सृष्टि का आरंभ ओम की ध्वनि से हुआ

सृष्टि का आरंभ ओम की ध्वनि से हुआ. ध्वनि से प्रकाश और प्रकाश से पाँच तत्त्व उत्पन्न हुए जिनसे इस संसार की प्रत्येक वस्तु का निर्माण हुआ| अपने आस पास देखें, चाहे पेड़ हो या फिर पत्थर, जानवर हो या मानव शरीर, सभी की अपनी एक ध्वनि है. इस ध्वनि को बदलने से मानव का पूरा स्वरूप बदल जाता है. एक स्वस्थ शरीर और रोगी शरीर में भी ध्वनि का ही फ़र्क है. यदि योग साधन वा मंत्र उच्चारण द्वारा शरीर की ध्वनि को सूक्ष्म कर दिया जाए, तो रोगी स्वस्थ हो सकता है और डकैत योगी बन सकता. उसी प्रकार अशुद्ध उच्चारण और निम्न ध्वनियों के प्रयोग से घर, वातावरण तथा सृष्टि में असंतुलन उत्पन्न हो सकता है. इसका सीधा प्रमाण है, दूरदर्शन पर धारावाहिकों में बैकग्राउंड म्यूजिक के रूप में चलने वाले अशुद्ध उच्चारण, जो घर घर में गूंजते हैं और उनके परिणाम स्वरूप घर और वातावरण में बढ़ती अशांति. यद्यपि मंत्र विद्या अत्यंत प्रभावशाली है, किंतु किसी भी मंत्र की सफलता के लिए मंत्र की सिद्धि अनिवार्य है. मंत्र दूरदर्शन से सुन अथवा किताबों से रॅट कर नही किये जाते, अपितु गुरु द्वारा शिष्य में संचालित किए जाते हैं. मंत्र का उच्चारण तथा उच्चारण करने वाले का भाव शुद्ध होना भी अनिवार्या है. प्रत्येक ध्वानि एक उर्जा है, उस ध्वनि में हलके से भेद से ही उसका प्रभाव उल्टा पढ़ सकता है. उदाहरण के लिए, महामृत्युंजय जी का जाप स्वास्थ्यवर्धक होता है, परंतु उच्चारण की छोटी सी त्रुटि से वह यम (मृत्यूदेव) का आह्वान बन जाता है. इसलिए मंत्रों का प्रयोग गुरु सानिध्या में ही करना चाहिए. मंत्रों के उच्चारण से पूर्व, शरीर का संतुलन में होना तथा नाड़ियों का शुद्धीकरण आवश्यक है, तभी साधक मंत्र की शक्ति का संचालन कर सकेगा. इसके लिए उसे चाहिए की सनातन क्रिया में बताई गयी प्रक्रिया का नियम पूर्वक अभ्यास करे

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