दास्ताने कर्बला 9 : कर्बला में यजीदीयों ने जंग के तोड़ दिये सारे वसूल

जौनपुर। दस मोहर्रम का वो काला दिन आ ही गया जिस दिन एक दोपहर में मोहम्मद स.अ. का कुनबा उजाड़ दिया गया। जोहर से अश्र के दरम्यान सब कुछ तबाह हो गया। लेकिन दस मोहर्रम सन् 61 हिजरी के इस वाकये पर गौर किया जाय तो लाखों के लश्कर के बावजूद यजीदियों ने हर मुकाम पर न सिर्फ धोखा दिया बल्कि जंग के सारे वसूल भी ताक पर रख दिये गये और दूसरी तरफ इमाम आलीमकाम ने जंग की इजाजत ही नहीं दी बल्कि हर सिपाही को सिर्फ आत्मरक्षा की हिदायत देकर भेजा। सवाल यह उठता है कि उस समय जंग में कौन से वसूल अर्थात नियम बनाये गये। इतिहास साक्षी है कि उस जमाने में जंग का सबसे प्रमुख नियम यह था कि एक सिपाही के मुकाबले दूसरी तरफ से भी एक ही सिपाही भेजा जाता था। दूसरा नियम यह था कि कोई भी जंग के दौरान धोखा नहीं देगा लेकिन यजीदीयों ने दोनों ही वसूल तोड़ दिये। इमाम आलीमकाम अपने एक एक सिपाही को मैदान में उतारते गये लेकिन यजीदी फौज हर बार धोखा कर गयी। पहले तो उसने अपने नामी पहलवानों को भेजा लेकिन जब वे मौत के घाट उतार दिये गये तो एक सिपाही के बदले दस से बीस हजार के लश्कर एक साथ हमलावर हो जाते। दूसरी तरफ कर्बला में एक और वसूल तोड़ा गया। धोखे के साथ शहीद हुए इमाम के सिपाहियों न सिर्फ सर काट लिये गये बल्कि उनकी लाश पर घोड़े भी दौड़ाए गए। पहले धोखा उसी समय दे दिया गया जब इमाम अपने 71 साथियों के साथ मैदान में नसीहत दे रहे थे। इसी दौरान यजीदी फौज से बिना एलान किये हजारों की संख्या में तींरदाज तीरों की बारिश करने लगे और जंग शुरू होने से पहले ही इमाम के आधे से अधिक साथी शहीद हो गये। जंग जब शुरू हुई तब 71 में मात्र 32 लोग बचे थे जिसमें इमाम के बचपन के दोस्त हबीब इबने मजाहिर, जोहैर इबने कैन, नाफे इबने हेलाल, मुस्लिम इबने औसजा, आबिस शाकिरी, बोरैर हमदानी, जैसे असहाब छोटे भाई जनाबे अब्बास, भतीजे कासिम, बेटे अली अकबर व कर्बला के सबसे छोटे शहीद छह माह के पुत्र अली असगर आदि बचे हुए थे। हालांकि इमाम ने अपने 32 साथियों के साथ मैदान में उतरकर हमला किया और लश्कर को तहस नहस कर दिया और यह बता दिया कि हम रसूल के नवासे है हालांकि जंग नहीं चाहते लेकिन जब मैदान में उतरते है तो मैदान को साफ कर देते है। इमाम पुन: वापस आए और जंग के वसूलों को कायम रखते हुए अपने लश्कर की तरफ से एक एक जांबाजों को भेजना शुरू किया। कभी हबीब जाते है तो कभी जोहैर जाते है। कभी नाफे तो कभी मुस्लिम एक एक कर सभी असहाब मैदान में जाते रहे और उनकी शहादत के बाद इमाम लाशों को मकतल से लाते रहे। जब सभी असहाब शहीद हो गये तो अयजा को भेजा जाने लगा। कभी कासिम मैदान में जाते है कभी भांजे औनमोहम्मद जाते है कभी अठ्ठारह साल का अली अकबर जाता है तो कभी सबसे बहादुर भाई अब्बास को भेजा गया लेकिन इमाम ने किसी को भी जंग करने की इजाज नहीं दी। किसी को एक तलवार को लेकर भेजा तो किसी को टूटा नैजा क्योंकि इमाम अच्छी तरह से जानते थे कि दो लाख से अधिक की इस फौज पर उनका एक ही फौजी जिसे अब्बास का कहा जाता है काफी है लेकिन इमाम ने अब्बास को तलवार ही नहीं दिया और साथ ही यह हिदायत भी दे रखी थी कि हमला नहीं करोगो सिर्फ फोरात से पानी भरकर खैमे तक ले आओगे। बहरहाल सभी भाई भतीजे भी शहीद हो गये और इमाम ने कर्बला के मैदान में कभी अकेले खड़ेकर कभी पूरब की तरफ देखा कभी पश्चिम की तरफ देखा तो कभी उत्तर की तरफ देखा तो कभी दक्षिण की तरफ नजर की। जब कोई दिखाई नहीं दिया तो एक आवाज बुलंद की 'हलमिन नासेरिन यन सोरोना हलवीन मुगीसै योगी सोना" अर्थात है कोई मेरी नुसरत को आये है कोई जो इस आलमे गुर्बत में मेरी मदद करे। मिलता है कि एक तरफ जिन्नातों का लश्कर पहुंचा इमाम ने मना किया दूसरी तरफ फरिश्तों का लश्कर आया इमाम ने मना किया। औलियाओं का लश्कर आया इमाम ने मना किया औसियाओं का लश्कर आया इमाम ने मना फरमाया अम्बियाओं का लश्कर आया इमाम ने मना फरमाया कि इंसानों में मेरी मदद के लिए कौन आ रहा है। इमाम के इस आवाज के साथ खैमे में रोने की आवाज बलंद होने लगी। इमाम वापस खैमे में गये तो पता चला कि उनके छह महीने के पुत्र अली असगर ने स्वयं को झूले से गिरा दिया। इमाम ने अली असगर को अपनी गोद में लिया और मैदान की तरफ आए। यजीदी सेना को मुखातिब करके कहा ऐ लोगो तुम भी औलाद वाले हो। अगर तुम्हारी नजर में मैं खतावार हूं तो मेरे इस छोटे से बच्चे ने क्या खता की है। अगर हो सके तो इसे थोड़ा सा पानी पिला दो यह भी मेरे साथ तीन दिन का भूखा और प्यासा है इसकी मां का दूध भी सूख गया। साथ ही इमाम ने यह भी कहा कि अगर तुम सोचते हो कि इसके बहाने मैं पानी पी लूंगा तो मैं इसे जलती जमीन पर लेटा दे रहा हूं अगर तुम में से किसी में जरा सी इंसानियत हो तो इसके मुंह में जरा सा पानी डाल देना। इमाम काफी दूर

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