चलो दिवाली मनायें

राम लौटे फिर से अयोध्या, चलो दिवाली मनाएँ,

असत्य पे हुई सत्य की जीत चलो दिवाली मनाएँ।
खेत-खलिहान, घर-आंगन में वो फैला उजियारा,
फूल-झड़ियाँ घर-घर छूट रही चलो दिवाली मनाएँ।

कोई न रहे गैर जहां में सभी से अपना नाता,
हिन्दू, मुस्लिम, सिख, ईसाई चलो दिवाली मनाएँ।
सबके मजहब भले अलग पर मालिक तो है एक,
एक साँचे में सबको ढाला चलो दिवाली मनाएँ।

गुस्से में है आजकल हवाएँ, रॉकेट उसे जलाया,
धरती धधके कहीं न अपनी चलो दिवाली मनाएँ।
उड़ने लगा आज का इंशा नफरत की आँधी में,
एक माटी के हम सब पुतले चलो दिवाली मनाएँ।

दरो-दीवार पर सुनों, न कहीं अंधेरा छाये,
शान-ओ-शौकत रहे बरकरार चलो दिवाली मनाएँ।
मंगलाचरण गा रही अप्सरायें रोशन हुई दहलीज,
न जलाओ आंसुओं से चराग, चलो दिवाली मनाएँ।

न चुभाओ ऊँच-नीच का नश्तर किसी के जेहन में,
जलाओ समता का तू दीप चलो दिवाली मनाएँ।
दाग है, मैल है दिल में धो डालो इसी दिवाली में,
बरसेगा हर चेहरे से नूर चलो दिवाली मनाएँ।

अर्श से फर्श तक जय-जयकार हो रही सत्य की,
करो न कोई रास्ता पामाल चलो दिवाली मनाएँ।
इत्र-सा महके गगन और नहाएँ फिजाएँ रोशनी से,
सितारों से लद गया कहकशां चलो दिवाली मनाएँ।

किस्मत चमके हर किसी की न हो कहीं कंगाली,
गुम न हो हँसी चेहरे से चलो दिवाली मनाएँ।
सर्दी के इस मौसम में चढ़े चूल्हों पे वो शबाब,
महफूज रहें कुँवारी लड़कियाँ, चलो दिवाली मनाएँ।

मुंडेरों और छज्जों पे सज गई हैं दीप-मालाएँ,
नस-नस में दौड़ी मोहब्बत चलो दिवाली मनाएँ।
मिठाई की दुकानें सज गई हैं ताजी दुल्हन-जैसी,
छाई गली-गली अब रौनक चलो दिवाली मनाएँ।

रामकेश एम. यादव मुम्बई
(कवि व लेखक)

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