कॉमनवेल्थ गेम्स के समय सुशील पहलवान को क्यों नहीं याद आया ट्रायल : डॉ. ब्रजेश कुमार यदुवंशी

रियो ओलम्पिक को लेकर सुशील पहलवान व नरसिंह पंचम यादव की तकरार खेल संघ से लेकर न्यायालय तक पहुंच चुकी है। जानकार पहलवानों का कहना है कि नरसिंह पंचम यादव की बदौलत देश को ओलम्पिक कोटा मिला है तो सुशील को बीच में नहीं आना चाहिए। अगर सुशील अपने को जाँबाज मानते हैं तो 2014 में ग्लास्गो कॉमनवेल्थ गेम्स के समय उन्हें ट्रायल की याद क्यों नहीं आयी? जबकि उन्हें बगैर ट्रालय के भेजा गया था। सुशील को उसी समय कहना चाहिए था कि ट्रायल में जीतने के बाद ही ग्लास्गो जाऊंगा। बकौल नरसिंह पंचम यादव- 'सुशील 66 किलोग्राम भार वर्ग में खेलते थे लेकिन अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर उन्होंने पहली बार 74 किलोग्राम भारवर्ग में हिस्सा लिया तो उनका ट्रालय होना चाहिए था लेकिन मैंने तब भारतीय कुश्ती महासंघ के फैसले का सम्मान किया था। नरसिंह का कहना हैं कि 'मैं शुरु से 74 किलोग्राम भारवर्ग में हिस्सा लेते आया हूं। मैंने इचिपोन एशियन गेम्स 2014 में जाने के लिए ट्रायल की पूरी तैयारी कर ली थी, लेकिन सुशील यह कहकर हट गये थे कि उन्हें चोट है। कुश्ती महासंघ ने मुझे मौका दिया और मैंने देश को पदक दिलाया। जब मैं 2015 में विश्व चैम्पियनशिप खेलने गया तो उस समय सुशील को ट्रायल याद आना चाहिए था लेकिन सुशील ने शायद यही सोचा होगा कि मेहनत कोई और करे, लेकिन फल उन्हें ही मिलेगा। सुशील को देश को यह भी बताना चाहिए कि उन्हें ऐसी कौन सी चोट थी, जिसकी वजह से एशियन गेम्स और विश्व चैम्पियनशिप से दूर रहे। दुनिया जानती है कि एशियन गेम्स और विश्व चैम्पियनशिप के मुकाबले कॉमनवेल्थ में पदक जीतना आसान है। नरसिंह पंचम यादव का यह भी कहना है कि अगर आज मैं रियो जा रहा हूं तो अपने दम पर क्वालीफाई किया है। सुशील पहलवान का कहना है कि वह चाहते तो नरसिंह पंचम यादव को प्रो कुश्ती लीग में नहीं खेल पाता। इस पर पलटवार करते हुए नरसिंह का कहना है कि उन्हें यह बात देश को बतानी चाहिए कि वह मुझे कैसे प्रो कुश्ती लीग में खेलने से रोक सकते थे।
 कुल मिलाकर यह माना जा रहा है कि नरसिंह पहलवान रियो ओलम्पिक में हिस्सा नहीं ले पाये तो लोगों का विश्वास खेल फेडरेशन से उठ जायेगा। नरसिंह पंचम यादव महाराष्ट्र से खेलते हैं लेकिन वह मूलत: उत्तर प्रदेश के चोलापुर वाराणसी के रहने वाले हैं। कुश्ती विशेषज्ञों का कहना है कि 74 किलोग्राम भारवर्ग में इस समय नरसिंह पहलवान का कोई जोड़ नहीं अगर इन्हें रियो ओलम्पिक नहीं भेजा जाता हैं तो यह घोर बेइमानी होगी। पूरे देश की निगाहें नरसिंह पहलवान पर टिकी है कि वे रियो ओलम्पिक से देश के लिए पदक लेकर आएं।
भारतीय कुश्ती संघ के उपाध्यक्ष राज सिंह ने सुशील कुमार के समर्थन में दिल्ली हाईकोर्ट में शपथ पत्र दिया है कि ट्रायल होना चाहिए। राज सिंह ने हवाला दिया है कि ऐसा पहले भी 1996 ओलम्पिक में हुआ है और उस सम वह भारतीय टीम के मुख्य कोच थे हालांकि कुश्ती संघ ने उनके इस दावे को नकार दिया है और कहा है कि वह उस समय मुख्य कोच नहीं थे। कुश्ती के राष्ट्रीय पहलवान लालजी यादव का कहना है कि 1996 के अटलांटा ओलम्पिक में भारत को 48 किलोग्राम भारवर्ग में वाइल्ड कार्ड कोटा मिला था, उस समय इस वर्ग के अच्छे पहलवान पप्पू यादव थे, लेकिन काका पवार ने कुश्ती संघ से अपील की थी कि उनके बीच ट्रायल कराया जाए। ऐसे में कुश्ती संघ ने ट्रायल कराया था जिसमें पप्पू यादव जीत दर्ज कर अटलांटा ओलम्पिक में भाग लेने गये थे। कुश्ती संघ का कहना है कि ट्रायल तब कराया गया था जब भारत को बिना लड़े एक कोटा मिला था। यही वजह है कि ट्रायल कराना जरुरी था। जब किसी पहलवान ने क्वालीफाई नहीं किया था तो देश को मिले कोटा में दोनों पहलवानों को बराबर का मौका मिला जिसमें पप्पू यादव विजयी रहे। सुशील व नरसिंह पहलवान के बीच ऐसी कोई बात नहीं है क्योंकि यहां तो सीधे रियो ओलम्पिक जाने के हकदार नरसिंह पहलवान ही हैं।
(लेखक जाने माने साहित्यकार व 'अनुसंधान यात्रा' के सम्पादक हैं)

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