अकेलापन और एकांतवास

मुझे अकेलापन खलता है,

सदा मुझे दुःख मिलता है,
यही अकेलापन जीवन में,
सबको बड़ी सजा देता है।

इंसान अकेला रह जाता है,
दिल ही दिल में घबराता है,
घबराहट से दम भी घुटता है,
सब कुछ सूना सा लगता है।

आख़िर ऐसा क्या होता है,
अकेलापन क्यों खलता है,
एकांतवास में रह करके तो,
शान्ति और सुख मिलता है।

कोई अकेला यदि रह जाये तो,
वह निज अंतर्मन से ध्यान करे,
एकान्तवास का अनुभव होगा,
ध्यान, ज्ञान, सुख-शान्ति मिले।

अकेलापन और एकान्त वास,
दोनो शब्द एक से ही लगते हैं,
लेकिन जीवन में अलग अलग,
दोनो ही विपरीत प्रभाव देते हैं।

एकांतवास है वानप्रस्थ जहाँ,
चिंतन- मनन युक्त जीवन हो,
कहता है धर्म सनातन भी यह,
जीवन का तीसरा आश्रम हो।

ऋषियों, मुनियों ने एकांतवास में,
ईश्वर का ध्यान इस ओर किया,
तप, त्याग, तपस्या व वृत करके,
ज्ञानार्जन का जग को संदेश दिया।

अकेलेपन से एकान्तवास की,
विषम यात्रा का जीवन पथ,
राही ही तो हैं हम मंज़िल के
है यही हमारे जीवन का रथ।

आओ अकेलेपन की यात्रा को,
एकांतवास की तरफ़ ले चलें,
आदित्य का ध्येय शांति व सुख,
उस ओर हमारा हर कदम बढ़े।

कर्नल आदि शंकर मिश्र
लखनऊ

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