, बलात्कारी का साथ देने के लिए यहीं जतना खड़ी दिखती है। धर्म की आस्था में क्या हम पागल हो जाते हैं। हमारी सोचने समझने की शक्ति खत्म हो जाती है। इस तरह का कुछ नहीं होता है। जब हम गलत होते हैं तभी धर्म से डरते हैं। अगर हम ईमानदार है तो हमें धर्म और बाबाओं के चमत्कार से डरने की कोई जरुरत नहीं है। उच्च न्यायालय से वारंट के बाद जिस तरह नाटक चला उससे से यही साफ होता है कि इस बीच की कड़ी में सरकार, कानून और सुरक्षा से जुड़े लोग आस्था के सवाल पर डरते दिखते हैं। जब पानी नाक के पार चला जाता है फिर सरकार हरकत में आती है। यही कुछ हरियाणा के सतलोक आश्रम में हुआ। दो हप्ते की नाटकबाजी के बाद आखिरकार पुलिस ने आधे दर्जन लोगों की बलि चढ़ाने के बाद बुधवार की रात ढोंगी संत रामपाल को गिरफतार कर लिया। अगर पुलिस इससे पहले त्वरित कार्रवाई करती तो शायद चार महिलाओं और बीमार बच्चे की मौत न होती। लेकिन दुर्भाग्य से ऐसा नहीं हो सका। रामपाल आस्था का बेजा लाभ अपनी गिरफतारी से बचने के लिए उठा रहा था। पुलिस ने आश्रम पर दबाब बढ़ाने के लिए बिजली और पानी की आपूर्ति बाधित कर दी दी थी। लेकिन आश्रम संचालक वहां जमंे लोगों को बाहर नहीं आने देना चाहते थे। वे लोगों को आश्रम के अंदर बंधक बना कर रखे थे। उन्हें मालूम था कि अगर भीड़ को आश्रम से जाने की इजात दे दी गई तो पुलिस उन पर भारी पड़ेगी और संत की गिरफतारी का रास्ता आसान हो जाएगा। लिहाजा भीड़ को बंधक बनाया रखा गया था। जिन बेगुनाह महिलाओं और बच्चे की मौत हुई है वह पुलिस की गोली से हुई या उसके दुसरे कारण से यह पोस्टमार्टम और जांच के बाद ही साबित हो सकता है। हलांकि सीएम मनोहर लाल खट्टर ने बगैर किसी हिंसा के रामपाल की गिरफताारी का दावा कर रहे हैं। आश्रम में मीडिया पर पुलिया तांडव के बाद केंद्रीय सरकार पर भी दबाब बढ़ गया था। भाजपा को अपनी छबि खराब होने का डर सताने लगा था। इसी के चलते गृहमंत्री राजनाथ सिंह ने मीडिया पर हमले की भत्र्सना की थी और इस मसले पर खट्टर से बातचीत की। बाद ने खट्टर ने ट्वीट कर कहा था कि रामपाल की गिरफताारी तक पुलिस कार्रवाई चलती रहेगी। अपनी लचीली नीति के चलते हरियाणा सरकार विपक्ष के निशाने पर थी। वहीं यह भी कहा जा रहा था कि राज्य के आम चुनावों में रामपाल ने भाजपा का समर्थन किया था। जिसके चलते खट्टर सरकार अधिक दबाव नहीं बना पा रही थी। सतलोक आश्रम से बार-बार यह खबर आ रही थी कि रामपाल का स्वास्थ्य खराब है जिसके चलते वे अदालत में पेश नहीं हो सकते हैं। जबकि उनकी गिरफतारी के बाद यह कहीकत गलत साबित हुई। पंचकूला मेडिकल कालेज में उनकी मेडिकल चेकअप के बाद यह साबित हो गई है कि रामपाल पूर्ण स्वस्थ है। वह खुद अस्पताल में चल कर गया है। उसे कोई बीमारी नहीं है। फिर आश्रम की तरफ से अदालत में पेशी के लिए यह डामेबाजी क्यों की जा रही थी। जिन बेगुनाहों की मौत हुई उसका जिम्मेदार कौन होगा? हरियाणा पुलिस ने संत पर हत्या, अपहरण, बंधक बनाने और जमीन पर कब्जा करने समेत 19 धाराओं में मामला दर्ज किया है। इस नाटकीय गिरफतारी के बाद सवाल उठता है कि क्या संत का चरित्र यही है। संत की परिभाषा इसे ही कहते हैं। क्या हिंसा ही संत और उनके अनुवाईयों का गुरुमंत्र है। पुलिस पर गोलियां चलाई गई। पेटोल बम से हमला किया गया। गुलेल से हमला किया गया। संत करीब के अनुवाई बताए जाते हैं। क्या कबीर का सिद्धात यही है। कबीर ने तो कहा है कि साधु ऐसा चाहिए जैसा सूप सुहाय....। ....