2004 में सपा एवं 2009 में कांग्रेस की बड़ी जीत में अति पिछड़ी जातियों की रही अहम भूमिका: लौटन राम
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शुभम जायसवाललखनऊ। बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार केन्द्र में सत्ता परिवर्तन के लिए भाजपा विरोधी दलों का गठबंधन बनाने के लिये प्रयास कर रहे हैं। लखनऊ में सपा सुप्रीमो अखिलेश यादव से मिलने आए थे, तब बयान दिए कि वे भाजपा को हटाने के उद्देश्य से विपक्षी एकता का प्रयास कर रहे हैं, प्रधानमंत्री बनने की लालसा नहीं है। भारतीय ओबीसी महासभा के राष्ट्रीय प्रवक्ता लौटन राम निषाद ने नीतीश कुमार के बयान को नकारते हुए कहा कि उनका असल मकसद अपने को पीएम चेहरा बनाना ही है।
उन्होंने आगे कहा कि नीतीश कुमार जी को पहले भतीजे तेजस्वी यादव को बिहार का मुख्यमंत्री बनाकर त्याग व उदारता का परिचय देना चाहिए। नीतीश कुमार जी अभी तक मुख्यमंत्री के लिए ही पाला बदलते रहे हैं और अंदरखाने उनकी टीम उन्हें पीएम के लिए काम में जुटी हुई है। सपना सभी को देखना चाहिए परंतु दिल भी विशाल रखना चाहिए। आगामी 23 जून को पटना में भाजपा विरोधी दलों का जमावड़ा हो रहा, भाजपा को पटखनी देने के लिए एकजुटता जरूरी है। उन्होंने बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार से तेजस्वी यादव को 23 जून को इसी मंच से मुख्यमंत्री बनाने का प्रस्ताव रखने का आग्रह किए हैं, ताकि चाचा पलटू राम की छवि से बाहर निकाला जा सके।
श्री निषाद ने कहा कि समाजवादी पार्टी को अभी तक की लोकसभा में 39 सीटों की सबसे बड़ी 2004 में मिली थी जिसमें निषाद-मल्लाह, केवट, कश्यप, बिन्द, राजभर, प्रजापति आदि 17 अति पिछड़ी जातियों की अहम भूमिका थी। 5 मार्च 2004 को तत्कालीन मुख्यमंत्री मुलायम सिंह यादव ने 17 अति पिछड़ी जातियों को अनुसूचित जाति में शामिल करने के लिए केन्द्र सरकार को प्रस्ताव भेजे थे।जिसके कारण अति पिछड़ी जातियों ने एकजुट होकर सपा को बड़ी जीत दिलाया था। 27 जनवरी 2009 को कांग्रेस की राष्ट्रीय अध्यक्षा सोनिया गांधी ने एनटीपीसी गेस्ट हाउस ऊँचाहार, रायबरेली में राष्ट्रीय निषाद संघ के प्रतिनिधिमंडल से कहीं थीं कि चुनाव में कांग्रेस की मदद करिए, सरकार बनने पर निषाद मछुआरा जातियों को अनुसूचित जाति का दर्जा दिलाऊंगी।उन्होंने कहा कि सोनिया गांधी के वादे के आधार पर निषाद जातियों ने 2009 के लोकसभा चुनाव में कांग्रेस की मदद किया जिससे उसे 21 सीटों पर जीत मिली थी। उत्तर प्रदेश के ग्रामीण जातिगत समीकरण में 7.98 प्रतिशत निषाद मछुआरा जातियां, 1.84 प्रतिशत प्रजापति और 1.31 प्रतिशत राजभर की संख्या है। इन अति पिछड़ी जातियों की 11.13 प्रतिशत जनसंख्या का हराने जीताने में काफी अहम भूमिका रहती है।
उन्होंने बताया कि विधानसभा चुनाव-2012 के दौरान समाजवादी पार्टी ने सरकार बनते ही 17 अति पिछड़ी जातियों को अनुसूचित जाति का आरक्षण देने का वादा किया था जिससे अति पिछड़ी जातियों ने 2012 में समाजवादी पार्टी की तरफ मुड़ गयी लेकिन अखिलेश यादव की सरकार में निषाद, लोधी, किसान, शाक्य/कुशवाहा, पाल, राजभर, पटेल जातियों के साथ उपेक्षापूर्ण रवैया अपनाने व राजनीतिक अपमान करने के कारण ये भाजपा के साथ चली गईं। अखिलेश यादव के मंत्रिमंडल में 7 यादव, 6-6 मुस्लिम, ठाकुर, ब्राह्मण को कैबिनेट मंत्री बनाने के साथ इन जातियों के 12 से 15 मंत्री बनाये गये, वही निषाद, कुर्मी, कुशवाहा/शाक्य, बघेल/पाल, लोधी, किसान आदि जैसी प्रभावशाली जातियों को महत्वहीन राज्यमंत्री बनाकर दोयम दर्जे का व्यवहार किया गया।
अन्त में श्री निषाद ने का कि अखिलेश यादव की सरकार में अतिपिछड़ी जातियों का जितना राजनीतिक अपमान हुआ, वैसा कभी नहीं हुआ और न होगा। 2017 से समाजवादी पार्टी की जो लगातर हार हो रहीं है, उसका प्रमुख कारण गैर यादव पिछड़ी जातियों के साथ भेदभाव और दोयम दर्जे का बर्ताव किया जाना है। अखिलेश यादव मण्डल के साथ हैं कि परशुराम के फरसा के साथ हैं, अपनी विचारधारा को साफ नहीं कर पा रहे हैं जिससे बहुजन मतदाता सशंकित हैं। हिन्दुत्व के दिखावे की बजाय खुलकर सामाजिक न्याय और मण्डल-अम्बेडकर की पीच पर बैटिंग करना चाहिए। भाजपा के अलावा कोई भी दल को नाक रगड़ने पर भी सवर्ण वोट मिलने वाला नहीं है। माथा रंगने, चुन्नी डालने और हवन पूजन करने से सवर्ण भाजपा का साथ छोड़ने वाली नहीं हैं।
