प्राइवेट स्कूलों में राइटर चेंज कर शुरू हो जाता है कमीशन का खेल

जौनपुर। सरकार के प्रतिबंधों के बावजूद प्राइवेट स्कूलों में निजी प्रकाशकों की पुस्तकों का चलन बन्द होने का नाम नहीं ले रहा है। मांटेसरी स्कूलों में भी एनसीईआरटी की पुस्तकें पाठ्यक्रम में शामिल करने का फरमान पूरी तरह से हवाई साबित हो रहा है। 

करीब सभी मांटेसरी स्कूलों में निजी प्रकाशकों की पुस्तकें चलाई जाती हैं जो बाजारों में तय दुकानों पर ही मिलती हैं। पुस्तक विक्रेता स्कूल संचालकों को मोटा कमीशन देकर अभिभावकों की जेबों पर डाका डालने से बाज नहीं आ रहे हैं। कई स्कूल स्वयं बच्चों को कापियां-किताबें व ड्रेस देकर अधिक दाम वसूल रहे हैं। अफसरों ने स्कूलों को मान्यता देने के बाद वहां संचालित पाठ्यक्रमों सहित अन्य संसाधनों की जांच करना मुनासिब नहीं समझा। इससे शिक्षा के नाम पर धनउगाही का कारोबार धड़ल्ले से फल-फूल रहा है। छात्रों का दाखिला, किताबें, ड्रेस बजट को गड़बड़ कर रही हैं। निजी स्कूलों ने प्राइवेट पब्लिकेशन की पुस्तकों को बढ़ावा क्या दिया कि किताबों के मुंहमांगे दाम हो गये हैं। स्कूल संचालकों ने या किताबों सहित अन्य स्टेशनरी की दुकान स्कूल में ही खुलवा दिया है या फिर बाजार में बुक सेलर को अधिकृत कर लिया है। कमीशन के खेल में बच्चे की पढ़ाई इतनी महंगी हो गई है कि दाखिला, ड्रेस और पुस्तकों के खर्च से पहली कक्षा का विद्यार्थी ही 15 हजारी हो गया है। जिले में करीब सैकड़ों की संख्या में निजी स्कूल हैं। शहर में किताब विक्रेताओं के पास जाकर किताबों के रेट, उन्हें लागू करने की प्रक्रिया के बारे में जाना गया तो कई आश्चर्यजनक पहलू सामने आए हैं। नर्सरी कक्षा को देखा जाए तो थ्री इन वन यानी हिंदी, अंग्रेजी और गणित विषय की एक ही किताब 50 रुपए तक मिल जाएगी लेकिन निजी स्कूल, हिंदी, अंग्रेजी, गणित, कविताएं सहित कई किताबें अलग-अलग लगवा रहे जो एक किताब 100 रुपए से कम नहीं है। पूरा खर्च एक हजार तक पहुंच जाता है। अब ऐसे में सवाल उठना है कि इन निजी स्कूल संचालकों पर लगाम कैसे लगेगी? जिम्मेदार लोग शिक्षा के व्यवसायीकरण पर कुछ भी बोलने या कार्रवाई करने से क्यों कतरा रहे हैं? फिलहाल बच्चों को पढ़ाने के चक्कर में अभिभावक लूटा जा रहा है।

लिखित में होगी शिकायत तो करेंगे कार्यवाही: बीएसए
प्राइवेट स्कूलों में हर साल किताबों को बदल दिये जाने के संबंध में जब जिला बेसिक शिक्षा अधिकारी डा. गोरखनाथ पटेल से बात की गयी तो उन्होंने कहा कि कोई लिखित शिकायत करेगा तो जांच की जायेगी। उनसे पूछा गया कि हर साल एलकेजी से लेकर 8 तक के बच्चों की किताबें बदल दिये जाने के संबंध में कोई शासनादेश आया तो उन्होंने कहा कि शासनादेश नहीं आया है।

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