अवसाद क्या है ?क्यों लोग अवसाद के कारण आत्महत्या कर लेते हैं ?
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डॉ जाह्नवी श्रीवास्तव , असिस्टेंट प्रोफेसर मनो विज्ञान विभाग , वीर बहादुर सिंह पूर्वांचल विश्वविद्यालय
एक बार फिर सुशांत सिंह राजपूत जैसे बड़े एवं सफल कलाकार के अचानक आत्महत्या कर लेने की खबर के बाद सबके मन में अनसुलझे सवाल की तरह कौंध रहा है ,साधारण शब्दों में अवसाद या डिप्रेशन एक तरह से अंधकार मय कुंआ है जहां रोशनी की एक भी किरण नहीं होती यह कुंआ व्यक्ति के अपने भीतर ही होता है ।फिर प्रश्न यह आता है कि कैसा अंधकार, किस तरह का अंधकार ,वह भी एक स्टार के भीतर जिसका सारा जीवन ही चमक-दमक से घिरा होता है? इस तरह के प्रश्न मन में आना साधारण जन के लिए स्वाभाविक है परंतु मन के भीतर का अंधकार बाहर की चमक दमक से नहीं जाता यह तो जाता है जब उसके जीवन में ऐसा साथी या मित्र हो जिसके समक्ष अपने मन की सारी भावनाएं बेझिझक खोल कर रख सके , जहां उसके मन में ये डर न हो कि वह उसका मूल्याकन कैसे करेगा? जीने का कोई मकसद हो जो सिर्फ अपने लिए ना जिया जाए अपनों के लिए जिया जाए लक्ष्य को प्राप्त करने का उद्देश्य, प्राप्त कर लेने के बाद उस खुशी को अपनों के साथ बांटने का आनंद ,तो क्या सुशांत सिंह राजपूत अंदर से अकेला था? शायद था, क्योंकि अकेलापन एक ऐसा विष है जो व्यक्ति को धीरे-धीरे अंदर ही अंदर दीमक की तरह चाल देता है ,ऐसा इसलिए कह सकते हैं कि सोशल मीडिया से भी उन्होंने दूरी बना लिया था ।जब लोग अवसाद ग्रस्त होते हैं तो अपनी बातें किसी से साझा नहीं करते अवसाद की स्थिति में उनका जीवन नीरस हो जाता है उनके लिए दुनिया बेकार हो जाती है एक स्थिति ऐसी आती है कि उनकी उपलब्धियां भी उन्हें बेकार सी लगने लगती है अपने आप से व्यक्ति भागना शुरू कर देता है अपना दिन प्रतिदिन का काम भी बोझ सा लगने लगता है तब जब कोई उद्देश्य कोई उत्साह नहीं रह जाता तब सिर्फ आत्महत्या का भयानक ख्याल मन में आता है ,यह एक पल की बात नहीं होती यह एक लंबी प्रक्रिया होती है लंबे समय से व्यक्ति निराशा के घोर अंधेरे में धीरे-धीरे ज्यादा रहता है तो अचानक एक दिन इस तरह दुखद और चौंका देने वाला परिणाम हमारे सामने होता है आज भारतवर्ष में ही प्रति बीस में एक व्यक्ति डिप्रेशन का पेशेंट है ,यह भयावह आंकड़ा है ।ज्यादातर उन लोगों में डिप्रेशन ज्यादा होता है जिनका बौद्धिक स्तर ज्यादा अच्छा होता है ,ऐसे लोगों को किसी एक चीज से संतुष्टि नहीं होती एक लक्ष्य प्राप्त हो जाने के बाद वह दूसरा लक्ष्य बनाते हैं इस तरह वह अपने ही बनाए लक्ष्य के बीच भटकते हैं ,अशांत होता है ऐसे लोगों का मन मस्तिष्क इसलिए जिन की बौद्धिक क्षमता कम है उन्हें तो मनोवैज्ञानिक परामर्श की आवश्यकता तो होती ही है परंतु जिन की बौद्धिक क्षमता अधिक होती है उन्हें भी उतने ही मनोवैज्ञानिक परामर्श की आवश्यकता होती है ज्यादातर डिप्रेशन में वही जाते हैं जो पढ़ाई में बहुत तेज होते हैं मनोविज्ञान के महत्व को समझना होगा मनोवैज्ञानिक सहायता लेने में झिझक नहीं होनी चाहिए क्योंकि यही वह रास्ता है जहां से व्यक्ति को किसी भी मनोवैज्ञानिक समस्या से बाहर निकाला जा सकता है।
