पुरानी पेंशन बहाल करो

पुरानी पेंशन दुबारा तू चालू करो,

बे-सहारा हुए तो मर जाएँगे।
कौन पूछेगा मुझको उस हाल में,
पूरा जीने से पहले गुजर जाएँगे।

अपनी पेंशन को तूने क्यों जारी रखा,
महकते फूलों की क्यों तूने क्यारी रखा।
बात समझा नहीं तो कोशिश करो,
हक़ मरोगे मेरा किधर जाएँगे?
पुरानी पेंशन दुबारा तू चालू करो,
बे-सहारा हुए तो मर जाएँगे।

देश-सेवा किया, बोझ समझो नहीं,
ख्याल सबका करो, रोग समझो नहीं।
पेंशन धूरी है जीवन की, शौक तो नहीं,
लाठी टूटी बुढ़ापे की गिर जाएँगे।
पुरानी पेंशन दुबारा तू चालू करो,
बे-सहारा हुए तो मर जायेंगे।

मेरे दस्तूर को तुम तोड़ो नहीं,
नई पेंशन को इससे जोड़ो नहीं।
देंगें कुर्बानी अपनी जवानी का अब,
हम हैं खुशबू हवा में बिखर जायेंगे।
पुरानी पेंशन दुबारा तू चालू करो,
बे-सहारा हुए तो मर जाएँगे।

चांद-तारों की बाग हम कहां मांगते,
बस जमीं पर चलें, वो जहां मांगते।
धुआं-धुआं है फैला ये चारों तरफ,
ज्यादा सुलगाओगे तो जल जाएँगे।
पुरानी पेंशन दुबारा तू चालू करो,
बे-सहारा हुए तो मर जायेंगे।
कौन पूछेगा मुझको उस हाल में,
पूरा जीने से पहले गुजर जायेंगे।
रामकेश एम. यादव मुम्बई
(कवि व लेखक)

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