संगम तट पर हुआ प्राथमिक शिक्षा में खुशहाली लाने के लिए मंथन

जौनपुर। संगम तट पर खुशनुमा माहौल में बच्चों को गुणवक्तायुक्त शिक्षा देकर शिक्षा की बुनियाद को किस तरह मजबूत किया जाय इस पर प्रमुखता से मंचन हुआ। प्रदेश के दस प्राथमिक शिक्षको को चयन करके इस कार्यशाला में प्रतिभाग करने का अवसर प्रदान किया गया। 

 अनुभूति /हैप्पीनेस पाठ्यचर्या विकास कार्यशाला का पांच दिवसीय आयोजन राज्य शैक्षिक प्रबंधन एवं प्रशिक्षण संस्थान उत्तर प्रदेश प्रयागराज में किया गया।  13 दिसम्बर  से 18 दिसम्बर तक चले इस कार्यशाला में जौनपुर की शिक्षिका श्रीमती शिप्रा सिंह के साथ प्रदेश के 32 शिक्षकों ने भाग लिया । 

कार्यशाला में अलग-अलग दिवस में अलग-अलग बिंदुओं पर चर्चा के माध्यम से अनुभूति/ हैप्पीनेस पाठ्यचर्या विकास पर चर्चा करते हुए समझ विकसित करने का प्रयास किया गया। खुशी क्या है? यह कैसे मिलती है? इसके लिए हमें किस प्रकार के समझ की जरूरत है? यह हम सभी को चाहिए लेकिन हमें यह समझने की भी आवश्यकता है की क्या हम इस समझ के साथ जी पा रहे हैं की खुशी हमें निरंतर मिलती रहे या क्षणिक खुशी के लिए ही सब कुछ कर रहे हैं। इसी प्रकार निम्नांकित बिन्दुओ पर भी चर्चा के माध्यम से समझ विकसित करने का प्रयास किया गया। 

सभी प्रतिभागियों में विचार- विनिमय के माध्यम से स्पष्ट हुआ कि इंद्रियों की अपनी उपयोगिता है, उनके काम अपनी उपयोगिता को प्रमाणित करते हैं, संबंधों में सम्मान एवं स्वीकृति से जीवन आसान होता है, जीवन लक्ष्यों की समझ से तालमेल होता है और दीर्घकालिक खुशी मिलती है। इससे मानसिक तनाव नहीं होता, ईर्ष्या की भावना नहीं उत्पन्न होती और कृतज्ञता का भाव पैदा होता है। धरती पर सबसे ज्यादा पदार्थ हैं उसके सापेक्ष पेड़ पौधे बहुत कम हैं और पेड़ पौधों के सापेक्ष जीव जंतु और पशु पक्षी बहुत कम है। जीव जंतु और पशु पक्षियों के सापेक्ष मनुष्य सबसे कम है फिर भी उसे संसाधनों की सबसे अधिक आवश्यकता है और उसके लिए वह कुछ भी करने को तैयार है जिससे पर्यावरण संतुलन बिगड़ रहा है और हमारा खुद का जीवन ही खतरे में पड़ रहा है। पर्यावरण की चीजों को बचाने की जिम्मेदारी हमारी है और यह कार्य शिक्षा विधि में निरंतर तथा व्यवस्थित प्रयास से ही संभव है। "लक्ष्य की स्पष्टता या समझदारी से ही स्थाई खुशी की संभावना है " इस पर चर्चा में सभी प्रतिभागी इन निष्कर्षों पर पहुंचे की लक्ष्य की स्पष्टता से सही निर्णय हो पाते हैं , अपनी शक्तियों को हम सही जगह लगा पाते हैं, बेहतर सामंजस्य हो पाता है और सफलता की संभावना बढ़ जाती है तथा हम अवसाद की स्थिति से बचने में सफल होते हैं । चर्चा के दौरान यह समझ बनी की भौतिक चीजें नियम से हैं जैसे ठोस वस्तु पर ही ठोस वस्तु को रखा जा सकता है समझने के लिए इंद्रियों की जरूरत है इंद्रियां ठीक रहेंगे तभी बेहतर समझ विकसित होगी सूचनाएं और पदार्थ बाहर हैं इन के माध्यम से इंद्रियां अनुभव देती हैं और समझ विकसित होती है । एक सत्र में भी कुछ प्रतिभागियों द्वारा दिल्ली एवं छत्तीसगढ़ के हैप्पीनेस तथा चेतना विकास मूल्य शिक्षा पाठ्यक्रम के अंतर्गत किए गए कार्यों की समीक्षात्मक रिपोर्ट भी प्रस्तुत की गई। इस क्रम में यह भी स्पष्ट करने की कोशिश हुई की संबंधों में तृप्ति के साथ जीना आवश्यक है । यह तभी होगा जब उसमें सम्मान होगा। इससे एक स्थाई भाव तथा तृप्ति मिलती है, जो दीर्घकालिक सुख प्रदान करता है । कार्यशाला के एक संदर्भ व्यक्ति ने कहा कि" पैच वर्क की बजाए शिक्षा में वास्तविक कार्य हो" इसके लिए अनुभूति या हैप्पीनेस पाठ्यचर्या की आवश्यकता है। इसी प्रकार अलग-अलग दिवस में कुछ अलग-अलग प्रकार के विषय बिंदुओं पर चर्चा के माध्यम से पाठ्यचर्या की समझ विकसित करने का प्रयास किया गया। जिससे एक उपयुक्त पाठ्यचर्या का स्वरूप हम सभी के सम्मुख स्पष्ट हो सके।

