मनुष्य का सबसे बड़ा शत्रु होता है लोभः आत्म प्रकाश सरस्वती
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श्रीमद्भागवत कथा में प्रस्तुत झांकी देखकर लोग हुये मंत्र-मुग्ध
जौनपुर। मनुष्य का सबसे बड़ा शत्रु होता है लोभ। लोभ करने वाला प्राणी कभी भी खुशहाल नहीं हो सकता है और यही कारण रहता है कि उसके साथ परिवार भी परेशान रहता है। उक्त विचार शीतला चैकियां धाम में चल रहे श्रीमद्भागवत कथा में स्वामी श्री आत्म प्रकाश सरस्वती जी महाराज ने व्यक्त किया। उन्होंने बताया कि काशी से पढ़कर आये अपने पुत्र से पंडित जी ने प्रश्न किया कि पाप के बाप का क्या नाम है? पुत्र ने कहा कि यह तो किसी स्कूल/कालेज में नहीं पढ़ाया गया। पिता ने पुत्र को आदेश दिया कि जाओ और पढ़कर आओ। उसके बाद उत्तर दो। पुत्र स्कूल/कालेज की पढ़ाई की खोज में निकला। जाते समय भूख व प्यास से व्याकुल हो गया तभी देखा कि एक युवती कुएं पर पानी निकाल रही थी। संकोचवश उसने पानी नहीं मांगा लेकिन युवती ने पंडित जी से पूछा कि आपको प्यास लगी है क्या? उन्होंने कहा- हमें प्यास व भूख दोनों लगी है। युवती ने अपने घर की तरफ इशारा करते हुये कहा कि आप वहां चलें। भोजन व पानी दोनों मिलेगा। पंडित जी युवती के घर पर गये जहां उसने कहा कि आप आचार्य ब्राह्मण से सच बताना चाहती हूं कि मैं वेश्या हूं। हमारे हाथ से बनाया हुआ भोजन आप करेंगे। अपने कल्याण के लिये मैं 11 हजार रूपये दक्षिणा भी दूंगी। यदि आप हमारे हाथ से खायेंगे तो 51 हजार रूपये दक्षिणा दूंगी। 51 हजार के चक्कर में पंडित जी तैयार हो गये। भोजन खिलाने के लिये उसने कवर उठायी और उनको खिलायी तो नहीं लेकिन उनके गाल पर जोरदार तमाचा जरूर मारी जिस पर पंडित ने कहा कि ये क्या किया? तो उसने कहा कि मैं पतिव्रता नारी हूं। वेश्या नहीं हूं। उसने पूछा- आप कहां जा रहे थे? पंडित ने कहा कि पाप के बाप का नाम पढ़ने जा रहे थे। यही मैं पढ़ाई हूं। पंडित पाप के बाप का नाम लोभ है। भयंकर शत्रु लोभ से बचने के लिये भागवत कथा संजीवनी बूटी है। इस दौरान वासुदेव, कृष्ण जन्म, देवकी व कंस की झांकी प्रस्तुत की गयी जिसे देख व सुनकर श्रद्धालुगण मंत्र-मुग्ध हो गये। इस अवसर पर विपिन माली सहित सैकड़ों लोग उपस्थित रहे।
जौनपुर। मनुष्य का सबसे बड़ा शत्रु होता है लोभ। लोभ करने वाला प्राणी कभी भी खुशहाल नहीं हो सकता है और यही कारण रहता है कि उसके साथ परिवार भी परेशान रहता है। उक्त विचार शीतला चैकियां धाम में चल रहे श्रीमद्भागवत कथा में स्वामी श्री आत्म प्रकाश सरस्वती जी महाराज ने व्यक्त किया। उन्होंने बताया कि काशी से पढ़कर आये अपने पुत्र से पंडित जी ने प्रश्न किया कि पाप के बाप का क्या नाम है? पुत्र ने कहा कि यह तो किसी स्कूल/कालेज में नहीं पढ़ाया गया। पिता ने पुत्र को आदेश दिया कि जाओ और पढ़कर आओ। उसके बाद उत्तर दो। पुत्र स्कूल/कालेज की पढ़ाई की खोज में निकला। जाते समय भूख व प्यास से व्याकुल हो गया तभी देखा कि एक युवती कुएं पर पानी निकाल रही थी। संकोचवश उसने पानी नहीं मांगा लेकिन युवती ने पंडित जी से पूछा कि आपको प्यास लगी है क्या? उन्होंने कहा- हमें प्यास व भूख दोनों लगी है। युवती ने अपने घर की तरफ इशारा करते हुये कहा कि आप वहां चलें। भोजन व पानी दोनों मिलेगा। पंडित जी युवती के घर पर गये जहां उसने कहा कि आप आचार्य ब्राह्मण से सच बताना चाहती हूं कि मैं वेश्या हूं। हमारे हाथ से बनाया हुआ भोजन आप करेंगे। अपने कल्याण के लिये मैं 11 हजार रूपये दक्षिणा भी दूंगी। यदि आप हमारे हाथ से खायेंगे तो 51 हजार रूपये दक्षिणा दूंगी। 51 हजार के चक्कर में पंडित जी तैयार हो गये। भोजन खिलाने के लिये उसने कवर उठायी और उनको खिलायी तो नहीं लेकिन उनके गाल पर जोरदार तमाचा जरूर मारी जिस पर पंडित ने कहा कि ये क्या किया? तो उसने कहा कि मैं पतिव्रता नारी हूं। वेश्या नहीं हूं। उसने पूछा- आप कहां जा रहे थे? पंडित ने कहा कि पाप के बाप का नाम पढ़ने जा रहे थे। यही मैं पढ़ाई हूं। पंडित पाप के बाप का नाम लोभ है। भयंकर शत्रु लोभ से बचने के लिये भागवत कथा संजीवनी बूटी है। इस दौरान वासुदेव, कृष्ण जन्म, देवकी व कंस की झांकी प्रस्तुत की गयी जिसे देख व सुनकर श्रद्धालुगण मंत्र-मुग्ध हो गये। इस अवसर पर विपिन माली सहित सैकड़ों लोग उपस्थित रहे।