एक बार फिर सुशांत सिंह राजपूत जैसे बड़े एवं सफल कलाकार के अचानक आत्महत्या कर लेने की खबर के बाद सबके मन में अनसुलझे सवाल की तरह कौंध रहा है ,साधारण शब्दों में अवसाद या डिप्रेशन एक तरह से अंधकार मय कुंआ है जहां रोशनी की एक भी किरण नहीं होती यह कुंआ व्यक्ति के अपने भीतर ही होता है ।फिर प्रश्न यह आता है कि कैसा अंधकार, किस तरह का अंधकार ,वह भी एक स्टार के भीतर जिसका सारा जीवन ही चमक-दमक से घिरा होता है? इस तरह के प्रश्न मन में आना साधारण जन के लिए स्वाभाविक है परंतु मन के भीतर का अंधकार बाहर की चमक दमक से नहीं जाता यह तो जाता है जब उसके जीवन में ऐसा साथी या मित्र हो जिसके समक्ष अपने मन की सारी भावनाएं बेझिझक खोल कर रख सके , जहां उसके मन में ये डर न हो कि वह उसका मूल्याकन कैसे करेगा? जीने का कोई मकसद हो जो सिर्फ अपने लिए ना जिया जाए अपनों के लिए जिया जाए लक्ष्य को प्राप्त करने का उद्देश्य, प्राप्त कर लेने के बाद उस खुशी को अपनों के साथ बांटने का आनंद ,तो क्या सुशांत सिंह राजपूत अंदर से अकेला था? शायद था, क्योंकि अकेलापन एक ऐसा विष है जो व्यक्ति को धीरे-धीरे अंदर ही अंदर दीमक की तरह चाल देता है ,ऐसा इसलिए कह सकते हैं कि सोशल मीडिया से भी उन्होंने दूरी बना लिया था ।जब लोग अवसाद ग्रस्त होते हैं तो अपनी बातें किसी से साझा नहीं करते अवसाद की स्थिति में उनका जीवन नीरस हो जाता है उनके लिए दुनिया बेकार हो जाती है एक स्थिति ऐसी आती है कि उनकी उपलब्धियां भी उन्हें बेकार सी लगने लगती है अपने आप से व्यक्ति भागना शुरू कर देता है अपना दिन प्रतिदिन का काम भी बोझ सा लगने लगता है तब जब कोई उद्देश्य कोई उत्साह नहीं रह जाता तब सिर्फ आत्महत्या का भयानक ख्याल मन में आता है ,यह एक पल की बात नहीं होती यह एक लंबी प्रक्रिया होती है लंबे समय से व्यक्ति निराशा के घोर अंधेरे में धीरे-धीरे ज्यादा रहता है तो अचानक एक दिन इस तरह दुखद और चौंका देने वाला परिणाम हमारे सामने होता है आज भारतवर्ष में ही प्रति बीस में एक व्यक्ति डिप्रेशन का पेशेंट है ,यह भयावह आंकड़ा है ।ज्यादातर उन लोगों में डिप्रेशन ज्यादा होता है जिनका बौद्धिक स्तर ज्यादा अच्छा होता है ,ऐसे लोगों को किसी एक चीज से संतुष्टि नहीं होती एक लक्ष्य प्राप्त हो जाने के बाद वह दूसरा लक्ष्य बनाते हैं इस तरह वह अपने ही बनाए लक्ष्य के बीच भटकते हैं ,अशांत होता है ऐसे लोगों का मन मस्तिष्क इसलिए जिन की बौद्धिक क्षमता कम है उन्हें तो मनोवैज्ञानिक परामर्श की आवश्यकता तो होती ही है परंतु जिन की बौद्धिक क्षमता अधिक होती है उन्हें भी उतने ही मनोवैज्ञानिक परामर्श की आवश्यकता होती है ज्यादातर डिप्रेशन में वही जाते हैं जो पढ़ाई में बहुत तेज होते हैं मनोविज्ञान के महत्व को समझना होगा मनोवैज्ञानिक सहायता लेने में झिझक नहीं होनी चाहिए क्योंकि यही वह रास्ता है जहां से व्यक्ति को किसी भी मनोवैज्ञानिक समस्या से बाहर निकाला जा सकता है।