अब जेब्रा बना स्वाभिमानियों का मददगार
http://www.shirazehind.com/2020/05/blog-post_894.html
जौनपुर: वे बेबस हैं। लॉकडाउन में काम-धंधा बंद हो जाने से अक्सर चूल्हा ठंडा पड़ा रहता है। उन पर आश्रित पाल्य पेट की भूख मिटाने की आस में उनकी तरफ आशाभरी नजरों से देखते हैं तो कलेजा फट उठता है, पर समाज में उनकी पहचान बहुत संपन्न नहीं तो खाते-पीते परिवार की है। ऐसे हालात में भी वे किसी के आगे हाथ पसारने में संकोच करते हैं क्योंकि आत्म सम्मान आड़े आ जाता है। कोरोना वायरस रूपी वैश्विक महामारी के चलते लॉकडाउन के तीसरे और अब चौथे चरण में ऐसे ही स्वाभिमानियों का बड़ा मददगार बन गया है जिले का अग्रणी रचनात्मक व सामाजिक संगठन 'जेब्रा फाउंडेशन ट्रस्ट।' इनके लिए 'जेब्रा बैग' मां अन्नपूर्णा का प्रसाद जैसा साबित हो रहा है।
संगठन का सूत्र वाक्य है...आशा की ज्योति। संगठन के नि:स्वार्थ कर्मयोगी इसी पर खुद को खरा साबित करने में तन-मन-धन से जुटे हैं। संगठन से जुड़े लोग खुद और समाज से गहरा सरोकार रखने वाले शुभेच्छुओं के माध्यम से रोजाना ऐसे 20-25 स्वाभिमानियों को चिह्नित करते हैं। फिर उसके आत्मसम्मान का पूरा ख्याल करते हुए उन्हें 'जेब्रा बैग' उपलब्ध करा देते हैं। समाजसेवा का न कोई दिखावा और नहीं फोटोग्राफी जिससे उसे स्वीकारने में झिझक महसूस हो। यदि वह चाहता है कि संगठन के लोग बैग लेकर उसके घर न आएं तो वे उसके बताए स्थान पर बैग रख देते हैं। यदि उसकी मर्जी होती है तो खुद संगठन के कार्यालय जाकर बैग ले लेता है। संगठन के अध्यक्ष संजय कुमार सेठ, विजयंत सोंथालिया, अनंत श्रीवास्तव, अमरनाथ सेठ राजू, रवि मनोज विश्वकर्मा, मो. तौफीक राजू, आशीष वाधवा, नीरज शाह, तथागत सेठ आदि पूरे मनोयोग से यह कार्य कर रहे हैं।
बता दें, लॉकडाउन के पहले दो चरणों में संगठन घर-घर अलसुबह अखबार लेकर पहुंचने वाले कर्मयोगियों, कोरोना वॉरियर रूपी पुलिस जवानों, सफाई कर्मियों को जलपान कराने के साथ ही सड़कों पर घूमने वाले बेसहारा कुत्तों को भी बिस्किट खिला चुका है।
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*क्या होता है जेब्रा बैग में*
आटा-पांच किलो, चावल- दो किलो, अरहर दाल-एक किलो, सोयाबीन नट्स-250 ग्राम, सरसों तेल-500 ग्राम, गुड़ -500 ग्राम, गरम मसाला- एक पैकेट, नमक- 500 ग्राम, सब्जी- आलू, कोहड़ा व प्याज।
संगठन का सूत्र वाक्य है...आशा की ज्योति। संगठन के नि:स्वार्थ कर्मयोगी इसी पर खुद को खरा साबित करने में तन-मन-धन से जुटे हैं। संगठन से जुड़े लोग खुद और समाज से गहरा सरोकार रखने वाले शुभेच्छुओं के माध्यम से रोजाना ऐसे 20-25 स्वाभिमानियों को चिह्नित करते हैं। फिर उसके आत्मसम्मान का पूरा ख्याल करते हुए उन्हें 'जेब्रा बैग' उपलब्ध करा देते हैं। समाजसेवा का न कोई दिखावा और नहीं फोटोग्राफी जिससे उसे स्वीकारने में झिझक महसूस हो। यदि वह चाहता है कि संगठन के लोग बैग लेकर उसके घर न आएं तो वे उसके बताए स्थान पर बैग रख देते हैं। यदि उसकी मर्जी होती है तो खुद संगठन के कार्यालय जाकर बैग ले लेता है। संगठन के अध्यक्ष संजय कुमार सेठ, विजयंत सोंथालिया, अनंत श्रीवास्तव, अमरनाथ सेठ राजू, रवि मनोज विश्वकर्मा, मो. तौफीक राजू, आशीष वाधवा, नीरज शाह, तथागत सेठ आदि पूरे मनोयोग से यह कार्य कर रहे हैं।
बता दें, लॉकडाउन के पहले दो चरणों में संगठन घर-घर अलसुबह अखबार लेकर पहुंचने वाले कर्मयोगियों, कोरोना वॉरियर रूपी पुलिस जवानों, सफाई कर्मियों को जलपान कराने के साथ ही सड़कों पर घूमने वाले बेसहारा कुत्तों को भी बिस्किट खिला चुका है।
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*क्या होता है जेब्रा बैग में*
आटा-पांच किलो, चावल- दो किलो, अरहर दाल-एक किलो, सोयाबीन नट्स-250 ग्राम, सरसों तेल-500 ग्राम, गुड़ -500 ग्राम, गरम मसाला- एक पैकेट, नमक- 500 ग्राम, सब्जी- आलू, कोहड़ा व प्याज।