जवाबदेही से बचने के लिए कानून को ठेंगा दिखला रहे जनसूचना अधिकारी

जौनपुर। जनसूचना अधिकार कानून को भले ही सशक्त और प्रभावशाली बनाने की बात होती हो, लेकिन हकीकत यह है कि खुद अधिकारी इस महत्वाकांक्षी कानून की धज्जियां उड़ाने का काम कर रहे है। जवाबदेही से बचने के लिए अधिकारी न केवल इस कानून की हवा निकाल रहे है बल्कि टालमटोल का रास्ता अख्तियार करते हुए सही सूचना देने की बजाए अपनी गर्दन बचाने के लिए एक दूसरे के कंधे पर जवादेही तय कर अपना बचाव कर रहे है। ऐसा ही एक मामला जिले के केराकत तहसील क्षेत्र का होना बताया जा रहा है। जिसमें सीधे तौर पर न केवल सूचना कानून की अवहेलना होती दिखलाई दे रही है अपितु अधिकारियों का नकारापन भी साफतौर पर उजागर हो रहा है। बताते चले कि केराकत तहसील क्षेत्र के तरियारी गांव निवासी अमित कुमार पुत्र ओमप्रकाश ने जनसूचना अधिकार अधिनियम 2005 के अन्र्तगत पिछले वर्ष 17 दिसंबर 2015 को जनसूचना अधिकारी/उपजिलाधिकारी केराकत से दो बिंदुओं पर जानकारी चाही थी। उन्होंने उपजिलाधिकारी कार्यालय केराकत से सूचना के अधिकार के तहत ग्राम पंचायत तरियारी में ग्राम प्रधान के चुनाव में प्रयुक्त एंव आवंटित मतों की संख्या, बूथवार, मतपत्र पर अंकित नंबर के साथ प्रारूप में देने सहित ग्राम प्रधान तरियारी के प्रधान पद पर निर्वाचित श्रीमती शीला को प्राप्त मतपत्रों की छाया प्रति जिन पर मतपत्रों का सीरियल नंबर पठनीय हो की जानकारी मांगी थी। जिसे आज तक उन्हें उपलब्ध नहीं कराया गया। मजे कि बात है इस मामले को लेकर वह उपजिलाधिकारी केराकत सहित खण्ड विकास अधिकारी केराकत तथा जिलाधिकारी कार्यालय से भी फरियाद लगा चुके है। लेकिन मानों सभी ने कांनों में तेल डाल रखा है। हद तो यह है कि जवाब संतोषजनक न देकर एक दूसरे के कंधे पर जवाबदेही का भार सौंप दिया जा रहा है जिसे ढोने को कोई तैयार नहीं है। उपजिलाधिकारी कार्यालय केराकत के अलावा 22 दिसंबर 2005 को अमित कुमार ने जनसूचना अधिकारी राज्य निर्वाचन आयोग उत्तर प्रदेश सहित जिलाधिकारी जौनपुर से भी इन्हीं दो बिंदुओं पर 28 दिसंबर 15 को जनसूचना अधिकार कानून के तहत जानकारी मांगी थी। जिसके जवाब में राज्य निर्वाचन आयोग उत्तर प्रदेश पंचायत एंव नगरीय निकाय ने अपने पंत्राक संख्या-रा.नि.आ.अनु.1/524.1./प्र./सू./2016 6 जनवरी2016 के अन्र्तगत प्रभारी अधिकारी जनसूचनाअधिकारी जिला निर्वाचन कार्यालय पंचायत एंव नगरीय निकाय जौनपुर को सूचना देने के लिए अन्तरित किया था। मजे कि बात है कि सभी ने संतोषजनक जवाब देने के बजाए मामले को लटकाये ही रखने में रूचि ली है। ग्राम पंचायत चुनाव में हुई व्यापक पैमाने पर धांधली का भय अधिकारियों को इस कदर सताये जा रहा है कि वह सूचना देने से साफ बच रहे है। यहीं कारण है कि अमित कुमार को सूचना देने से अधिकारी कतरा रहे है और फरियादी दौड़ लगाने को विवश है। हास्यपद तो यह है कि इस मामले में राज्य निवार्चन आयोग सहित जिलाधिकारी का आदेश भी मातहत अधिकारियों के लिए कोई मायने नहीं रखता है। उपजिलाधिकारी कार्यालय केराकत, खण्ड विकास अधिकारी को जानकारी देने के लिए कह रहा है तो खण्ड विकास अधिकारी कार्यालय इससे इंकार कर रहा है उसका कहना है कि हमारे यहां कोई ऐसा अभिलेख ही नहीं है। यह तो रही अधिकारियों की कारगुजारी ऐसे में समझा जा सकता है कि अधिकारी सूचना अधिकार कानून के प्रति गंभीर और सजग है।


मंत्री पर भारी उपजिलाधिकारी केराकत
जौनपुर। इसे उपजिलाधिकारी केराकत सुरेन्द्र लाल श्रीवास्तव की हठधर्मिता नहीं तो और क्या कहेगें कि कई दिनों के बाद भी सूचना प्राप्त न होने पर जब प्रार्थी स्वयं उपजिलाधिकारी केराकत के कार्यालय में उनसे मिलकर सूचना देने का अनुरोध किया तो उपजिलाधिकारी भड़क उठे और बोले दूसरे से मांगों मै नहीं देता सूचना....।  जिला प्रशासन से लेकर तहसील प्रशासन तथा ब्लाक स्तर तक दौड़ लगाने के बाद भी समस्या का समाधान नहीं हो पाया तो थकहार कर अमित कुमार ने मुख्यमंत्री उत्तर प्रदेश अखिलेश यादव सहित लोक निर्माण मंत्री शिवपाल यादव तथा उर्जा राज्य मंत्री को पत्र भेज कर गुहार लगाई और पंचायती राज्य मंत्री से स्वयं मिलकर अपनी व्यथा को प्रकट  किया तो पंचायती राज्य मंत्री ने दूरभाष से जब उपजिलाधिकारी से इस संदर्भ में पूछा तो उपजिलाधिकारी केराकत ने बड़े ही सधे अंदाज में दो दिनों में सूचना उपलब्ध करा देने की बात कहीं यहीं बात जब उर्जा राज्य मंत्री ने मोबाइल से उपजिलाधिकारी से 27 दिसंबर 15 को की तो उपजिलाधिकारी ने इन्हें भी वहीं दो दिन में सूचना दे देने की बात कह टरका दिया। अब सहज ही समझा जा सकता है कि एक फरियादी की फरियाद का किस प्रकार से निराकरण उपजिलाधिकारी केराकत करते है और उनके लिए मंत्री आदि आदेश क्या मायने रखते है।



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