करोड़ों पानी में बहाने के बाद भी मैली है गंगा, अब है मोदी का इंतजार
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वाराणसी. देश के भावी पीएम नरेंद्र मोदी ने अपनी नई पारी की शुरुआत का एलान क्लीन गंगा का नारा देकर किया है। मोदी के एजेंडे में सबसे ऊपर मां गंगा की निर्मलता का प्लान है। नामांकन और गंगा आरती में जिस दिन मोदी शामिल हुए, उनके जुबान पर गंगा का दर्द छिपा था। सरकारी आकड़ों के मुताबिक अब तक नौ हजार करोड़ रुपए गंगा प्रदूषण पर खर्च हो चुके हैं।
करोड़ों खर्च होने के बाद भी आज गंगा की हालत दयनीय है। 1986 में शुरू हुए गंगा एक्शन प्लान में दो हजार करोड़ खर्च हो चुके हैं। इस ढाई दशक में गंगा निर्मल तो नहीं हुई पर उसके प्रति नीति-निर्धारकों की नीयत जरूर सामने आ गई। काशी में वर्तमान स्थिति में गंगा में पांच सौ एमएलडी घरेलू डिस्चार्ज से ज्यादा सीवेज गिराए जा रहे हैं। बीओडी (बायोकेमिकल आक्सीजन डिजॉल्व) की मात्रा काफी बढ़ गई है।
राजीव गांधी ने गंगा में बढ़ते प्रदूषण को देखते हुए 1985 में गंगा एक्शन प्लान शुरू करने की घोषणा की।
राजीव गांधी ने गंगा में बढ़ते प्रदूषण को देखते हुए 1985 में गंगा एक्शन प्लान शुरू करने की घोषणा की।
- गंगा एक्शन प्लान का पहला चरण 31 मार्च, 2000 को समाप्त मान लिया गया। इसमें कुल 462 करोड़ रुपए खर्च हुए।
- इसके बाद गंगा एक्शन प्लान का दूसरा चरण शुरू हुआ। इसमें यमुना और दूसरी नदियों के एक्शन प्लान भी जोड़ लिए गए।
- दिसंबर 2012 तक इसमें 2 हजार 598 करोड़ रुपए खर्च हुए।
- इलाहाबाद में 1986 में शहर में प्रवेश के समय गंगा में बायो ऑक्सीजन
डिमांड(बीओडी) 11.4 एमजी प्रति लीटर और शहर से बाहर स्वीकार्य मात्रा
अधिकतम 3 एमजी प्रति लीटर है।
स्वामी जितेंद्रानंद सरस्वती ने बताया कि सन 1985 में पूर्व
प्रधानमंत्री राजीव गांधी ने 16 फरवरी 1985 को फर्स्ट फेज का गंगा एक्शन
प्लान 350 करोड़ रुपए से शुरू किया था। दो हजार करोड़ रुपए खर्च हो गए
लेकिन नतीजा गंगा की निर्मलता को लेकर कुछ भी नहीं निकला। सिर्फ 20 फीसदी
ही काम हो पाया।
गंगा की सेहत दुरुस्त करने के लिए सीधे प्रधानमंत्री की निगरानी में
नेशनल गंगा रिवर बेसिन अथॉरिटी (एनजीआरबीए) का गठन किया गया। इसमें देश भर
के नदी विशेषज्ञों के साथ वैज्ञानिकों को जोड़ा गया। इसके पहले फेज में करीब
पांच सौ करोड़ का बजट आया। इसमें वाराणसी में ड्रेनेज पाइपों को बिछाने का
काम व्यापक पैमाने पर किया गया है।