श्रवण कुमार शुक्ल विशेषज्ञ, हैप्पीनेस कार्यक्रम द्वारा चर्चा-परिचर्चा करते हुए गतिविधि एवं कहानी के माध्यम से "भावों" पर विस्तार से प्रकाश उन्होंने यह बताया कि सोशल इमोशन एंड एथिकल लर्निंग के नाम से यह पाठ्यक्रम अधिकांश देशों में प्रारम्भ हो चुका है। भारत में भी यह कई राज्यों में विभिन्न नामों से शुरुआती दौर में संचालित हो रहा है। उत्तर प्रदेश के परिवेश के मुताबिक इसे अनुभूति/हैप्पीनेस नाम से पाठ्यक्रम के विकास में सरकार प्रयत्नशील है। कॉलेज ऑफ टीचर एजुकेशन प्रयागराज के प्रवक्ता पवन कुमार श्रीवास्तव ने हैप्पीनेस पाठ्यक्रम को आज के समय की प्रमुख आवश्यकता बताया। उनका कहना था कि यह विषय बच्चों में जीवन मूल्यों की समझ को निरंतर अभ्यास के माध्यम से उन्हें खुशहाल मानव बनाकर उन्हें जिम्मेदारी,भागीदारी,ईमानदारी से युक्त करेगा। कार्यशाला में प्रयागराज से श्रीमती सलोनी मेहरोत्रा ने भी प्रतिभाग किया।


इस कार्यशाला में उत्तर प्रदेश उच्चतर शिक्षा सेवा आयोग के अध्यक्ष डॉक्टर ईश्वर शरण विश्वकर्मा, लोक सेवा आयोग उत्तर प्रदेश के सदस्य डॉ हरेश प्रताप सिंह तथा माध्यमिक शिक्षा सेवा चयन आयोग उत्तर प्रदेश के सदस्य डॉ०दिनेश मणि त्रिपाठी का मार्गदर्शन कार्यशाला के दौरान प्राप्त हुआ । कार्यक्रम में डॉ० सुत्ता सिंह जी, निदेशक, सीमैट, प्रयागराज, एवं डॉ० सौरभ मालवीय जी, प्रभारी अनुभूति-/हैप्पीनेस कार्यक्रम उ०प्र० ने अपने विचार व्यक्त कर मार्गदर्शन प्रदान किया। विशेषज्ञ एवम् संदर्भ व्यक्ति के रूप में श्री श्रवण कुमार शुक्ल, श्री जय प्रकाश ओझा, श्री पवन कुमार श्रीवास्तव एवं श्री मदन पाण्डेय जी ने योगदान दिया। डाक्टर दिनेश मणि जी ने अपने विचार व्यक्त करते हुए कहा कि संवेदनहीनता बढ़ रही है । कक्षाओं में संवेदनशीलता को बढ़ाने संबंधी प्रयास करना आवश्यक है । यदि हम कक्षाओं में मूल्य विकसित नहीं कर पाए तो क्या करेंगे? शिक्षा को नई दिशा देने में हमारी महत्वपूर्ण भूमिका है। शिक्षा का दान ही सबसे महत्वपूर्ण दान है । हमारे शिक्षण में नवीनता और जीवंतता आवश्यक है । निराश बच्चों को कैसे आगे बढ़ायें इसे समझना होगा और शिक्षा के माध्यम से ही इसमें सार्थक परिवर्तन लाए जा सकते हैं। डॉक्टर सुत्ता सिंह ने अपने उद्दबोधन में कहा कि चुनौतियां बहुत हैं परंतु प्रयास छोड़ने की आवश्यकता नहीं है। कहानी और विभिन्न धरोहरों के माध्यम से बच्चों के समग्र विकास के लिए प्रयास करने की आवश्यकता है। हमें स्वयं के विकास के लिए भी सामग्री तैयार करनी होगी तथा स्किल के विकास की जरूरत है। हमें शिक्षा की मुख्यधारा में योग और प्राणायाम को भी शामिल करने के बारे में सोचना चाहिए। समाचार एजेंसी पीटीआई (भाषा) के श्री राजेंद्र जी ने पढ़ाई में रस पैदा करने की आवश्यकता पर बल दिया जिससे बच्चे पढ़ाई से भागे नहीं। उन्होंने किताबी ज्ञान के स्थान पर परिवेश आधारित ज्ञान की आवश्यकता जताई । उनका कहना था कि जो स्वस्थ है वही सुखी है । सुविधाओं से सुखी नहीं हुआ जा सकता है। आगंतुकों का आभार प्रदर्शित करते हुए श्री जय प्रकाश ओझा ने कहा कि खुद को समझना , संबंध को समझना तथा संबंधों में भाव का प्रकटीकरण करते हुए विचार, इच्छा और आशा में ख़ुशी का एहसास करना आवश्यक है। वास्तविक एवं दीर्घकालिक खुशी कब, कहां और कैसे विकसित होगी इसकी समझ पैदा होना अधिक आवश्यक है। बच्चों में इसकी समझ विकसित करने से पहले स्वयं में इसका विकास आवश्यक है। ममता मूल्य पर चर्चा में यह स्पष्ट हुआ की किसी भी संबंधी के शरीर के पोषण की स्वीकृति का भाव ही ममता है।


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