प्रकृति नें जमकर अब डॉंटा है...

 

चीखें जहां पर गुम हो जाती।

पेड़ न पौधा हिले न पाती।।

शोर में भी सन्नाटा है।

यह कैसा भीषण चाटा है।।

मौत कर रही नृत्य भयंकर।

मानव गिर रहा खाकर चक्कर।।

मानवता पर भी पहरा है।

संकट बहुत बड़ा गहरा है।।

बालक और वयस्क को देखा।

मिट गयी उम्र की गहरी रेखा।।

श्मशान में जगह नहीं है।

प्रकृति का कोई दोष नहीं है।।

हमनें पेड़ों को काटा है।

प्रकृति नें जमकर अब डॉंटा है।।

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