उन्होंने आगे कहा कि नीतीश कुमार जी को पहले भतीजे तेजस्वी यादव को बिहार का मुख्यमंत्री बनाकर त्याग व उदारता का परिचय देना चाहिए। नीतीश कुमार जी अभी तक मुख्यमंत्री के लिए ही पाला बदलते रहे हैं और अंदरखाने उनकी टीम उन्हें पीएम के लिए काम में जुटी हुई है। सपना सभी को देखना चाहिए परंतु दिल भी विशाल रखना चाहिए। आगामी 23 जून को पटना में भाजपा विरोधी दलों का जमावड़ा हो रहा, भाजपा को पटखनी देने के लिए एकजुटता जरूरी है। उन्होंने बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार से तेजस्वी यादव को 23 जून को इसी मंच से मुख्यमंत्री बनाने का प्रस्ताव रखने का आग्रह किए हैं, ताकि चाचा पलटू राम की छवि से बाहर निकाला जा सके।
श्री निषाद ने कहा कि समाजवादी पार्टी को अभी तक की लोकसभा में 39 सीटों की सबसे बड़ी 2004 में मिली थी जिसमें निषाद-मल्लाह, केवट, कश्यप, बिन्द, राजभर, प्रजापति आदि 17 अति पिछड़ी जातियों की अहम भूमिका थी। 5 मार्च 2004 को तत्कालीन मुख्यमंत्री मुलायम सिंह यादव ने 17 अति पिछड़ी जातियों को अनुसूचित जाति में शामिल करने के लिए केन्द्र सरकार को प्रस्ताव भेजे थे।जिसके कारण अति पिछड़ी जातियों ने एकजुट होकर सपा को बड़ी जीत दिलाया था। 27 जनवरी 2009 को कांग्रेस की राष्ट्रीय अध्यक्षा सोनिया गांधी ने एनटीपीसी गेस्ट हाउस ऊँचाहार, रायबरेली में राष्ट्रीय निषाद संघ के प्रतिनिधिमंडल से कहीं थीं कि चुनाव में कांग्रेस की मदद करिए, सरकार बनने पर निषाद मछुआरा जातियों को अनुसूचित जाति का दर्जा दिलाऊंगी।उन्होंने कहा कि सोनिया गांधी के वादे के आधार पर निषाद जातियों ने 2009 के लोकसभा चुनाव में कांग्रेस की मदद किया जिससे उसे 21 सीटों पर जीत मिली थी। उत्तर प्रदेश के ग्रामीण जातिगत समीकरण में 7.98 प्रतिशत निषाद मछुआरा जातियां, 1.84 प्रतिशत प्रजापति और 1.31 प्रतिशत राजभर की संख्या है। इन अति पिछड़ी जातियों की 11.13 प्रतिशत जनसंख्या का हराने जीताने में काफी अहम भूमिका रहती है।
उन्होंने बताया कि विधानसभा चुनाव-2012 के दौरान समाजवादी पार्टी ने सरकार बनते ही 17 अति पिछड़ी जातियों को अनुसूचित जाति का आरक्षण देने का वादा किया था जिससे अति पिछड़ी जातियों ने 2012 में समाजवादी पार्टी की तरफ मुड़ गयी लेकिन अखिलेश यादव की सरकार में निषाद, लोधी, किसान, शाक्य/कुशवाहा, पाल, राजभर, पटेल जातियों के साथ उपेक्षापूर्ण रवैया अपनाने व राजनीतिक अपमान करने के कारण ये भाजपा के साथ चली गईं। अखिलेश यादव के मंत्रिमंडल में 7 यादव, 6-6 मुस्लिम, ठाकुर, ब्राह्मण को कैबिनेट मंत्री बनाने के साथ इन जातियों के 12 से 15 मंत्री बनाये गये, वही निषाद, कुर्मी, कुशवाहा/शाक्य, बघेल/पाल, लोधी, किसान आदि जैसी प्रभावशाली जातियों को महत्वहीन राज्यमंत्री बनाकर दोयम दर्जे का व्यवहार किया गया।
अन्त में श्री निषाद ने का कि अखिलेश यादव की सरकार में अतिपिछड़ी जातियों का जितना राजनीतिक अपमान हुआ, वैसा कभी नहीं हुआ और न होगा। 2017 से समाजवादी पार्टी की जो लगातर हार हो रहीं है, उसका प्रमुख कारण गैर यादव पिछड़ी जातियों के साथ भेदभाव और दोयम दर्जे का बर्ताव किया जाना है। अखिलेश यादव मण्डल के साथ हैं कि परशुराम के फरसा के साथ हैं, अपनी विचारधारा को साफ नहीं कर पा रहे हैं जिससे बहुजन मतदाता सशंकित हैं। हिन्दुत्व के दिखावे की बजाय खुलकर सामाजिक न्याय और मण्डल-अम्बेडकर की पीच पर बैटिंग करना चाहिए। भाजपा के अलावा कोई भी दल को नाक रगड़ने पर भी सवर्ण वोट मिलने वाला नहीं है। माथा रंगने, चुन्नी डालने और हवन पूजन करने से सवर्ण भाजपा का साथ छोड़ने वाली नहीं हैं।