पुस्तकों से दोस्ती करना सीखिए : प्रो. संकेत विज
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जौनपुर। वीर बहादुर सिंह पूर्वांचल विश्वविद्यालय के
कान्फ्रेंस हाल में शोध पत्र लेखन विषय पर कार्यशिविर का आयोजन विवेकानंद
केन्द्रीय पुस्तकालय एवं सेज पब्लिकेशन के संयुक्त तत्वावधान में किया गया।
भगत फूल सिंह महिला विश्वविद्यालय सोनीपत हरियाणा के प्रबंध शास्त्र के
आचार्य प्रो. संकेत विज ने कहा कि एक शोधार्थी को पुस्तकालय ही सबकुछ दे
सकता है। पुस्तकों से दोस्ती करना सीखिए जब विचारों का आवागमन तेज होगा तभी
आप बेहतर शोध पत्र लेखन कर सकेंगे। हाल के वर्षों में पुस्तकालयों में
बैठने वालों लोगों की कमी हो रही है। इसी कारण उत्कृष्ट शोध पत्र नहीं आ पा
रहे है। उन्होंने यूजीसी समेत कई वेबसाइटों का उद्धरण देते हुए कहा कि
आॅनलाइन रहते हुए आप पुस्तक एवं जर्नल्स को मुफ्त में डाउनलोड कर सकते है।
वैश्विक स्तर पर कड़ी प्रतिस्पर्धा के चलते हमारा ज्ञान सदैव समतुल्य होना
आवश्यक है। किसी भी शिक्षक एवं विद्यार्थी के लिए यह बहुत जरूरी है कि वह
सदैव अपने ज्ञान को अपडेट करते रहे। प्रो. विज ने इण्डेक्स जर्नल्स,
रैफ्रीड जर्नल्स, साइटेशन, वीबिलियोग्राफी, रेफेरेंसेज आदि बिंदुओं पर
उदाहरण सहित विस्तार से प्रकाश डाला।
डा. भीमराव
अम्बेडकर विश्वविद्यालय लखनऊ के राजनीति विज्ञान विभाग के विभागाध्यक्ष
प्रो. रिपुसूदन सिंह ने कहा कि हमारे परम्परागत ज्ञान हमारे आदर्श है।
उन्हीं को केन्द्रीकृत करके हम शोध शुरू करते है। शोध में समस्या को जानने
के लिए हम सिद्धान्त का सहारा लेते है। जब हम सामान्य सिद्धान्त में आते है
तो हमें व्याख्या, भविष्यवाणी एवं सुझाव तीनों को शामिल करना होता है।
उन्होंने कहा कि शोध में रस्म अदायगी बंद होनी चाहिए। दुर्भाग्य का विषय है
कि आज बहुत सारे शोध केवल एपीआई स्कोर बनाने के लिए हो रहे है। ज्ञान एवं
समाज के विकास के लिए शोध बहुत जरूरी है। उन्होंने कहा कि शोध के समय
परिकल्पना बहुत प्रमुख होती है, हम क्या सोचते है, अन्य लोग क्या सोचते है
और फिर इसी बुनियाद पर शोध प्रारम्भ होता है।
विशिष्ट
अतिथि के रूप में सेज पब्लिकेशन इण्डिया के निकेत शर्मा ने देश व दुनिया
में शोध पब्लिकेशन हाउस द्वारा चलाये जा रहे शोधग्रंथ व शोध पत्रिकाओं के
पब्लिकेशन से जुड़ी बारिकियों के बारे में लोगों को परिचित कराया।
कार्यक्रम
की अध्यक्षता कर रहे प्रबंध अध्ययन संकाय के अध्यक्ष डा. एचसी पुरोहित ने
कहा कि शोध पत्र लिखना एक महत्वपूर्ण कला है जिसमें शब्दों का चयन
विषयवस्तु को ध्यान में रखकर किया जाना चाहिए। शोध विषय का चयन सम्बन्धित
विषय पर पूर्व में किये गये सभी शोधों के अध्ययन व संदर्भों के आधार पर
तैयार किया जाता है और उसकी अभिव्यक्ति आम जनमानस को समझने वाली होनी
चाहिए। तभी शोध पत्र अधिक सारगर्भित और सामाजिक प्रभाव डाल पाएंगे। यह
कार्यशाला विश्वविद्यालय के शिक्षकों एवं शोध छात्रों के लिए लाभकारी है।
इसके
पूर्व विषय विशेषज्ञ एवं अतिथियों द्वारा दीप प्रज्जवलन के साथ कार्यशिविर
का शुभारम्भ हुआ। डा. अजय द्विवेदी,डा. अजय प्रताप सिंह, डा. प्रदीप
कुमार, डा. बीडी शर्मा, डा. सुशील कुमार, डा. आलोक गुप्ता ने मंचासीन
अतिथियों, विषय विशेषज्ञों को स्मृति चिन्ह भेंटकर सम्मानित किया।
कार्यशिविर
में आये हुए विषय विशेषज्ञों एवं प्रतिभागियों का स्वागत मानद
पुस्तकालयाध्यक्ष प्रो. मानस पाण्डेय ने एवं संचालन डा. विद्युत मल्ल ने
किया। आभार प्रदर्शन डा. अविनाश पाथर्डीकर नें किया।
इस
अवसर पर प्रो. एके श्रीवास्तव, डा. रामनारायण, डा. वंदना राय, डा. मनोज
मिश्र, डा. आशुतोष सिंह, डा. सुरजीत यादव, डा. एसपी तिवारी, डा. दिग्विजय
सिंह राठौर, डा. आलोक सिंह, डा. अवध बिहारी सिंह, डा. सुनील कुमार, डा.
विवेक पाण्डेय, डा. रूश्दा आजमी, सत्यम उपाध्याय, ़ऋषि श्रीवास्तव, आलोक
दास समेत विभिन्न संकायों के शिक्षक एवं विद्यार्थी मौजूद रहे।