ढ़ाई आखर प्रेम का पढ़े सो पंडित होए...। रामपाल ने इस महामंत्र को क्या कभी आत्मसात किया। शायद कभी नहीं। रामपाल और आसाराम जैसे संत विलासिता को ही अपना धर्म मानते हैं और खुद को भगवान मानते हैं। रामपाल भी लोगों की दौलत पर बिलासिता की जिंदगी जीता था। उसके आश्रम में मीडिया रिपोर्ट में बुलटप्रूफ सुरंग बनायी गई थी। वह अनुवाईयों के सामने चमत्कारी हाइडोलिक लिफट से आता था। ज बवह प्रगट होता तो उस पर आधुनिक रौशनी डाली जाती और उसे दिव्य ज्योंति बताई जाती। भक्त उसे बाबा का चमत्कार मानते थे। बाब आश्रम में ऐसो आराम पाखंड की जिंदगी जीता था। भारत में धर्म और आस्था के नाम पर धर्म भीरुओं को खूब शोषण किया जा सकता है। यहां आस्था और धर्म की बात पर अशिक्षित और शिक्षितों मंे कोई फर्क नहीं पड़ता है। लोग धर्म से डरते हैं और इसकी का फायदा उठा रामपाल जैसे संत उनकी भावनाओं के जरिए धार्मिक अत्याचार करते हैं। रामपाल खुद को भगवान का अवतार बताता था। 2006 में उस पर हत्या का अरोप था। इसी मामले में 2008 में उसे कोर्ट से जमानत मिली थी। चालू साल के अगस्त माह में हिसार जिला अदालत ने उसके समर्थकों ने बवाल मचाया था। जिस पर अदालत ने जमानत स्वतः खत्म करने की बात कही थी। यह सोनीपत के धनाणा गांव में पैदा हुआ था। रामपाल सिंचाई विभाग में इंजीनियर था। बाद में प्रवचन करते रामपाल से संत रामपाल बन गया। बाद में सरकार ने त्याग पत्र मांग लिया। इसके बाद बरवाला में सतलोक आश्रम की आधारशिला रखी। उसके समर्थक बाबा को चत्मकारी मानते थे। लोगों का यह भी मानना था कि वह पशुओ से बात करता है। उसने आश्रम के लिए जबरिया जमीन कब्जा किया था। रामपााल स्वामी दयानंद पर भी टिप्पणी कर चर्चा में आया था। इस टिप्पणी पर आर्य समाज के समर्थकों से आश्रम पर झड़प इुई थी। अदालत में 17 नवम्बर को पेशी न होने के बाद कोर्ट ने कड़ी फटकार लगाई थी। जिस पर सरकार की किरकिरी हुई थी। बाद में पेशी की अगली तरीख 21 नवम्बर रखी गई थी। लेकिन पुलिस के हाथ चढ़ने के बाद अपनी इज्जत बचाने के लिए हरियाणा पुलिस उसे हाईकोर्ट में पेश किया। जहां बाबा की जमनात निरस्त कर दी गई। बाबा इस बार कोर्ट में पेशी के पैतरेबाजी से नहीं बच सका। पुलिस को रामपाल ने इतना परेशान कर दिया है कि अ बवह जेल की सलाखों से बाहर नहीं निकल सकता है। उस अब अपने किए की सजा आसाराम की तरह जेल की सलाखों में ही सड़ना है। देश में अभी इस तरह के हजारों बाबा है जो सीधी साधी जनता को बेवकूफ बनाकर धार्मिक अत्याचार करते हैं। इन पर भी कार्रवाई होनी चाहिए। जिससे समाज में ढोंगी बाबा धर्म को कलंकित न कर सकें।  
लेखकः स्वतंत्र पत्रकार हैं

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  1. रामपाल को ४२ बार सम्मन देना, अपनेआप मेँ एक पहेली है। खट्टर सरकार तो अभी आई है। इससे पहले की सरकार जांच के दायरे में आती है।
    सरकार और बाबा,एक दूसरे के पूरक बने हुये हैं। मेरा मतलब है कि,किसी भी प्रकार का बाबा, जब तक अपराध के दायरे में नहीं आता, तब तक हमारे देश का प्रधानमंत्री भी,किसी बाबा के सानिध्य से वन्चित नहीं रहता।आम आदमी तो दूर की बात है। देश में पुलिस ऐसे अपराधी पर तो सख्ती से पेश आ सकती है, जो आसानी से पकड़ में आ सकता हो, तथा जिसके पीछे भीड़ भी ना हो।
    किन्तु यही पुलिस, तथाकथित बाबाओं को,पहली शिकायत से ही सख्ती से पेश आने के बजाय, उसे फलने फूलने का भरपूर समय देती है।

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